Iram Siddique
कोरोना माहमारी, भारतीय रेलवे की एक पुरानी परंपरा ‘पर्सनल और डाक मैसेंजर’ के लिए घातक साबित हुई है। रेलवे ने अपने खर्चों में कटौती के लिए अधिकारियों से कहा है कि वह इन संदेशवाहकों का इस्तेमाल बंद कर दें। बता दें कि निजी और डाक संदेशवाहकों की यह परंपरा अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही थी। रेलवे बोर्ड ने अब अधिकारियों को संदेशवाहकों के बजाय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आपस में बातचीत करने की सलाह दी है।
कोरोना संकट के चलते रेल सेवाएं बुरी तरह बाधित हुई हैं। यही वजह है कि रेलवे का राजस्व घटकर मई माह में 58 फीसदी रहा। रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि इन संदेशवाहकों के भत्ते और उनकी सैलरी रेलवे के बजट पर काफी असर डाल रहे थे। 26 जुलाई के एक पत्र में रेलवे बोर्ड ने कहा कि ‘लागत को कम करने और खर्चों को घटाने के तहत बोर्ड की इच्छा है कि रेलवे के सभी अधिकारी, पब्लिक यूनिट्स और रेलवे बोर्ड वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत करेंगे। इसके अनुसार, निजी और डाक संदेशवाहकों की बुकिंग को तुरंत बंद किया जाना चाहिए।’
डाक और निजी संदेशवाहक अहम संदेशों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाते थे। ये संदेशवाहक रेलवे के ‘गुप्त’ और ‘संवेदनशील’ संदेशों को एक विभाग से दूसरे विभाग ले जाते थे।
अधिकारियों का कहना है कि तकनीक के विकास के साथ ही औपनिवेशिक काल के इस सिस्टम का गलत इस्तेमाल किया जा रहा था। कई बार अधिकारियों द्वारा इन संदेशवाहकों का अपने निजी काम के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यही वजह है कि बीते एक दशक से इस व्यवस्था को बंद करने की कोशिशें चल रहीं थी।
एक डाक संदेशवाहक को प्रतिदिन भत्ते के रुप में 500 और एक निजी संदेशवाहक को हर दिन 800 रुपए भत्ते के रूप में मिलते हैं। चूंकि इन संदेशवाहकों को एक जगह से दूसरी जगह जाना होता है तो यह ट्रेन में 3एसी में सफर करते हैं। रेलवे में करीब 5000 डाक संदेशवाहक और इतने ही करीब निजी संदेशवाहक हैं, जिनके भत्तों पर रेलवे करीब 10 करोड़ रुपए सालाना खर्च करती है।
रेलवे का यह सिस्टम करीब 160 साल पुराना है। इस व्यवस्था के बाद से ही रेलवे अपने आंतरिक पोस्टल नेटवर्क के लिए इस सिस्टम पर निर्भर रहा है। एक रिटायर्ड अधिकारी ने बताया कि युद्ध के हालात में सैनिकों और हथियारों की रेलवे के द्वारा मूवमेंट की जानकारी इस सिस्टम के द्वारा साझा की जाती थी। यही वजह रही कि फैक्स और ईमेल के जमाने में भी यह सिस्टम चालू रहा लेकिन अब कोरोना से रेलवे की कमाई पर जो बड़ा असर पड़ा है, उससे इस व्यवस्था की विदाई तय हो गई है।