अगर संघर्षविराम की स्थिति न हो तो सीमा पर हो रही गोलीबारी सहज ही यह आभास देती है कि जैसे भारत और पाकिस्तान के बीच में रुक-रुक कर युद्ध हो रहा है। लेकिन दोनों देशों के बीच में 2003 के एक समझौते के तहत संघर्षविराम की स्थिति है। इस संघर्षविराम को लेकर जिस तरह से दोनों देशों में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू होता है, उससे भी ऐसा ही लगता है कि जैसे दोनों युद्ध को तत्पर हों।
सीमा के उस पार सेना, सलाहकार और खुफिया तंत्र इतना हावी है कि इधर देश के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ रूस के उफा में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाते हैं, उधर सीमा पार से कोई सलाहकार पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की ताकत दिखाने की कोशिश करता है।
दोनों देशों के बीच में होने वाली बातचीत के दौरान या पहले सीमा पार से ऐसी नापाक कोशिशें कोई नई बात नहीं है। जुलाई में जब उफा में दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच बैठक हुई थी तब भी सीमा पार से गोलीबारी करके देश के जवानों का खून बहाया गया। उस द्विपक्षीय बातचीत पर करीब से नजर रखे पत्रकार मौके पर जहां दोनों देशों के प्रमुखों के हाव-भाव की नाप-तोल में लगे थे वहीं सीमा पार सरकार के तार हिलाने वाले सेना और सलाहकार इस बातचीत को पटरी से उतारने की साजिश रच रहे थे। नतीजा यह रहा कि सीमा पार से बिना किसी तरह उकसाने के बावजूद जो गोलीबारी हुई उसे लेकर सरकार को पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित को बाकायदा तलब करके अपनी मंशा सुलझानी पड़ी।
सीमा पार से देश की आजादी के पर्व की भी कोई परवाह नहीं की गई, बस उस दिन हमला तीव्रतर था। सीमा पार से न सिर्फ सेना पर बेवजह हमला करके गोलीबारी की गई और मोर्टार दागे गए बल्कि निर्दोष गांववालों को भी निशाना बनाया गया। इस रोज हुई गोलीबारी में पांच ग्रामीण मारे गए। हर बार की तरह यह हमला भी कश्मीर की सीमाओं पर ही केंद्रित था।
सीमा के इस पार भी देश के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों की कश्मीर में कमी न थी। कश्मीर की धरती पर पाकिस्तान का झंडा फहराया गया और देश विरोधी जुलूस निकाले गए। जैसे इतना ही काफी न था। अलगाववादी नेता दुख्तरान ए मिल्लत की आसिया अंदराबी ने देश की धरती से पाकिस्तान में चल रही एक रैली को मोबाइल के जरिए संबोधित करके जहर उगला।
यही वह समय भी था जब सीमा पार से तीन आतंकी देश में घुसे, लेकिन कश्मीर के दो बहादुरों की बहादुरी के सदके, उनमें से एक नवेद को जिंदा काबू किया गया जिसने अपनी मुंहजबानी मौके पर ही लश्कर ए तैयबा के नापाक इरादों की पोल खोली। इससे पहले गुरदासपुर में आतंकियों ने पुलिस पर धावा बोल कर पंजाब की शांति को एक बार फिर से भंग करने की कोशिश की। मुद्दा यह है कि इतना सब कुछ महज संयोग नहीं हो सकता। यह सब पिछले एक महीने में हुआ जबकि दोनों देशों में बातचीत के रास्ते खोलने के लिए उच्चतम स्तर पर बातचीत चल रही थी।
