आइई थ‍िंंक माइग्रेशन कार्यक्रम में मुख्‍य अत‍िथ‍ि झारखंड के मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन थे। उन्‍होंने कहा- असंगठ‍ित माध्‍यमों से मजदूर अलग-अलग शहरों और राज्‍यों में गए, अब वे संगठ‍ित माध्‍यमों से जाते हैं और उनका शोषण होता है। इस द‍िशा में सरकार की महत्‍वपूर्ण भूमि‍का हो सकती है।

पलायन के प्रतिरूप पर एस इरुदया राजन : 2011 की जनगणना में, भारत में 450 मिलियन प्रवासी थे। देश में हमारी नीतियां प्रवास बढ़ाने वाली हैं, एवं नीति निर्माता और अर्थशास्त्री हैं, जो मानते हैं कि शहरीकरण से आर्थिक विकास होगा। यह स्मार्ट सिटी मिशन में प्रतिबिंबित हुआ; ऐसे 100 शहरों को खूब प्रचारित किया जा रहा है।

तीन तरह के प्रवासी होते हैं- एक जो राज्य के भीतर ही घूमते हैं, जिले के भीतर और तब राज्य के भीतर। अगर आप 600 मिलियन की संख्या लेते हैं, 140 मिलियन जिले में प्रवासी हैं, 400 मिलियन जिले के बाहर जाते हैं और 60 मिलियन राज्य के बाहर। शहरी क्षेत्र में गतिशीलता 40 फीसद होती है। शहरीकरण बढ़ने के साथ, ज्यादा से ज्यादा प्रवास हो रहा है।

“आप प्रवास को एक किस्म के बोझ के तौर पर देखते हैं। आपको इस (सोच) से निजात पानी होगी। प्रवासियों का उनके गंतव्य वाले राज्य की आय में क्या योगदान है। उदाहरण के लिए मुंबई शहर की आय में वे क्या योगदान करते हैं? इसी तरह, वे बिहार या राजस्थान या यूपी को जो धन भेजते हैं, उसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता है? वे प्रवासी हैं, लेकिन वे भारतीय हैं। वे अभी अदृश्य हैं, हमें उन्हें दृश्यमान बनाना होगा। ”

एस इरुदया राजन
प्रोफेसर, सेंटर फॉर
डेवलपमेंट स्टडीज, केरल

कोविड और प्रवासियों पर रवि एस श्रीवास्तव :

महामारी से सभी प्रभावित नहीं हुए, लेकिन इसने घुमंतू प्रवासियों पर असर डाला है। नौकरी के बाजार में उनकी स्थिति के कारण वे आसानी से चपेट में आए- भले ही वे दैनिक भत्ते पर काम कर रहे थे या अपना कोई धंधा कर रहे थे।

ऐसे लोग शहरों में काम करते हैं, लेकिन उनकी जड़े ग्रामीण इलाकों में हैं। 2004-05 में, गैर-कृषि क्षेत्रों के अनौपचारिक कार्यबल का आधा हिस्सा घुमंतू प्रवासी था। 2017-18 तक, ऐसे कामगारों में हर चौथा इसी तरह का प्रवासी था। उनके लिए महामारी बहुआयामी झटका थी। स्वास्थ्य का झटका, आर्थिक झटके के साथ ही खाद्य असुरक्षा बढ़ी। असर न सिर्फ उनके जीवन पर पड़ा क्योंकि वे ग्रामीण क्षेत्रों में लौट गए, बल्कि औद्योगिक और शहरी अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा, इसमें अंतर बढ़ गया।

रवि एस श्रीवास्तव
निदेशक, सेंटर फॉर एंप्लायमेंट स्टडीज,

“आज के प्रवासी मजदूर सबसे गंदा, सबसे खतरनाक और सबसे मुश्किल काम करते हैं। क्या हम उन्हें सिर्फ श्रम के एक सस्ते स्रोत के रूप में देखते हैं या अपने समाज की एक उत्पादक संपदा के तौर पर?”

नीति की अनिवार्यता पर श्रीवास्तव : भारत में, सिर्फ घरों के भीतर या वर्गों के भीतर ही असमानता नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय असमानता भी तेजी से बढ़ी है, विशेषकर विकास केंद्रों और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार को लेकर फर्क बढ़ा है। असंगठित क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनसीईयूएस) में जो बिंदु हैं, उनमें अत्यंत छोटे स्तर पर ही समेकित पंजीकरण, और समेकित सामाजिक सुरक्षा की बात है, जिसका आश्वासन केंद्र और राज्य सरकारें संयुक्त रूप से दे सकती हैं। आप कम-लागत के श्रम पर आप कुशल समाज नहीं बना सकते। हमें अपनी श्रम नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।

