पाकिस्तान की जेलों में 217 भारतीय मछुआरे बंद हैं। भारत सरकार मछुआरों को लाने का प्रयास कर रही है। इस बीच मछुआरों के परिजन काफी परेशान हैं। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए अगस्त 2022 से अपने घर की इकलौती कमाने वाली 32 वर्षीय भारती सोलंकी अपनी आपबीती बताते हुए फूट-फूट कर रो पड़ती हैं। घर की जिम्मेदारी उन पर तब आ गई जब उनके पति संजय (पाकिस्तान की जेल में बंद गुजरात और दीव के 180 मछुआरों में से एक हैं) को सितंबर 2022 में ओखा के पास मछली पकड़ते समय पाकिस्तानी अधिकारियों ने पकड़ लिया था। इसकी खबर उन्हें कुछ दिनों बाद पता चली। इनमें से 53 मछुआरे कथित तौर पर 2021 से पाकिस्तान की जेल में हैं।
परिजनों का नहीं हो पा रहा कम्युनिकेशन
बता दें कि पाकिस्तान की जेल में बंद अपने पतियों या बेटों से कोई कम्युनिकेशन स्थापित करने में कामयाब न होने पर संघर्ष कर रही गुजरात और दीव की कई महिलाओं ने शुक्रवार को अहमदाबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने केंद्र सरकार से मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की।
महिलाओं ने मछुआरों को रिहा करवाने और भारत और पाकिस्तान के बीच 2008 में हुए कॉन्सुलर एक्सेस समझौते को लागू करवाने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर को भी पत्र लिखा है। भारती ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “मैंने अगस्त 2022 में उनसे (संजय) फोन पर बात की थी। वह ओखा के पास कहीं मछली पकड़ रहे थे। सितंबर के अंत तक मुझे पता चला कि उन्हें पाकिस्तानी अधिकारियों ने पकड़ लिया है। वह परिवार का मुख्य कमाने वाला था और अब उनकी अनुपस्थिति में, मैं वनकबारा बंदरगाह पर मजदूरी करके परिवार के लिए लगभग 5,000 रुपये हर महीने कमाती हूं। लेकिन यह हमारे लिए पर्याप्त नहीं है।”
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भारती सोलंकी ने कहा, “मेरे ससुर वेलजीभाई लकवाग्रस्त हैं और मेरी सास धनीबेन घुटने की समस्या के कारण ज्यादा चल-फिर नहीं पाती हैं। मुझे हर महीने दो वक्त की रोटी जुटाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। मेरे ससुर की दवाओं पर लगभग 7,000 रुपये प्रति माह खर्च होते हैं। पैसे की कमी के कारण, हमने उनके लिए दवाइयां खरीदना बंद कर दिया है।” भारती के दो बच्चे हैं। एक सात साल का बेटा तनिश और तीन साल की बेटी हंसिका है। तनिश पहली क्लास में पढ़ता है। सरकार से अपील करते हुए उन्होंने कहा, “मेरी भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से विनती है कि मछुआरों को उनके घर वापस भेजा जाए। मेरे जैसी कई महिलाएं हैं जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनके घर में कमाने वाला कोई नहीं है। हम कैसे गुजारा करें? हम अपने बच्चों की परवरिश कैसे करें और उन्हें कैसे पढ़ाएं? हम अपने बुजुर्ग सास-ससुर का (चिकित्सकीय) इलाज कैसे करें? मेरे पति ही कमाने वाले एकमात्र सदस्य थे और वह पिछले तीन सालों से पाकिस्तान की जेल में हैं। हमें उनके बारे में कुछ भी पता नहीं है।”
SMSWF ने की प्रेस कॉन्फ्रेंस
