चीन के मेडिकल स्कूलों में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों के लिए केंद्र सरकार ने ‘सामान्य चुनौतियों’ का हवाला देते हुए एक एडवाइजरी जारी की है। चीन स्थित भारतीय दूतावास ने भारतीय छात्रों की पढ़ाई को लेकर एडवाइजरी जारी की है। दरअसल पूर्व के कुछ भारतीय छात्रों ने चीन के विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे शिक्षकों के अंग्रेजी कौशल के बारे में शिकायत की थी। इसको लेकर भारतीय दूतावास ने एडवाइजरी जारी की है।
बीजिंग में भारतीय दूतावास द्वारा जारी एडवाइजरी में बताया गया, “दूतावास को पूर्व के छात्रों से कई फीडबैक प्राप्त हुए हैं जिन्होंने पहले इस तरह के कार्यक्रम को पूरा किया है। सबसे आम चुनौतियों में से एक इन विश्वविद्यालयों में चीनी शिक्षकों के अंग्रेजी भाषा का कौशल है। कुछ छात्रों ने कुछ विश्वविद्यालयों में इन शिक्षकों के रोगियों के साथ जुड़ने के मामले में व्यावहारिक या नैदानिक अनुभव की कमी के बारे में भी शिकायत की है।”
इसके साथ ही नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन का लिंक भी साझा किया, जिसमें बताया गया कि 2015 से 2021 तक FMG परीक्षा में बैठने वाले 40,417 छात्रों में से केवल 6387 ने ही इसे पास किया है। सीधे शब्दों में कहें तो 45 स्वीकृत चीनी विश्वविद्यालयों में से क्लिनिकल मेडिसिन प्रोग्राम का अध्ययन करने वाले केवल 16% छात्र ही इस समय भारत में प्रैक्टिस करने के योग्य पाए गए थे।
कोरोना महामारी के दौरान वीजा प्रतिबंध के कारण 23,000 से अधिक भारतीय छात्र चीन वापस नहीं जा पाए और अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पाए। पिछले कई महीनों से यह छात्र लगातार आवाज उठा रहे थे कि सरकार उनके लिए कोई कदम उठाए। हालांकि अब चीनी सरकार ने एक बार फिर से वीजा बैन को हटा लिया है लेकिन अभी भी भारतीय छात्रों को चीन जाने में परेशानी हो रही है, क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई डायरेक्ट फ्लाइट नहीं है।
बता दें कि चीन और भारत के बीच जून 2020 से ही तनाव चल रहा था। गलवान घाटी में हुए झड़प के बाद से यह तनाव शुरू हुआ था लेकिन अब इसमें कमी आ रही है क्योंकि 8 सितंबर को एक प्रेस नोट जारी हुआ, जिसमें बताया गया कि दोनों पक्ष अब गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स (पीपी-15) के क्षेत्र में विघटन पर सहमत हो गए हैं।