अमित बैजनाथ गर्ग

दुनिया में अक्षय ऊर्जा उत्पादक देशों में भारत अब तीसरे स्थान पर है। यह अपनी दस फीसद ऊर्जा का उत्पादन हवा और धूप की मदद से कर रहा है, जबकि अमेरिका बारह फीसद, चीन, जापान और ब्राजील दस फीसद और तुर्किए तेरह फीसद बिजली का उत्पादन हवा और धूप से कर रहे हैं। यूरोपीय संघ 21 फीसद और यूनाइटेड किंगडम 33 फीसद पवन और सौर ऊर्जा उत्पादित कर रहे हैं, जबकि रूस अपनी सिर्फ 0.2 फीसद सौर और पवन ऊर्जा उत्पादित कर रहा है। इस तरह भारत में कोयले से बन रही बिजली में करीब 8.3 फीसद की गिरावट आई है।

एक अनुमान के अनुसार, 2035 तक भारत में ऊर्जा की मांग 4.2 फीसद वार्षिक की दर से बढ़ेगी, जो पूरी दुनिया में सबसे तेज होगी। वहीं विश्व के ऊर्जा बाजार में 2016 में भारत की मांग पांच फीसद थी, जो 2040 में ग्यारह फीसद होने का अनुमान है। 2014 के बाद से नवीकरणीय यानी अक्षय ऊर्जा को जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों का विकल्प बनाने पर उच्च प्राथमिकता से काम हो रहा है। आज भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 36 फीसद अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी है। बीते कुछ सालों में यह ढाई गुना बढ़ी है। इसमें सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी तेरह गुना तक बढ़ी है। स्पष्ट है कि 2035 से पहले भारत नवीकरणीय ऊर्जा के सभी लक्ष्य हासिल कर लेगा।

एक अनुमान के अनुसार, मध्यप्रदेश के रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर परियोजना से 15.7 लाख टन कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है। यह धरती पर 2.60 करोड़ पेड़ लगाने के बराबर है। भारत में अक्षय ऊर्जा की असीम संभावनाएं हैं। जाहिर है, जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए जो प्रतिबद्धता भारत ने व्यक्त की है, वह इसकी विश्व-दृष्टि की उद्घोषणा का ही हिस्सा है।

भारतीय दृष्टि प्रकृति के शोषण के स्थान पर संतुलित दोहन की समर्थक है। देश ने जिस प्रभावशाली तरीके से दुनिया के सामने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का प्रकल्प खड़ा किया, वह पेरिस समझौते के समांतर सही मायनों में भारतीय लोकमंगल की परिकल्पना का रूप है।

भारत में औसतन पांच हजार लाख किलोवाट-घंटा प्रति वर्ग मीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है। एक मेगावाट सौर ऊर्जा के लिए तीन हेक्टेयर समतल भूमि चाहिए। इस लिहाज से भारत के पास इस क्षेत्र में विपुल संभावनाएं हैं। सरकार ने इस शाश्वत ऊर्जा भंडार को देश की ऊर्जा जरूरतों से जोड़कर जो लक्ष्य तय किए हैं, वह एक सपने को साकार करने जैसा ही है।

‘थिंक टैंक एजंसी’ ‘एंबर’ की रपट के अनुसार, थर्मल पावर प्लांट दुनिया के लिए 33 फीसद ऊर्जा का उत्पादन कर रहे हैं। यह रपट 48 देशों के ऊर्जा संबंधी आंकड़ों पर आधारित है, जिसमें भारत भी शामिल है। ये 48 देश विश्व की कुल बिजली का करीब 83 फीसद उत्पादन करते हैं। वहीं ऊर्जा उत्पादन में पवन और सौर की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। सरकार का दावा है कि सौर माड्यूल और पैनल विनिर्माण क्षेत्र में 2030 तक भारत आत्मनिर्भरता हासिल कर लेगा।

इधर, देश में वाणिज्यिक इमारतों को कम बिजली खपत वाला और ऊर्जा दक्ष बनाने की योजना ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ईसीबीसी) को अब तक कई राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश अनिवार्य कर चुके हैं। इसके तहत इमारतों का निर्माण इस रूप में किया जाता है, जिससे बिजली की खपत कम से कम हो।

ईसीबीसी के तहत इमारतों की डिजाइन बनाने के लिए तीन विकल्प होते हैं। पहले में जहां 15 से 20 फीसद की बिजली की बचत होती है, वहीं दूसरे और तीसरे विकल्प में क्रमश: 30 से 35 फीसद और 40 से 45 फीसद बिजली की बचत होती है। वहीं इस योजना में लागत 5 से 8 फीसद बढ़ती है। ईसीबीसी से 2030 तक 125 अरब यूनिट बिजली बचत का अनुमान है, जो दस करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के बराबर है।