यह सच है कि सीमा पार संघर्षविराम का उल्लंघन 2011 के बाद से बढ़ता ही चला गया है। लेकिन पिछले साल यह कुछ ज्यादा ही रहा। देश में सत्ता परिवर्तन के दौरान और बाद में अलगाववादी स्वर ऊंचे हुए और सीमा पर शांतिभंग की कोशिशें तेज हुई हैं। 2011 में संघर्षविराम के उल्लंघन के 62 मामले हुए थे जो 2014 में बढ़ कर 562 हो गए। इस वर्ष भी अब तक 245 बार से ज्यादा सीमा पार से संघर्षविराम को तोड़ा जा चुका है। करीब 51 मामले तो हाल ही के दिनों के ही हैं। अतीत को देखें तो 2011 के 62 मामलों के बाद 2012 में यह संख्या 114 और 2013 में 347 थी। लेकिन दिल्ली में सत्ता परिवर्तन के बाद ये कोशिशें बढ़ती ही जा रही हैं।
भारत की ओर से शांति की जैसी कोशिश होती है सीमा पार से उसका जवाब कभी भी उतनी ही गर्मजोशी से नहीं दिया जाता। जिस तरह इस बार मोदी ने पहल करके पाकिस्तान से बातचीत शुरू की, उसी तरह 2014 में विदेश सचिव स्तर की बातचीत का खाका खींचा गया था, लेकिन उससे पहले ही पाकिस्तानी उच्चायुक्त की कश्मीरी अलगाववादियों से हुई बैठक की वजह से उसे वापस लेना पड़ गया। इस तरह के फैसलों का सीधा असर सीमा पर गोलीबारी से होता है। बासित को तलब करके भारत ने जो कड़ा संदेश देना चाहा उसके प्रतिकार में पाकिस्तान ने देश पर संघर्षविराम का 70 बार उल्लंघन करने का आरोप जड़ दिया और पाकिस्तान सरकार ने भी इस्लामाबाद में भारत के उपायुक्त को तलब कर लिया।
ऐसे में 23 अगस्त को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के विदेश व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज के बीच होने वाली मुलाकात से उपजी उम्मीद की लौ भी थरथराने लगती है। खास तौर से तब जब यह ध्यान में आता है कि ये वही सरताज अजीज हैं जिन्होंने उफा में हुई बैठक के अगले ही दिन यह बयान जारी किया था कि कश्मीर एजंडे पर न हुआ तो बातचीत हो नहीं सकती। भारत ने बेशक इस बयान को रद्द कर दिया हो और इसके बावजूद अजीज भी बैठक को तैयार हों, लेकिन यह डर बना रहेगा कि बैठक में इस पर कोई अड़ियल रुख अपनाया गया तो बातचीत का हश्र क्या होगा?
खास तौर पर तब भी जब यह याद रखने की जरूरत है कि ये वही सरताज अजीज हैं जिन्होंने 2014 में संयुक्त राष्ट्र को एक पत्र लिख कर सीमा पर चल रहे संघर्ष में हस्तक्षेप की प्रार्थना की थी। यह दीगर है कि संयुक्त राष्ट्र ने अजीज की यह प्रार्थना ठुकरा दी और दोनों देशों को आपसी सहमति से अपने आपसी मसले सुलझाने की सलाह दी। लेकिन इतिहास गवाह है कि द्विपक्षीय वार्ताओं का पहले कोई सुखद अंजाम नहीं हुआ। दोनों देशों के बाशिंदे आपस में मिलने को चाहे जितने उत्सुक हों और ‘मेरे सामने वाली सरहद पर’ लिखा कोई गाना यू ट्यूब पर रिकार्ड तोड़ रहा हो, पाक हुकूमत का अड़ियलपन सदा ही शांति व सुलह के आड़े आया है।
सच है कि यह बैठक एक ऐसे नाजुक मोड़ पर हो रही है जब दोनों देशों में सीमा और कश्मीर में तनाव अपने चरमोत्कर्ष पर है। एक तरफ जहां पाक सेना सीमा पर हमला कर रही है वहीं आतंकवादी गुट घुसपैठ करके कश्मीर या पंजाब में शांति भंग पर आमादा हैं। दोनों देशों के बीच बातचीत को सिरे लगाने के लिए नवेद के रूप में एक जिंदा सबूत से ज्यादा और क्या हो सकता है?
