भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। एक दशक पूर्व, 1.9 लाख करोड़ डालर जीडीपी की भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में दसवें स्थान से छलांग लगाकर वर्ष 2024 में 3.94 लाख करोड़ डालर जीडीपी के साथ पांचवें स्थान पर पहुंच चुकी है। यह 2030 तक 6.69 लाख करोड़ डालर, वर्ष 2040 तक 16.13 लाख करोड़ डालर तथा वर्ष 2047 में 30 लाख करोड़ डालर जीडीपी का विकसित भारत बनने के साथ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का मंसूबा रखती है। पर भारी बेरोजगारी तथा गरीबी के साथ-साथ बढ़ती आर्थिक असमानता भारतीय अर्थव्यवस्था के सम्मुख प्रमुख चुनौती है। एशिया-प्रशांत मानव विकास रपट 2024, भारत में दीर्घकालिक प्रगति की सुनहरी तस्वीर प्रस्तुत करती है, लेकिन अमीर-गरीब के मध्य बढ़ती आर्थिक असमानताएं परेशानी का सबब हैं।

विश्व असमानता रपट 2022 के अनुसार, भारत दुनिया में सबसे अधिक आर्थिक असमानता वाला बड़ा देश है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र का वैश्विक आर्थिक वृद्धि में योगदान लगभग दो-तिहाई है, दक्षिण एशिया की आबादी में दस फीसद अमीरों का आधे से भी अधिक राष्ट्रीय आय पर नियंत्रण है। विश्व असमानता डेटाबेस 2022-23 के अनुसार भारत में ऊपरी संपन्न एक फीसद आबादी की आय का जीडीपी में हिस्सा 22.6 फीसद तथा संपत्ति में 53 फीसद है। साथ ही, ऊपरी 10 फीसद आबादी की आय का हिस्सा 57 फीसद और संपत्ति का 77 फीसद, दुनिया में सर्वाधिक है। निचली 50 फीसद आबादी की आय में लगातार गिरावट दिखी है तथा उनका हिस्सा जीडीपी में घटकर मात्र 13 फीसद तथा संपत्ति में मात्र 4.1 फीसद रह गया है।

दुनिया के अमीर व्यक्तियों की ‘फोर्ब्स’ सूची के अनुसार वर्ष 2014 तथा वर्ष 2022 के दौरान, भारतीय अरबपतियों की शुद्ध संपत्ति में 280 फीसद की वृद्धि हुई, जो इसी अवधि में राष्ट्रीय आय में 27.8 फीसद वृद्धि से लगभग दस गुना अधिक है। अरबपतियों की संपत्ति एक दशक में लगभग दस गुना बढ़ गई और उनकी कुल संपत्ति वित्तवर्ष 2018-19 के भारत के केंद्रीय बजट से भी अधिक थी। भारत में अरबपतियों की संख्या वर्ष 1991 में एक से बढ़कर 2000 में नौ, 2011 में 52, 2017 में 101, 2022 में 162 तथा 2024 में बढ़कर 271 हो गई। यह दुनिया भर में मात्र चीन और अमेरिका से ही कम है। वर्ष 2017 में सबसे अमीर एक फीसद की संपत्ति में वृद्धि 73 फीसद हुई, जबकि निचली आधी आबादी की संपत्ति में मात्र एक फीसद की वृद्धि दिखी।

अमीर तेजी से हो गए और अमीर

‘आक्सफैम’ रपट के अनुसार भारत में अमीर तेजी से अमीर हो रहे हैं, जबकि गरीब न्यूनतम मजदूरी तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के लिए संघर्षरत हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक रपट के अनुसार भारत आय तथा संपत्ति असमानता वाले शीर्ष देशों में अवश्य है, लेकिन प्रतिदिन 2.15 डालर के अंतरराष्ट्रीय गरीबी माप के आधार पर बहुआयामी गरीबी, वर्ष 2004 में 40 फीसद से घटकर वर्ष 2015-16 में 25 फीसद तथा वर्ष 2020-21 में 15 फीसद रह गई। इस दौरान प्रतिव्यक्ति आय 442 डालर से बढ़ कर 2022 में 2,389 डालर हो गई। घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार प्रतिव्यक्ति औसत मासिक उपभोग व्यय ग्रामीण भारत में 3,773 रुपए और शहरी भारत में 6,459 रुपए है, जो ग्रामीण तथा नगरीय असमानता को दिखाता है।

तीव्र आर्थिक वृद्धि दर के बावजूद आय तथा संपत्ति के वितरण में असमानता निरंतर बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों में श्रम आय का हिस्सा विश्व औसत से कम है। भारत की पुरुष श्रम आय 82 फीसद है, जबकि महिला श्रम शक्ति मात्र 23 फीसद हिस्से के साथ 18 फीसद कमाती है। श्रमिकों की बचत तथा निवेश क्षमता कम है, परिणामस्वरूप, असमानता बढ़ रही है। यूएनडीपी की रपट के अनुसार आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा से कुछ ही ऊपर है, जिनके गरीबी में गिरने के जोखिम बरकरार रहते हैं। इसमें अधिकतर असंगठित क्षेत्र, विशेषकर महिलाएं, असंगठित श्रमिक तथा प्रवासी श्रमिक शामिल हैं।

