साल 1962 में जहां भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था। वहीं अब भारत ने हाल ही में चीन के साथ लगने वाली उस सीमा पर अमेरिका-निर्मित अभेद्य हथियार तैनात किए हैं। जिससे भारत की सैन्य ताकतों में इजाफा होगा। अमेरिकी निर्मित हथियार को तैनात कर दोनों देशों के मध्य चल रहे गतिरोध के बीच भारत की ओर से सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने का प्रयास किया गया है।

इसे भारत के उत्तर-पूर्व में भूटान और तिब्बत से सटे तवांग पठार पर केंद्रित किया गया है। जिसे चीन अपना हिस्सा मानता है लेकिन अभी भारत का इसपर नियंत्रण है। इस क्षेत्र का काफी राजनीतिक और सैन्य महत्व है। साल 1959 में चीनी आक्रमण से बचने के लिए बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा इसी के पास के एक पहाड़ी दर्रे को पार भारत आ गए थे। जिसके तीन साल बाद 1962 में दोनों देशों के बीच भयंकर युद्ध लड़ा गया था।

अब अमेरिका निर्मित चिनूक हेलीकॉप्टर, अल्ट्रा-लाइट टोड होवित्जर और राइफल्स के साथ-साथ स्वदेशी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और नए निगरानी प्रणाली को पूर्वी तिब्बत की सीमा से लगे क्षेत्रों में लगाया गया है। इससे पूर्वी तिब्बत सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों की सैन्य ताकत में इजाफा होगा। पिछले कुछ सालों से दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों के मजबूत होने के बाद ही अमेरिका निर्मित कई हथियार भारत को दिए गए हैं। 

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सेना का बड़ा हिस्सा पूर्वी क्षेत्र में चला गया है। जहां पिछले एक साल में कम से कम 30,000 सैनिकों को तैनात किया गया है। केंद्र सरकार 1962 में हुई लड़ाई को फिर से दोहराना नहीं चाहती है। जब चीनी सेना ने तवांग के कुछ हिस्सों पर अपना कब्ज़ा कर लिया था। इसी के मद्देनजर तवांग के दक्षिण में करीब 300 किलोमीटर दूर भारतीय सेना के हवाई बेस पर चिनूक हेलीकॉप्टर, इजराइल में निर्मित मानव रहित वाहनों समेत कई अत्याधुनिक हथियारों को तैनात किया गया है।  

गौरतलब है कि पिछले साल करीब 5 मई को पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन की सेनाएं आमने सामने आ गई थी। दोनों देशों के बीच उपजा यह विवाद तब हिंसक हो गया जब गलवान में हुए संघर्ष में करीब 20 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई। दोनों देशों के बीच उपजे विवाद को ख़त्म करने के लिए कोर कमांडर स्तर की 13 दौर की बैठक हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकल पाया है।