भारत-मालदीव विवाद के बीच जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने दोनों देशों के अच्छे दिनों को याद किया है। उन्होंने कहा कि जब मालदीव पर शैतानों ने कब्ज़ा करने की कोशिश की थी, तब भारत की सेना ने उनकी मदद की थी। फारुक अब्दुल्ला ने कहा कि जब सेना का काम पूरा हो गया, तब हमारी सेना ने वहां पर कब्ज़ा नहीं किया, बल्कि हमने उनसे कहा कि अब हम जा रहे हैं, हमारा काम पूरा हो गया। आइए आपको बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और देश के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाने वाले फारुक अब्दुल्ला किन शैतानों की बात कर रहे हैं।

जानिए कौन थे शैतान?

‘शैतानों’ को जानने के लिए हमें मालदीव में हुई 3 और 4 नवंबर 1988 को हुई घटनाएं याद करनी होगी। हमें जानना होगा कि कैसे भारत ने मालदीव में तख्तापलट रोका। मालदीव भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और इसकी राजधानी माले तिरुवनंतपुरम से 600 किमी से थोड़ी अधिक दूर है। इसमें हिंद महासागर में 90,000 वर्ग किमी में फैले लगभग 1,200 निचले मूंगा द्वीप शामिल हैं।

मौमून अब्दुल गयूम (जन्म 1937) आर्थिक समस्याओं और राजनीतिक अस्थिरता के बीच 1978 में मालदीव के राष्ट्रपति बने। अब्दुल गयूम आगे बढ़े और 30 वर्षों तक अपने देश पर शासन किया लेकिन 1980 के दशक में उन्हें तीन बार (1980, 1983 और 1988 में) तख्तापलट के प्रयासों का सामना करना पड़ा।

1988 का तख्तापलट मालदीव के बिजनेसमैन अब्दुल्ला लुथुफी और अहमद सगारू नासिर के दिमाग की उपज थी, जिसे उग्रवादी श्रीलंकाई तमिल संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) के नेता उमा महेश्वरन का समर्थन प्राप्त था। महीनों की तैयारियों के बाद 3 नवंबर की सुबह 80 PLOTE लड़ाके लुथुफी और नासिर सहित मालदीव के कुछ स्थानीय लोग, कुछ लंकाई जहाजों पर सवार होकर माले पहुंचे थे।

विद्रोही मशीनगनों, एके-47, ग्रेनेड और मोर्टार से लैस थे। उन्होंने मालदीव के एकमात्र सशस्त्र बल NSS के मुख्यालय सहित शहर में महत्वपूर्ण इमारतों पर कब्जा करने का लक्ष्य रखा था। वे अपने उद्देश्यों में सफल रहे और उन्होंने दोपहर तक माले के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण कर लिया। हालांकि अब्दुल गयूम खुद एक सेफ हाउस में भाग गए थे।

दुनिया भर के देशों को दी गई जानकारी

जैसे ही तख्तापलट हुआ, दुनिया भर के देशों को इसकी जानकारी दी गई। मालदीव के तत्कालीन उच्चायुक्त अरुण बनर्जी को उनके नई दिल्ली स्थित घर पर सुबह लगभग 6.30 बजे जगाया गया। सुबह 9 बजे तक साउथ ब्लॉक में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अध्यक्षता में क्रिटिकल कमेटी की बैठक चल रही थी। भारतीय सेना मुख्यालय को संभावित ऑपरेशन के बारे में पहले ही सूचित कर दिया गया था।

आगरा में ब्रिगेडियर फारुख बुलसारा के नेतृत्व में 50वीं इंडिपेंडेंट पैराशूट ब्रिगेड को सक्रिय किया गया। कर्नल सुभाष सी जोशी की कमान में 6 पैरा को ऑपरेशन का नेतृत्व करने के लिए तैयार किया गया। दोपहर 3:30 बजे तक वायु सेना के 44 स्क्वाड्रन और पैराशूट ब्रिगेड मोहरा हवाई अड्डे पर थे और निर्देशों का इंतजार कर रहे थे। उच्चायुक्त भी सैनिकों को जानकारी देने के लिए आगरा पहुंच चुके थे।

ब्रिगेडियर जोशी (तत्कालीन कर्नल) ने हंसते हुए 2021 में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “टीम में उच्चायुक्त के होने का फायदा यह हुआ कि उन्होंने हमें ब्रीफिंग रूम में एक किताब दी जिससे हमें बहुत सारी जानकारी मिली जो उपयोगी थी। यह एक पर्यटक गाइड पुस्तक थी जो आपको कनॉट प्लेस में मिल सकती है। यहीं पर हमारी पहली नजर माले पर पड़ी।”

भारत को जब इसकी खबर हुई तब स्थानीय समयानुसार रात लगभग 9.30 बजे दो इल्यूशिन आईएल-76, भारतीय सैनिकों और उच्चायुक्त को लेकर आगरा से बिना रुके उड़ान भरते हुए मालदीव के मुख्य हवाई अड्डे हुलहुले में उतरे। विद्रोहियों को इसकी भनक लग चुकी थी। ऑपरेशन में शामिल भारतीय वायु सेना के अनुभवी अशोक चोरडिया ने अपनी पुस्तक ऑपरेशन में लिखा है, “विद्रोहियों को भारतीय सैनिकों की वास्तविक संख्या का अंदाजा नहीं हुआ और फिर उन्होंने अपना मिशन छोड़ने और भागने का फैसला किया।”

पैराट्रूपर्स ने हवाई अड्डे को कर लिया सुरक्षित

अब्दुल गयूम को बचाने के लिए पास के द्वीप माले की ओर बढ़ने से पहले पैराट्रूपर्स ने तुरंत हवाई अड्डे को सुरक्षित कर लिया। इस समय तक लुथुफी और कुछ विद्रोहियों ने मालदीव के परिवहन मंत्री सहित सात बंधकों के साथ भागने के लिए एक कमर्शियल जहाज को हाईजैक कर लिया था। हालांकि कुछ विद्रोहियों ने द्वीप छोड़ दिया था लेकिन अंत में सभी को पकड़ लिया गया। इसके बाद राष्ट्रपति अब्दुल गयूम को 4 नवंबर की सुबह लगभग 5 बजे तक सुरक्षित कर लिया गया था।

ब्रिगेडियर बुलसारा के आदेश के तहत पैराट्रूपर्स ने भाग रहे विद्रोही जहाज पर गोलीबारी की, जिससे उसकी गति धीमी हो गई। अब जहाज को रोकने और बंधकों को छुड़ाने की बारी नौसेना की थी। फ्रिगेट आईएनएस बेतवा (कोच्चि से) और आईएनएस गोदावरी (ऑस्ट्रेलिया की यात्रा से लौटते हुए) को सक्रिय किया गया और भागते हुए जहाज को श्रीलंकाई क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले रोकने का काम सौंपा गया।

भारतीय पैराट्रूपर्स करीब 15 दिनों से अधिक समय तक माले में रहे। हालांकि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने भी चुनाव जीतने के बाद अपनी बयानबाजी कम कर दी है। चुनाव परिणाम आने के तीन दिन बाद उन्होंने भारतीय हाई कमिश्नर मुनु महावर से मुलाकात की थी और मालदीव और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और बढ़ाने पर चर्चा की।