अनीषा दत्ता
कोरोना वायरस के चलते दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त देखी गई। ऐसे में कई देशों की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग में बदलाव आने की संभावना है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। दुनियाभर में भारत को लेकर पॉजिटिव माहौल बनाये रखने के लिए नैरेटिव मैनेजमेंट का मसौदा तैयार किया गया है।
दरअसल 2020 के मध्य में कोविड -19 महामारी के चलते देश में बने हालात लेकर दुनिया के थिंक-टैंकों, सूचकांकों और वैश्विक मीडिया की नकारात्मक प्रतिक्रियाओं के बीच आशंका है कि भारत की सॉवरेन रेटिंग को जंक ग्रेड में डाउनग्रेड किया जा सकता है। ऐसे में भारतीय वित्त मंत्रालय के आर्थिक विभाग ने “नकारात्मक टिप्पणियों” का मुकाबला करने के लिए एक नैरेटिव मैनेजमेंट प्लान तैयार किया।
साल 2020 के जून में वित्त मंत्रालय में तत्कालीन प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल(जोकि अब प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य हैं) ने एक प्रजेंटेशन तैयार किया, जिसमें “भारत की सॉवरेन रेंटिग को प्रभावित करने वाले कारकों और उस पर उठाये जाने वाले कदम के बारे बताया।
द इंडियन एक्सप्रेस ने 36 पेज के इस प्रजेंटेशन के हवाले से बताया है कि किसी देश की सॉवरेन रेटिंग के 18-26 प्रतिशत प्रभावी कारकों में उस देश में चल रहे शासन, राजनीतिक स्थिरता, कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, मीडिया की आजादी का आंकलन शामिल होता है। इसमें कहा गया है कि ज्यादातर मामलों में, इन प्रभावी कारकों पर भारत की रैंकिंग उसके साथी देशों से काफी नीचे है। इसका असर सॉवरेन रेटिंग के कम होने पर पड़ता है।
सान्याल के मुताबिक रेटिंग एजेंसियों ने इन रेटिंग पर प्रभाव डालने वाले कारकों के लिए विश्व बैंक के वर्ल्ड गवर्नेंस इंडिकेटर (WGI) को एक प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि इस बात का खतरा है कि थिंक टैंक, सर्वेक्षण एजेंसियों और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा भारत पर नकारात्मक टिप्पणी के चलते हम WGI स्कोर में गिरावट देख सकते हैं। मुमकिन है कि इससे भारत की सॉवरेन रेटिंग जंक ग्रेड में चली जाये।
प्रजेंटेशन में सान्याल ने कहा कि सॉवरेन रेटिंग को जंक ग्रेड में जाने से बचाने के लिए वैश्विक थिंक-टैंक और सर्वेक्षण एजेंसियों तक पहुंचना और सामान्य रूप से भारत की पॉजिटिव इमेज बनाये रखना काफी जरूरी है।
गौरतलब है कि 2019-20 में अधिकांश रिपोर्टों में भारत को लेकर “नकारात्मक टिप्पणी” होने का अनुमान लगाया गया था। खास तौर पर, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019, नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019, एनआरसी और पीएम मोदी और भाजपा की ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ राजनीति, मंदिर निर्माण के मुद्दे पर भारत के खिलाफ नकारात्मक टिप्पणी होने का अनुमान लगाया गया।
बता दें कि मूडीज ने 1 जून, 2020 को भारत को Baa2 से Baa3 (रेटिंग का सबसे निचला ग्रेड) में कर दिया था। वहीं फिच रेटिंग्स ने भी 18 जून, 2020 को भारत के दृष्टिकोण को स्थिर से नकारात्मक में बदल दिया था। सान्याल ने कहा कि भारत के बारे में “लगातार” नकारात्मक टिप्पणी भी सॉवरेन रेटिंग एजेंसियों के लिए आधार बन रही थी। हालांकि उम्मीद है कि रेटिंग एजेंसियां इससे आगे बढ़ेंगी।
सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग क्या होती है?: बता दें कि विभिन्न देशों की सरकारों की उधार चुकाने की क्षमता को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां सॉवरेन रेटिंग का निर्धारण करती हैं। इसे तय करने में इकॉनोमी, मार्केट और राजनीतिक जोखिम को आधार माना जाता है। रेटिंग से पता चलता है एक देश आने वाले समय में अपने कर्जे चुका सकेगा या नहीं? इसमें टॉप इन्वेस्टमेंट ग्रेड से लेकर जंक ग्रेड तक की रेंटिंग होती है। गौरतलब है कि जंक ग्रेड को डिफॉल्ट श्रेणी में माना जाता है।
एजेंसियां आमतौर पर आउटलुक रिवीजन के आधार पर देशों की रेटिंग तय करती है। आउटलुक रिवीजन निगेटिव, स्टेबल और पॉजिटिव मानकों पर होता है। किसी देश का आउटलुक पॉजिटिव होने पर उसकी रेटिंग के अपग्रेड होने की संभावना बढ़ जाती है। इस सॉवरेन रेटिंग को पूरी दुनिया में स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी), फिच और मूडीज इन्वेस्टर्स ही तय करती हैं।
एसएंडपी और फिच रेटिंग के लिए बीबीबी+ (BBB+) को मानक रखती हैं, वहीं मूडीज बीएए3 (Baa3) मानक रखती है। यह सबसे ऊंची रेटिंग है। इन्हीं के आधार पर इन्वेस्टर्स अपने इनवेस्टमेंट का प्लान तय करते हैं। कई देश अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए दुनियाभर के निवेशकों से कर्ज लेते हैं। यह निवेशक कर्ज देने से पहले रेटिंग पर गौर करते हैं। जिन देशों की सॉवरेन रेटिंग कम जोखिम वाली होती है उन देशों को कम ब्याज दरों पर कर्ज मिल जाता है।