भारतीय रेलवे कोरोना वायरस महामारी खत्म होने के बाद भी अपनी पूर्ण सेवाओं के दौरान एसी कोच में कंबल, तकिया, तौलिया और चादर की सुविधा देना बंद करने पर विचार कर रहा है। हालांकि इस मामले में अभी औपचारिक निर्णय लिया जाना बाकी है, मगर इस सप्ताह के शुरू में रेलवे बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों और क्षेत्रीय व मंडल स्तर के अधिकारियों के बीच एक उच्च स्तरीय वीडियो कॉन्फ्रेंस में इस मुद्दे पर चर्चा की गई।

वीडियो कॉन्फ्रेंस में शामिल तीन आला अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है। रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।’ सूत्रों ने बताया कि देशभर में बिल्ड ऑपरेट ओन ट्रांसफर मॉडल के तहत लिनेन को धोने के लिए स्थापित मैकेनाइज्ड मेगा लॉन्ड्री के साथ क्या करना है, यह तय करने के लिए एक समिति बनाई जा रही है। रेलवे का अनुमान है कि प्रत्येक लिनेन सेट को धोने के लिए चालीस से पचास रुपए का खर्च आता है। रेलवे के अनुमान के मुताबिक करीब 18 लाख लाख लिनेन सेट चलन में हैं।

रेलवे में एक कंबल करीब 48 महीने तक सेवा में रहता है और महीने में एक बार धोया जाता है। सूत्रों के मुताबिक रेलवे फिलहाल कोई नया लिनेन आइटम नहीं खरीद रहा है। इसके अलावा पिछले कुछ महीनों में लगभग बीस रेलवे डिवीजनों ने निजी विक्रेताओं को सस्ते दामों पर स्टेशनों पर डिस्पोजेबल कंबल, तकिए और चादरें तैयार करने का ठेका दिया है।

Unlock 4.0 Guidelines

उदाहरण के लिए ईस्ट सेंट्रल रेलवे के दानापुर डिवीजन में पांच ऐसे वेंडर हैं जो प्रतिवर्ष तीस लाख रुपए का भुगतान करते हैं। देशभर में लगभग ऐसे पचास विक्रेताओं ने रेलवे स्टेशनों पर दुकानें स्थापित की है। मामले में अधिकारियों ने कहा कि ज्यादा खर्च के बजाए यह विकल्प लिनेन प्रबंधन को गैर किराया राजस्व अर्जित करने के अवसर में बदल देता है। अधिकारी ने कहा कि एसी डिब्बों में आधुनिक तापमान नियंत्रण सेटिंग्स के साथ कंबल की जरुरत को खत्म किया जा सकता है।

हालांकि रेल मंत्रालय प्रवक्ता ने मामले में स्पष्ट किया कि अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है। अभी हम कोरोना से उपजे हालात को देखते हुए लिनेन ने नहीं दे रहे हैं। बाद में हालात जब सामान्य हो जाएंगे, ये सभी निर्णय समीक्षा के लिए होंगे। इन मामले में अभी कुछ कहना काल्पनिक है।