‘इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजंसी’ की ओर से जारी ‘रिन्यूएबल कैपेसिटी स्टैटिस्टिक्स’ रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में वैश्विक स्तर पर अक्षय ऊर्जा क्षमता में 9.6 फीसद की वृद्धि हुई है। हालांकि इसके बावजूद यह बढ़ोतरी वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को सीमित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके लिए अक्षय ऊर्जा में वर्तमान दर से तीन गुना वृद्धि की जरूरत है।

रिपोर्ट के मुताबिक 2022 के अंत में वैश्विक स्तर पर कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता रिकार्ड 295 गीगावाट की वृद्धि के साथ 3,372 गीगावाट पर पहुंच गई थी। वहीं पिछले वर्ष नई बिजली क्षमता में करीब 83 फीसद की हिस्सेदारी अक्षय ऊर्जा की थी। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद नवीकरणीय ऊर्जा में रिकार्ड स्तर पर विकास जारी है, जो जीवाश्म ईंधन से हो रहे बिजली उत्पादन में गिरावट की पुष्टि करता है। निरंतर रिकार्ड वृद्धि ऊर्जा संकट के बीच अक्षय ऊर्जा के लचीलेपन को दर्शाती है।

एक अध्ययन के अनुसार, भारत में एलईडी बल्ब और ट्यूबलाइट के इस्तेमाल से उजाले के लिए खर्च होने वाली बिजली में करीब 75 फीसद की कमी आई है। भवनों में बिजली की खपत को लेकर भी कई अध्ययन हुए हैं, जो बताते हैं कि ऊर्जा दक्ष उपकरणों के इस्तेमाल से करीब 30 फीसद बिजली खपत कम की जा सकती है।

यह बिजली बिहार और झारखंड जैसे राज्यों के एक साल की जरूरत के बराबर है। अध्ययन बताते हैं कि ऊर्जा दक्षता के मानकों को लागू कर घरेलू और आवासीय भवनों में बड़े पैमाने पर बिजली को बचाया जा सकता है। अगर भवनों में ऊर्जा दक्षता के मानक लागू हो जाएं, तो अतिरिक्त 30 फीसद बिजली बच सकती है। उद्योग जगत सबसे ज्यादा 42 फीसद बिजली खर्च करता है। दूसरे स्थान पर घरेलू खपत 24 फीसद है। व्यावसायिक भवनों में बिजली की खपत आठ फीसद है। भवनों की कुल खपत 32 फीसद है, लेकिन उनमें ऊर्जा दक्षता के मानकों का क्रियान्वयन सबसे कम हुआ है।

इंटरनेशनल एनर्जी एजंसी के अध्ययन के अनुसार, देश में उद्योग क्षेत्र में 38 फीसद बिजली खपत पर ऊर्जा दक्षता के मानक लागू हुए हैं, जबकि घरेलू बिजली सिर्फ सात फीसद ऊर्जा दक्ष हो पाई है। व्यावसायिक भवनों में यह 19 फीसद के करीब है। परिवहन में महज दो फीसद। कुल 23 फीसद बिजली का उपयोग ही ऊर्जा दक्षता के उपायों के साथ हो रहा है, जबकि 77 फीसद बिजली के खर्च में ऊर्जा दक्षता नहीं अपनाई जा रही है।

भवनों में ऊर्जा दक्षता मानकों की अपार संभावनाएं हैं। नए व्यावसायिक भवनों के लिए ‘बिल्डिंग कोड’ लागू किए गए हैं, लेकिन पुराने भवनों और आवासों में ऊर्जा दक्ष उपकरणों के इस्तेमाल से बिजली की खपत को कम किया जा सकता है। ‘ब्यूरो आफ एनर्जी एफिशिएंसी’ ने अब तक घरों में इस्तेमाल होने वाले छब्बीस उपकरणों को ऊर्जा दक्ष बनाया है। इनका इस्तेमाल बढ़ रहा है, लेकिन इनमें से सभी के लिए मानक अनिवार्य नहीं हैं। कई बिजली चालित उपकरणों के दक्षता मानक अभी भी तय नहीं हैं।

घरों, भवनों में इस्तेमाल होने वाले बिजली उपकरणों की सूची में सौ से ज्यादा उपकरण आते हैं। यह सुनिश्चित करना होगा कि भवनों में इस्तेमाल होने वाले सभी उपकरण दक्षता मानकों के दायरे में हों और उन्हें अनिवार्य रूप से लागू किया जाए। सौर ऊर्जा को आधार बनाकर लोगों में ऊर्जा दक्षता को लेकर चेतना बढ़ी है, लेकिन जिस प्रकार लोगों और सरकार ने एलईडी को लेकर अभियान चलाया, वैसा अन्य उपकरणों के मामले में नहीं हुआ। इसके लिए कठोर कदम उठाने होंगे।