सुस्त अर्थव्यवस्था के बीच एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बीते सात सालों के दौरान लोगों की वेतन वृद्धि में 5 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट देखी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, यह 2011-12 से लेकर मार्च 2018 के बीच का आंकड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कम खपत और उच्च बेरोजगारी दर वेतन वृद्धि में गिरावट की बड़ी वजह हो सकती है।
बता दें कि इंस्टीट्यूट ऑफ ह्युमन डेवलेपमेंट ने इसी हफ्ते यह रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट में लोगों की आमदनी में (मजदूरी/ सैलरी) में दो समयावधि के दौरान तुलना की गई है। यह तुलना 2004-05 से लेकर 2011-12 और 2011-12 से लेकर 2017-18 के दौरान की गई है।
टेलीग्राफ की एक खबर के अनुसार, इस रिपोर्ट को अर्थशास्त्री रवि श्रीवास्तव और बालकृष्ण पाधी ने तैयार किया है। इस रिपोर्ट के तैयार करने के लिए अर्थशास्त्रियों ने पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे 2017-18 और 2004-05 के दौरान के कई अन्य रोजगार और बेरोजगारी संबंधी सर्वे का अध्ययन किया है।
डाटा के अनुसार, बीते सात सालों में वेतन वृद्धि दर में काफी गिरावट आयी है और यह 6.47 प्रतिशत से घटकर 1.05 प्रतिशत पर आ गई है। रिपोर्ट तैयार करने वाले अर्थशास्त्री रवि श्रीवास्तव का कहना है कि नोटबंदी के चलते अर्थव्यवस्था को झटका लगा और तभी सरकार ने जीएसटी लागू कर दिया। इसका अर्थव्यवस्था पर काफी बड़ा असर पड़ा।
रिपोर्ट के अनुसार, देश के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में 2011-12 से 2017-18 के बीच वेतन वृद्धि दर 1.02 प्रतिशत रही, जबकि इससे पहले के समय में यह 3.44 प्रतिशत थी। वहीं निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के वेतन में इस दौरान 0.99 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जबकि पहले यह दर 5.48 प्रतिशत थी।
ट्रांसपोर्ट, स्टोरेज और कम्यूनिकेशन, ट्रेड, होटल, रेस्टोरेंट, फाइनेंशियल सर्विस, रियल एस्टेट और पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन जैसे सेक्टर्स में वेतन वृद्धि में ना सिर्फ गिरावट देखी गई बल्कि नेगेटिव ग्रोथ रेट दिखाई दी।
बता दें कि PLFS सर्वे 2017-18 के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत है, जो कि साल 1973 के बाद से सर्वाधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष स्तर पर वेतन वृद्धि में गिरावट का सबसे ज्यादा असर पड़ा है। वहीं शहरी और रेगुलर कर्मचारियों की वेतन वृद्धि सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है।