नीति और आंकड़ों की कमी पर अलेक्स पॉल मेनन : मेरे पास 6.5 लाख प्रवासी मजदूरों के आंकड़े हैं जो छत्तीसगढ़ लौटे। इनमें से 40 फीसद काम की तलाश में उत्तर प्रदेश चले गए, 23 फीसद महाराष्ट्र और लगभग 14 फीसद तेलंगाना और अन्य जगहों पर गए। बड़ा हिस्सा दरअसल भवन निर्माण में है, और लगभग 50,000 ईंट भट्ठों में। जब संख्या की बात होती है, हमारे पास ढेर सारे लुभावने ग्राफ होते हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि हम आंकड़ों के खेल से हकीकत को देखें। आंकड़े जमा करने का मौजूदा तरीका जनसंख्या से शुरू होता है और तब हमारे पास होता है, एनएसएसओ।

अलेक्स पॉल मेनन श्रम आयुक्त एवं सचिव, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति।

हमारे पास एक श्रम ब्यूरो भी है जो आंकड़े जमा करता है, लेकिन इनमें सिर्फ मानक आंकड़े होते हैं, हम वास्तविक प्रवासियों की निशानदेही नहीं करते। प्रवासी पंजी भी है, जो पंचायत स्तर पर जरूरी है, लेकिन शहरी क्षेत्रों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। विश्वसनीय आंकड़ों के बगैर, अपनी नीतियों को किसी सबूत से नहीं जोड़ पाते, और वे विफल हो जाती हैं। देश भर में सूचना प्रद्यौगिकी की असीमित उपलब्धता से, मैं नहीं समझता कि हरेक मजदूर का आंकड़ा जमा करना और उसे एक सांगठनिक रूप देना मुश्किल है।

“हम वास्तविकता में प्रवासियों की निशानदेही नहीं करते। विश्वसनीय आंकड़ों के बगैर, अपनी नीतियों को किसी सबूत से नहीं जोड़ पाते, और वे विफल हो जाती हैं। देश भर में सूचना प्रद्यौगिकी की असीमित उपलब्धता से, मैं नहीं समझता कि हरेक मजदूर का आंकड़ा जमा करना और उसे एक सांगठनिक रूप देना मुश्किल होगा।”

कार्यबल के सशक्तिकरण पर राहुल कत्याल : हम सोचते हैं कि निर्माण कार्य में जुटे मजदूर कमजोर हैं, लेकिन वे लोग दरअसल भारत के वास्तविक कार्यबल हैं। अगर हम उन्हें सशक्त नहीं करेंगे, मैं नहीं समझता कि हमारे देश में विकास की कोई गतिविधि हो पाएगी। यह समय है कि हम दो बातों पर गौर करें। एक तो कुशलता विकास को बढ़ाने की जरूरत है।

राहुल कत्याल
प्रबंध निदेशक, कैपेसाइट
इंफ्राप्रोजेक्ट्स लिमिटेड

कार्यबल को अत्यानिक तकनीक का प्रशिक्षण होना चाहिए। और दूसरी बात है कि हम उन्हें जो सुविधाएं देते हैं उनका नियमन करें। अगर हम सबसे पहले आधारभूत सुधार करते हैं, बेहतर आवास, स्वच्छता, और भोजन देते हैं, भारत में हमारे कार्यबल की स्थिति बेहतर होगी।

यह नियमन सिर्फ सरकार की बेहद मजबूत नीतियों से संभव हो सकता है। “अगर हम सबसे पहले आधारभूत सुधार करते हैं, बेहतर आवास, स्वच्छता, और भोजन देते हैं, भारत में हमारे कार्यबल की स्थिति बेहतर होगी।”

राजन : आंकड़े बेहद जरूरी हैं। भारतीय प्रवासी सेवा की तरह का कुछ कम से कम तीन साल के लिए किया जा सकता है। दूसरी बात राजनीतिक भागीदारी की है।

आप ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ की बात कर रहे हैं, लेकिन चुनाव के समय प्रवासी क्यों मतदान नहीं कर पाते? आखिर में, आप प्रवास को एक किस्म के बोझ के तौर पर देखते हैं। आपको इस (सोच) से निजात पानी होगी।

प्रवासियों का उनके गंतव्य वाले राज्य की आय में क्या योगदान है। उदाहरण के लिए मुंबई शहर की आय में वे क्या योगदान करते हैं? इसी तरह, वे बिहार या राजस्थान या यूपी को जो धन भेजते हैं, उसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता है? वे प्रवासी हैं, लेकिन वे भारतीय हैं। वे अभी अदृश्य हैं, हमें उन्हें दृश्यमान बनाना होगा।

कार्यक्रम का पूरा वीड‍ियो ऊपर देख सकते हैैं। कार्यक्रम में मुख्‍य अत‍िथ‍ि झारखंड के मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन थे।