Karishma Mehrotra
सात देशों के एक छोटे समूह में भारत को भी चिन्हित किया गया है, जहां ट्विटर और फेसबुक के जरिए प्रोपगैंडा और अफवाह फैलाई जाती है। इन्हें ‘स्टेट एक्टर्स’ के नाम से जाना जाता है, जो सोशल मीडिया के जरिए विश्व भर की जनता को प्रभावित करने के लिए प्रौपगैंडा फैलाते हैं। यह खुलासा गुरुवार को ऑक्सफोर्ड में ‘कम्प्यूटेशनल प्रोपगैंडा प्रोजेक्ट की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में “साइबर ट्रूप्स” के कम से कम सात उदाहरण पाए गए और इनमें निजी तौर पर काम करने वाले सबसे ज्यादा “साइबर ट्रूप्स” एक्टिव दिखाई दिए।
रिपोर्ट के अनुसार, “सरकार या राजनीतिक दलों के लिए काम करने वालों के पास ऑनलाइन जनता की सोच को बदलने का टास्क होता है।” रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के अलावा मलेशिया, फिलिपिंस, यूएई और अमेरिका में इस तरह के प्रयोग का दायरा काफी ज्यादा है। रिपोर्ट में भारत के “साइबर ट्रूप्स” को “मध्यम-क्षमता” वाला बताया गया है। इसमें कहा गया है, “50-300 लोगों के आकार वाली कई टीमें, ढेर सारे कॉन्ट्रैक्ट और विज्ञापन पर खर्च का मूल्य 1.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर है। इस श्रेणी के अन्य देशों में ब्राजील, पाकिस्तान और ब्रिटेन है।
तीन वर्षों में शोधकर्ताओं ने 70 देशों की जांच की, जहां साइबर अभियान तीन तरह के काम करते हैं: मौलिक मानवाधिकारों को दबाने, राजनीतिक विरोध को खारिज करने और राजनीतिक असंतोष को बाहर निकालने के लिए। भारत में साइबर टुकड़ी की गतिविधि के दो उदाहरण हैं, एक राजनीतिक दल और राजनेताओं के लिए काम करना, दूसरे में सिविलि सोसाइटी से जुड़े संगठन भी इसका इस्तेमाल नागरिकों के विचारों को प्रभावित करने के लिए करते हैं।
अप्रैल में लोकसभा चुनाव के दौरान अफवाह फैलाने वाले फर्जी खातों के खिलाफ पहली बार बड़े स्तर पर कार्रवाई की गई। फेसबुक ने भारत से 700 से अधिक प्रोफाइल पेज, समूहों और खातों को हटा दिया। जिन लोगों के खाते हटाए गए हैं, उनमें कांग्रेस आईटी सेल और सिल्वर टच टेक्नोलॉजी नाम की कंपनी से जुड़े खाते शामिल थे। सिल्वर टच टेक्नोलॉजी नाम की कंपनी पहले सरकार और बीजेपी के लिए काम कर चुकी है।
भारत के संदर्भ में देखा गया कि प्रोपगैंडा का इस्तेमाल अफवाह फैलाने और मीडिया को भ्रमित करने, डाटा की रणनीति को आगे बढ़ाने, हैशटैग के जरिए कंटेंट को प्रचारित करने और ट्रोल आर्मी के जरिए उन लोगों की फजीहत करने में की गई, जो राय विशेष से सहमत नहीं होते थे। इनके टारगेट पर विरोधी पक्ष और पत्रकार ज्यादा थे।
रिपोर्ट में पाया गया कि 70 देशों में से 44 के कैंपेन सरकार द्वारा संचालित अभियानों के थे। वहीं, 45 में राजनीतिक दलों या राजनेताओं के नेतृत्व में अभियान थे। सोशल मीडिया द्वारा सोच प्रभावित करने की इस मुहिम में 150 फीसदी बढ़ोतरी देखी गई।