प्रेस वार्ता समस्त मछलीमार समाज वेलफेयर फाउंडेशन (SMSWF) के द्वारा आयोजित की गई थी। अपनी दुर्दशा साझा करते हुए दीव निवासी 50 वर्षीय जयाबेन चावड़ा ने कहा, “मेरे 28 वर्षीय बेटे अल्पेश की शादी 2020 में हुई थी और उसे 2021 में पाकिस्तान ने पकड़ लिया था। जब अल्पेश पकड़ा गया तो उसकी पत्नी आरती गर्भवती थी। उसने एक बेटे को जन्म दिया है और अल्पेश ने अपने बेटे का चेहरा भी नहीं देखा है।”
एसएमएसडब्ल्यूएफ सचिव उस्मानगानी शेरसिया ने कहा, “पाकिस्तान के नियमों के अनुसार बिना पासपोर्ट के सीमा पार करने पर पकड़े गए मछुआरों को तीन महीने की सज़ा होती है। उनमें से लगभग 180 ने सज़ा काट ली है और उनका नेशनल वर्फिकेशन भी पूरा हो चुका है।” फिर भी उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया नहीं की गई है। इस वजह से उनके परिवारों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
उस्मानगानी शेरसिया ने कहा, “कोविड-19 के बाद से पत्रों के माध्यम से संवाद करने की प्रक्रिया भी बंद हो गई है। इसलिए, परिवारों को इन मछुआरों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। महिलाओं l ने शुक्रवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर को पत्र लिखकर भारत और पाकिस्तान के बीच एक-दूसरे की हिरासत में नागरिक कैदियों और मछुआरों तक पर हुए समझौते को लागू करवाने की मांग की है। अपने पत्र में, महिलाओं ने कैदियों पर भारत-पाकिस्तान न्यायिक समिति को पुनर्जीवित करने की भी मांग की है। दोनों देशों के वरिष्ठ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों वाली इस समिति का गठन भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने 2008 में किया था।”
जयशंकर को लिखा पत्र
जयशंकर को लिखे पत्र में एक अनुरोध में कहा गया है, “कैदियों पर भारत-पाकिस्तान न्यायिक समिति को पुनर्जीवित करना आवश्यक है। समिति की आखिरी बैठक अक्टूबर 2013 में हुई थी। समिति प्रभावी ढंग से काम कर रही थी क्योंकि सदस्य एक-दूसरे देश का दौरा करते थे और कैदियों से मिलते थे। इससे उन्हें रिहा कराने में भी मदद मिली।”
उस्मानगानी शेरसिया ने कहा कि समझौते के तहत हर साल 1 जनवरी और 1 जुलाई को भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे की हिरासत में बंद लोगों की सूची का आदान-प्रदान करते हैं और फिर उन्हें रिहा कराने की प्रक्रिया शुरू होती है। उन्होंने कहा, “1 जनवरी बीत चुका है और मछुआरे अभी भी बंद हैं।” 21 मई 2008 को भारत के उच्चायुक्त और पाकिस्तान के उच्चायुक्त के बीच हस्ताक्षरित समझौते के खंड 5 में लिखा है, “दोनों सरकारें राष्ट्रीयता की पुष्टि और सजा पूरी होने के एक महीने के भीतर व्यक्तियों को रिहा करने और वापस भेजने पर सहमत हैं।”
उस्मानगानी शेरसिया ने कहा, “सरकार को पाकिस्तान को पत्र लिखकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत या पाकिस्तान का एक भी मछुआरा दोनों में से किसी भी देश की जेल में न हो। पाकिस्तान के 82 मछुआरे वर्तमान में भारत की जेलों में बंद हैं।” मुंबई के पत्रकार जतिन देसाई (वर्षों से समुदाय के लिए काम कर रहे हैं और प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे) ने कहा, “वर्तमान में पाकिस्तान की जेलों में भारत के 217 मछुआरे हैं। उनमें से 18 महाराष्ट्र से, 18 तमिलनाडु से, एक उत्तर प्रदेश से और बाकी गुजरात और दीव से हैं।”