चंद्रयान-3 का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरना भारत के लिए एक गौरवशाली क्षण था। उससे साबित हो गया कि भारत अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी बन चुका है। अब उस दिन को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस घोषित कर दिया गया है। अंतरिक्ष अनुसंधान ने हमें कई नई तकनीकों का विकास करने में सक्षम बनाया है। उपग्रह संचार, जीपीएस, मौसम पूर्वानुमान जैसी सुविधाएं अंतरिक्ष अनुसंधान की ही देन हैं। अंतरिक्ष अनुसंधान से प्राप्त ज्ञान का उपयोग हमारी पृथ्वी की समस्याओं के समाधान में किया जा सकता है।

15 अगस्त 1969 को इसरो की स्थापना की गई

जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं और खाद्य सुरक्षा जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान बहुत जरूरी है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां विभिन्न देश मिलकर काम करते हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा और वैश्विक समस्याओं के समाधान में मदद मिलती है। पिछले कुछ दशक में भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में असाधारण प्रगति की है। भारत का अंतरिक्ष अभियान 1962 में शुरू हुआ था, जब विक्रम साराभाई की पहल पर भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति की स्थापना की गई। उसके बाद 15 अगस्त, 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की गई।

इसरो ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अधिक व्यापक भूमिका निभाई और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा दिया। 1972 में अंतरिक्ष विभाग की स्थापना की गई और इसरो को इस विभाग के अधीन लाया गया। शुरुआती वर्षों में इसरो ने छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित करने और राकेट प्रौद्योगिकी विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया। धीरे-धीरे, इसने अपनी क्षमतओं का विस्तार किया और अधिक जटिल अभियानों को अंजाम दिया। चंद्रमा की सतह पर भारत का पहला मिशन चंद्रयान था। 2023 में चंद्रयान-3 मिशन के माध्यम से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ‘साफ्ट लैंडिंग’ कर भारत ने इतिहास रच दिया। भारत चंद्रमा पर ‘साफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के पास उतरने वाला पहला देश बन गया है।

इसरो ने सूर्य का अध्ययन करने के लिए शुरू किया आदित्य मिशन

मंगलयान ने बहुत कम बजट में मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर एक नया इतिहास रचा। हाल ही में इसरो ने सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य मिशन शुरू किया है। यह सूर्य के बारे में महत्त्वपूर्ण डेटा एकत्र करेगा और हमारे सौर मंडल की बेहतर समझ विकसित करने में मदद करेगा। इसरो ने भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आइआरएनएसएस) विकसित की है, जो भारत और इसके आसपास के क्षेत्रों में सटीक नेविगेशन सेवाएं प्रदान करती है। इसने कई प्रकार के उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया है, जिनमें संचार उपग्रह, पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, नौवहन उपग्रह और प्रायोगिक उपग्रह शामिल हैं। इसरो ने एक साथ कई उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की क्षमता विकसित कर ली है। इससे न केवल प्रक्षेपण लागत में कमी आई है, बल्कि भारत की अंतरिक्ष तकनीक में भी एक नया आयाम जुड़ा है।

इसरो ने अधिकतर तकनीकों को स्वदेशी रूप से विकसित किया है, जिससे देश की आत्मनिर्भरता बढ़ी है। पीएसएलवी एक ऐसा राकेट है, जो कई उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में भेज सकता है। जीएसएलवी मार्क-3 भारी उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में सक्षम है। क्रायोजेनिक तकनीक में महारत हासिल कर भारत ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। क्रायोजेनिक तकनीक में अत्यंत कम तापमान पर द्रवों का उपयोग किया जाता है। राकेटों में, क्रायोजेनिक इंजन में द्रव हाइड्रोजन और द्रव आक्सीजन जैसे अत्यंत ठंडे ईंधन का उपयोग किया जाता है। क्रायोजेनिक इंजन से राकेट को अधिक शक्तिशाली धक्का मिलता है, जिससे भारी उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करना आसान हो जाता है।

इससे भारत की अंतरिक्ष क्षमता में काफी वृद्धि हुई है और अब भारत भारी उपग्रहों को स्वदेशी रूप से प्रक्षेपित करने में सक्षम है। स्वदेशी तकनीक ने भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया और देश की वैज्ञानिक प्रतिष्ठा बढ़ाई है। भविष्य में इसरो और अधिक उन्नत तकनीकों को विकसित करेगा, जिससे भारत एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति बन सके। इसरो ने एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है, जिसका नाम है ‘गगनयान’। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना है। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक मील का पत्थर साबित होगा। इस मिशन के जरिए भारत अंतरिक्ष यान, जीवन समर्थन प्रणाली और अन्य आवश्यक उपकरणों को स्वदेशी रूप से विकसित करने में सक्षम होगा।

यह मिशन भारत की क्षमता को प्रदर्शित करेगा कि वह मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकता है। यह मिशन अंतरिक्ष के बारे में नए ज्ञान और जानकारी हासिल करने में मदद करेगा। इससे भारत को अन्य अंतरिक्ष एजंसियों के साथ सहयोग करने का अवसर मिलेगा।

हालांकि मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन तकनीकी रूप से बहुत जटिल होता है और इसमें कई चुनौतियां होती हैं, जैसे कि अंतरिक्ष यान का डिजाइन, जीवन समर्थन प्रणाली, और सुरक्षा उपाय। यह एक महंगा मिशन है और इसके लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता होती है। इस मिशन के लिए कुशल वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और अंतरिक्ष यात्रियों की आवश्यकता होती है। इसरो इस मिशन को सफल बनाने के लिए लगातार काम कर रहा है। गगनयान मिशन भारत के लिए एक गौरव का क्षण होगा और यह भारत को अंतरिक्ष शक्तियों के समूह में शामिल करेगा। गगनयान मिशन की सफलता के बाद इसरो का अगला लक्ष्य चंद्रमा पर मानवयुक्त मिशन भेजना है।

यह मिशन हमें चंद्रमा के बारे में और अधिक जानने में मदद करेगा और भविष्य में अन्य ग्रहों पर मिशन के लिए एक आधार तैयार करेगा। इसरो भारत का अपना एक अंतरिक्ष स्टेशन विकसित करने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। उसका लक्ष्य है कि वह 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित कर ले। इस स्टेशन में कुल पांच ‘माड्यूल’ होंगे और पहला माड्यूल 2028 में शुरू होने की उम्मीद है। इस स्टेशन में एक साथ कई अंतरिक्ष यात्री रह सकेंगे और वे विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक प्रयोग कर सकेंगे।

इस स्टेशन के जरिए भारत अंतरिक्ष में वैज्ञानिकों के लंबे समय तक रहने और काम करने की अपनी क्षमता को बढ़ाएगा। इसके अलावा यह अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करेगा। यह स्टेशन अंतरिक्ष विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर गहन अध्ययन करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा। भविष्य में इस स्टेशन का उपयोग अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने और चंद्रमा या मंगल जैसे अन्य ग्रहों पर मिशन के लिए तैयार करने में किया जा सकता है।

इसरो के भविष्य के लक्ष्य अत्यंत महत्त्वाकांक्षी और देश के विकास के लिए अहम हैं। इसरो की उपलब्धियों ने न केवल भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक अग्रणी देश बनाया है, बल्कि युवाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में करिअर बनाने के लिए प्रेरित किया है। आने वाले समय में भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में और अधिक उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करेगा।