खुद आतंकवाद की मार झेल रहे पाकिस्तान को इस बात की क्या गारंटी है कि जिन युवकों को गुमराह करके आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है वे उसी की धरती पर अशांति फैलाने को जेहादी नहीं बन जाएंगे।
अब इसमें किसी को क्या संदेह है कि भारत पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच जो बैठक कल होने वाली है उसका अंजाम क्या होगा? लेकिन इसके बावजूद उम्मीद की एक किरण है, जो दोनों देशों के बीच शांति के पैरोकारों के बीच हमेशा जगमगाती रहती है। जैसा तनाव इस बार की बातचीत के पहले है वैसा कभी नहीं रहा। प्रधानमंत्रियों के बीच उफा में हुई मुलाकात से अब तक सीमा पार से इस बातचीत को शुरू होने से पहले ही खत्म करने की कोशिशें अनवरत हैं।
सीमा पर देश के जवानों की शहादत और पाकिस्तानी हुकूमत की ओर से कश्मीरी अलगाववादियों को दी जा रही शह के बीच यह मुलाकात हो रही है। अमेरिका से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक की इस मुलाकात पर नजर है। लेकिन किसी की भी पाकिस्तान को बाज आने की कोई सलाह नहीं। पिछली बार अलगाववादियों से मुलाकात पर जो तूफान उठा था पाकिस्तान ने उससे भी कोई सबक नहीं सीखा।
इस बातचीत से एक दिन पहले भी पाकिस्तान ने उलटा चोर कोतवाल को डांटे वाली मसल ही चरितार्थ की है। यह किसी से छुपा नहीं कि पाकिस्तान पहले दिन से ही इस बातचीत को रद्द कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। एक दिन पहले ही यह इल्जाम भी जड़ दिया गया कि भारत बातचीत से पीछे हट रहा है।
दोनों देशों को कल की बैठक यह सोच कर करनी होगी कि उन्हें सीमा के आर-पार आतंकवाद से निपटने का ठोस हल ढूंढ़ना है वरना कहीं इस बैठक का हश्र भी 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व यूसुफ रजा गिलानी के बीच हुई बैठक जैसा ही न हो। लेकिन नाकामी से डर कर कोशिश छोड़ देना भी लड़ने से पहले हथियार डालने से कम नहीं। लिहाजा एक बार और!
आगरा से बेपटरी हुआ रिश्ता:
1998 में भारत के पोकरण और पाकिस्तान के चगाई हिल्स में परमाणु विस्फोटों के साथ भारत-पाक रिश्ते भी घायल होते गए। इसके बाद 1999 में हुए करगिल युद्ध ने कश्मीर मसले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाकर रख दिया। दोनों देशों के कलह पर अंतरराष्ट्रीय नजर पड़ने के बाद भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ जुलाई 2001 में आगरा में शिखर वार्ता के लिए मिले। हालांकि दो ध्रुवों के इस मिलन के पीछे अमेरिका के हाथ होने की बात कही गई थी। लेकिन यह वार्ता मुकम्मल कूटनीतिक तैयारी के बिना ही शुरू कर दी गई। इसलिए बातचीत की ‘समझौता एक्सप्रेस’ बेपटरी हो गई। परवेज मुशर्रफ ने भारत सरकार को पूर्व सूचना दिए बगैर ही
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को बातचीत के अंश जारी कर दिए, जिससे भारत को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। पाकिस्तान के जारी अंश में भारत का पक्ष नकार दिया गया और कश्मीर के मामले को अधिक पेचीदा बनाकर पेश किया गया। इसके बाद मुशर्रफ सरकार ने भारत में आतंकवादी घटनाओं को बढ़ावा दिया। परवेज मुशर्रफ और उनकी सरकार ने भारत के साथ कोई भी करार इस शिखर वार्ता के दौरान नहीं किया।
* 2009 में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाक के उनके समकक्ष यूसुफ रजा गिलानी मिस्र में ‘नाम’ सम्मेलन से इतर मिले। भविष्य की वार्ताओं के लिए साझा बयान जारी करने पर सहमत हुए। अगस्त में भारत ने मुंबई हमलों से संबंधित डोजियर मुहैया कराए। इसी समय पाकिस्तान सरकार ने स्वीकार किया कि मुंबई हमलों की आंशिक साजिश पाकिस्तान में रची गई होगी, पर सहायता पाक खुफिया एजंसियों ने की, इससे सीधा इनकार किया।
* सितंबर 2013 में मनमोहन सिंह और नवाज शरीफ संयुक्त राष्ट्र महासभा से इतर न्यूयार्क में मिले। दोनों नेता सीमा पर तनाव खत्म करने को सहमत हुए।
* दस जुलाई 2015 को रूस के उफा में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ की द्विपक्षीय वार्ता हुई। भारत ने 2008 के मुंबई हमले का मुद्दा उठाया, जिस पर पाकिस्तान ने अपने यहां इस मामले की सुनवाई तेजी से किए जाने का भरोसा दिया।
दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि शांति और विकास को बढ़ावा देने को तय करना भारत और पाकिस्तान की सामूहिक जिम्मेदारी है। ऐसा करने के लिए, वे सभी लंबित मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार हैं। आतंकवाद से संबंधित सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की नई दिल्ली में बैठक होना भी तय हुआ।
सुपुर्द-ए-खाक भी सुकून से नहीं:
पाक गोलीबारी में 15 अगस्त को मारे गए बसोनी के सरपंच करामात हुसैन को जब अगले दिन सुपुर्द-ए-खाक किया जा रहा था तो अंतिम संस्कार की जगह पर भी पाक ने गोले दागे। स्थानीय लोगों ने बताया कि सीमा पार से लगातार हो रही गोलीबारी के कारण मारे गए लोगों का ठीक से अंतिम संस्कार तक नहीं हो सका। मेंधर के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट शेर सिंह ने कहा कि सीमावर्ती इलाकों के लोगों से घरों के अंदर ही रहने को कहा गया है।
अंदराबी का अंदाज ए बगावत:
अतिवादी महिला संगठन दुख्तरान ए मिल्लत की प्रमुख आसिया अंदराबी ने पाकिस्तान में रह रहे मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की अगुआई वाले गुट जमात उद दावा की 14 अगस्त को लाहौर में आयोजित रैली को फोन पर संबोधित किया और पड़ोसी देश के लोगों को उनके स्वतंत्रता दिवस पर बधाई दी। सईद को अंदराबी के भाषण के दौरान मंच पर बैठे देखा गया।
संबोधन से कुछ घंटे पहले अंदराबी ने अपने आवास पर पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मनाया था। दुख्तरान ए मिल्लत के दर्जनों कार्यकर्ता शहर के बचपुरा इलाके में एकत्र हुए जहां उन्होंने पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मनाया। इससे पहले अंदराबी ने इसी साल 23 मार्च को पाकिस्तान का राष्ट्रीय दिवस मनाया था और उस देश का झंडा फहराया था। इसके बाद पुलिस ने उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां निरोधक कानून के तहत एक मामला दर्ज किया था।
उलटे भारत पर बरसे बासित:
अगस्त में पाक की गोलीबारी से सीमा पर हुई छह मौतों के बाद 16 अगस्त को भारत सरकार ने पाक उच्चाचुक्त अब्दुल बासित को तलब किया। साउथ ब्लॉक में बैठक के बाद बाहर आए बासित ने उलटकर भारत की ओर से ही जुलाई और अगस्त में एलओसी पर व अंतरराष्ट्रीय सीमा पर 70 बार संघर्ष विराम उल्लंघन का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह पता लगाने के लिए एक प्रभावी प्रणाली की जरूरत है कि संघर्ष विराम उल्लंघन में कौन लोग शामिल हैं।
भारत पर जड़े आरोप:
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) स्तर की पहली वार्ता से पहले 20 अगस्त को पाकिस्तान ने भारत पर आतंकवाद में शामिल होने का आरोप लगाया और कहा कि देश के अंदर के दुश्मनों को कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी करने के लिए विदेश से धन मिलता है।
पाकिस्तान के गृह मंत्री निसार अली खान ने पंजाब के मंडी बहुद्दीन में पंजाब रेंजर्स के पासिंग आउट परेड समारोह में कहा कि गोलाबारी कर सीमावर्ती गांवों पर प्रहार कर रहे ‘दुश्मन’ पाकिस्तान में ‘आतंकवाद फैलाने में’ लगे हैं। इसी दुश्मन का आतंकवाद के पीछे हाथ है जो एक तरफ तो दोस्ती की बात करता है लेकिन दूसरी तरफ नियंत्रण रेखा और कार्यकारी सीमा के समीप नागरिकों पर गोले दागता है। यह वही दुश्मन है जिसकी आंखों में हम वाघा बार्डर पर हर रोज झांकते हैं। देश के अंदर के दुश्मनों को कानून व्यवस्था की समस्या पैदा करने के लिए बाहर से पैसे मिलते हैं।
करगिल के बाद 2003 का समझौता:
1999 में भी भारत-पाक वार्ता का दौर जारी था, तो दूसरी ओर सीमा पार से घुसपैठ की कोशिशें तेज हो गई थीं। और इसी का नतीजा निकला करगिल युद्ध। तब भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे और भारत में राजग की ही सरकार थी।
यानी राजनीतिक हालात तकरीबन एक जैसे हैं। 26 नवंबर 2003 को अटल बिहारी वाजपेयी की राजग सरकार की अगुआई में दोनों देशों के बीच संघर्षविराम का समझौता हुआ। समझौते के बाद पहले तीन साल तो हालात सामान्य रहे। इसके बाद पाक ने संघर्षविराम पर कभी अमल नहीं किया।