क्षय रोग के खिलाफ भारत की लड़ाई को बढ़ावा देते हुए शीर्ष स्वास्थ्य अनुसंधान निकाय भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने स्वदेशी रूप से विकसित दो नई परीक्षण किट को मान्यता दी है जो बेहद किफायती और रोग का जल्द पता लगाने का विकल्प प्रदान कर सकती हैं। क्षय (टीबी) का उन्मूलन मुख्य रूप से जल्द से जल्द और सटीक रूप से पता लगाने की क्षमता पर निर्भर करता है ताकि रोगियों का उपचार शुरू किया जा सके और सामुदायिक संचरण को रोका जा सके। जानकारों की मानें तो वर्तमान में टीबी के लिए पारंपरिक निदान तकनीक के जरिए टीबी निगेटिव की पुष्टि करने के लिए 42 दिन लग जाते हैं। इस किट से महज ढाई घंटे में रोग की पहचान की जा सकेगी।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने एक बयान में कहा कि टीबी परीक्षण के लिए हाल ही में मान्यता प्राप्त किट में ‘क्वांटिप्लस एमटीबी फास्ट डिटेक्शन किट’ भी शामिल है, जिसे तेलंगाना स्थित ह्यूवेल लाइफसाइंसेज द्वारा विकसित किया गया है। क्वांटिप्लस फेफड़ों की टीबी का पता लगाने के लिए मान्यता प्राप्त पहला ‘ओपन सिस्टम आरटी-पीसीआर’ परीक्षण है क्योंकि यह किसी भी मौजूदा पीसीआर मशीन पर काम कर सकता है और केवल खास मशीनों तक सीमित नहीं है।

वेल लाइफसाइंसेज द्वारा किया गया विकसित

इस संबंध में एक सूत्र ने कहा कि इसका मतलब है कि भारत भर की प्रयोगशालाएं, यहां तक कि जिनके पास विशेष ‘क्लोज्ड’ उपकरण नहीं हैं, अब मानक पीसीआर मशीनों का उपयोग करके तेजी से टीबी परीक्षण का विस्तार कर सकती हैं। इसके अलावा, ‘क्वांटिप्लस’ एक साथ 96 नमूनों का परीक्षण कर सकता है। सूत्र ने बताया कि थूक के नमूनों के जरिए वयस्कों में टीबी का पता लगाने से न केवल जल्द उपचार शुरू हो सकेगा, बल्कि परीक्षण खर्च में भी भारी अंतर आएगा। परिषद ने कहा है कि उसके द्वारा प्रमाणित दूसरा घरेलू नवाचार ‘यूनीएएमपी एमटीबी न्यूक्लिक एसिड टेस्ट कार्ड’ है। इसे भी वेल लाइफसाइंसेज द्वारा विकसित किया गया है।

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संचारी रोग प्रभाग की प्रमुख निवेदिता गुप्ता ने कहा कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की कठोर और सुव्यवस्थित सत्यापन प्रक्रिया के माध्यम से, हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि नवीन टीबी निदान शीघ्र मान्य हों। यह प्रयास स्वदेशी अनुसंधान और नवाचार को मजबूत करने, बीमारी की शीघ्र पहचान और उपचार में कमियों को दूर करने, और अंतत: देश को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में टीबी को समाप्त करने के करीब पहुंचने में मदद करने के भारत के संकल्प को दर्शाता है।