‘ऑपरेशन मेघदूत’ के 40 साल पूरे हो चुके हैं। साल 1984 में भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा किया था। पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जा करना चाहता था और उसने ‘ऑपरेशन अबाबील’ चलाया था। इसके जवाब में भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन मेघदूत’ को अंजाम दिया था।
13 अप्रैल को ही सियाचिन में सेना ने भारत का झंडा लहरा दिया। 1984 में 13 अप्रैल को ही बैसाखी थी और पाकिस्तान को भी अंदाजा नहीं था कि भारत त्यौहार के दिन ऐसा करेगा।
ऑपरेशन मेघदूत क्या है?
भारत सियाचिन के महत्व को पहले से ही समझता था और उसका मानना था कि इसपर किसी भी तरह से पाकिस्तान या चीन का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। पाकिस्तान ने 1963 में एक समझौते के तहत यहां की शक्सगाम घाटी को चीन को सौंप दिया। जैसे ही क्षेत्र पर चीन का नियंत्रण हुआ उसने तुरंत पर्वतारोहण अभियानों को शुरू कर दिया। चीन ऐसा करके इस क्षेत्र पर अपना कब्ज जाहिर करना चाहता था और अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता था। ऑपरेशन मेघदूत पिछले 40 साल से लगातार जारी है और जब तक पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ राजनीतिक समाधान नहीं हो जाता, तब तक यह जारी रहेगा।
सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र
सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र है और इसकी ऊंचाई करीब 20 हजार फीट है। सियाचिन में साल के हर महीने बर्फ जमी रहती है। यहां का तापमान -50 से -70 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। पाकिस्तान का लक्ष्य 17 अप्रैल 1984 तक सियाचिन पर कब्जा करने का था लेकिन भारतीय सेना ने अपने शौर्य का परिचय देते हुए उसे नाकाम कर दिया।
सेना के अधिकारियों ने शनिवार को कहा कि सियाचिन में भारत की युद्ध क्षमता और बढ़ी है। सेना ने कहा कि हेवी लिफ्ट हेलीकॉप्टर और लॉजिस्टिक ड्रोन को भी सेना के बेड़े में शामिल किया गया है और उससे सेना मजबूत हुई है। इसके अलावा सेना ने सभी इलाकों में काम आने वाले वाहनों की तैनाती भी की है और पटरियों का एक व्यापक नेटवर्क बिछाया है।
सिंधु नदी के उद्गम स्थल के पास स्थित सियाचिन ग्लेशियर
सियाचिन ग्लेशियर सिंधु नदी के उद्गम स्थल के पास स्थित है। यह पाकिस्तान के लिए जल संसाधन का महत्वपूर्ण स्रोत भी है। पीओके से भारत में घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों के लिए यह एक प्रमुख मार्ग था लेकिन जब से भारत ने इस पर कब्जा किया, उसके बाद से यह क्षेत्र सुरक्षित हो गया। सियाचिन पर भारत के कब्जे के बाद आतंकवाद को भी रोकने में मदद मिली है। सियाचिन में तैनात सैनिकों को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और यहां बर्फीले तूफान आते रहते हैं। इसके अलावा यहां पर हिमस्खलन भी आम बात है। सियाचिन में तैनात सैनिकों को ऑक्सीजन की कमी और भोजन की समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। हालांकि अब स्थितियां काफी बदल गई है और इसमें काफी सुधार हुआ है।