भारत स्वास्थ्य पर न्यूनतम खर्च करने वाला देश

भारत दुनिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर न्यूनतम खर्च करने वाले देशों में एक है। स्वास्थ्य सेवा में निजी क्षेत्र का दखल बढ़ा है। नतीजतन, स्वास्थ्य सेवाओं तक मात्र भुगतान क्षमता संपन्न लोगों की पहुंच है। आम भारतीयों की जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं है। भारत का मातृत्व मृत्यु में 17 फीसद और बाल मृत्यु में 21 फीसद हिस्सा वैश्विक अनुपात से अधिक है। वैश्विक कुपोषित आबादी में भारत का हिस्सा एक चौथाई है। भारत की लगभग 74 फीसद आबादी पोषक आहार का खर्च उठाने में असमर्थ है। 39 फीसद आबादी को पौष्टिक आहार अनुपलब्ध है। भारत का वर्ष 2023 में विश्व गरीबी सूचकांक (जीएचआइ) 28.7 है, जो भूख की गंभीरता पैमाने के अनुसार खतरनाक है। रपट में भारत में कुपोषण दर, सर्वाधिक 18.7 है। वैश्विक लैंगिक अंतर रपट 2023 के 146 देशों में भारत 127वें स्थान पर है।

मात्र कुछ व्यक्तियों के हाथों में संपत्ति का संकेंद्रण, पीढ़ियों से असमानता का प्रमुख कारण है। भ्रष्टाचार, सामाजिक विभेद, गलत व्यावसायिक व्यवहार, असफल भूमि सुधार जैसी वजहें आर्थिक असमानता का कारण हैं। आर्थिक विकास ने कुछ क्षेत्रों या समूहों को असमान रूप से लाभान्वित कर आय असमानता बढ़ाई है। स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुंच से असमानताएं बढ़ी हैं। कुशल और अकुशल श्रमिकों की आय में अंतर, अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा उपाय तथा कमजोर सामाजिक कल्याण कार्यक्रम गरीब आबादी को असहाय बनाते हैं। असंगठित श्रम बाजार में कार्य तथा आय संबंधी अनिश्चितताएं और कमजोर न्यूनतम वेतन कानून सहित कमजोर श्रम बाजार नीतियां आय में असमानता का कारण हैं।

पारदर्शिता के लिए भ्रष्टाचार से मुक्ति जरूरी

भारत में कुल जीएसटी संग्रहण का 64 फीसद हिस्सा 50 फीसद गरीब आबादी से, जबकि मात्र चार फीसद हिस्सा दस फीसद अमीर आबादी से प्राप्त होता है, जो कर प्रणाली की अप्रगतिशीलता का स्पष्ट लक्षण है। आर्थिक समानता हेतु प्रशासन में पारदर्शिता, भ्रष्टाचार से मुक्ति तथा नागरिकों की भागीदारी जरूरी है। निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु सामुदायिक विकास परियोजनाओं में कार्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करना होगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, रोजगार गारंटी योजनाओं तक सार्वभौम पहुंच सुनिश्चित कर असमानता पर नियंत्रण पाया जा सकता है। विनिर्माण क्षेत्र में कृषि क्षेत्र के अदृश्य श्रम के रोजगार की संभावनाएं तलाशनी होंगी। महिला सशक्तीकरण हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और उद्यमिता में लैंगिक समानता को बढ़ावा देकर समावेशी नीतियों के जरिए सामाजिकार्थिक समानता की ओर बढ़ा जा सकता है।

भारत की तीव्र आर्थिक विकास दर मुख्यत: बुनियादी ढांचे में निवेश, बढ़ती घरेलू मांग तथा मजबूत निजी खपत के कारण है। आर्थिक समानता हेतु कर प्रणाली में व्यापक सुधार कर इसे प्रगतिशील बनाने के साथ ही सामाजिक बुनियादी ढांचे, जैसे आवास, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा तथा कौशल विकास और खाद्य सुरक्षा में व्यापक सार्वजनिक निवेश जरूरी है। कोशिश होनी चाहिए कि आम नागरिक आर्थिक संवृद्धि में भागीदार और हिस्सेदार बने, यही आर्थिक समानता का जरिया बनेगा।

भारत की तीव्र आर्थिक विकास दर मुख्यत: बुनियादी ढांचे में निवेश, बढ़ती घरेलू मांग तथा मजबूत निजी खपत के कारण है। आर्थिक समानता हेतु कर प्रणाली में व्यापक सुधार कर इसे प्रगतिशील बनाने के साथ ही सामाजिक बुनियादी ढांचे, जैसे आवास, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा तथा कौशल विकास और खाद्य सुरक्षा में व्यापक सार्वजनिक निवेश जरूरी है। कोशिश होनी चाहिए कि आम नागरिक आर्थिक संवृद्धि में भागीदार और हिस्सेदार बने, यही आर्थिक समानता का जरिया बनेगा।