भारत और चीन की सेना के बीच लद्दाख के गलवान रिवर एरिया में हुए टकराव से दोनों देशों के बीच एक बार फिर तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। भारत के 20 सैनिकों के मारे जाने के बाद से ही देश में लगातार चीन के साथ रिश्तों को लेकर मंत्रियों के बीच समीक्षा जारी है। गौरतलब है कि पिछले 40 दिन से लद्दाख पर भारत-चीन के सैनिकों के बीच जारी यह आमना-सामना तीन दशकों में सबसे लंबा है। वहीं, एलएसी पर इतने सैनिकों की मौत 53 सालों में सबसे ज्यादा है। अफसरों का कहना है कि भारत-चीन सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए 1993 के बाद जितने भी समझौते हुए, चीन की इस हरकत से उन सब पर चोट की है।

अफसरों का कहना है कि दोनों सेनाओं का यह टकराव राजनयिक स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच रिश्ते बेहतर करने की कोशिशों पर भी चोट है। बता दें कि पीएम मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही दोनों नेताओं के बीच 18 बा मुलाकात हुई है। मोदी इस दौरान 70 सालों में देश के अन्य किसी भी प्रधानमंत्री के मुकाबले सबसे ज्यादा 5 बार चीन गए हैं। पिछले साल अक्टूबर में ही मोदी और जिनपिंग की महाबलिपुरम में मुलाकात हुई थी।

1993 के बाद के सभी कूटनीतिक समझौतों पर पड़ा असर
गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच 1993 में सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए कुछ द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे। इन्हीं में बॉर्डर के लिए कुछ प्रोटोकॉल भी तय हुए थे। यह समझौते 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चीन दौरे का नतीजा माने जाते हैं। प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की चीन यात्रा के दौरान उनके और प्रधानमंत्री नी पेंग के बीच ऐसे कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे। इसके बाद 1996 में भी कुछ समझौते हुए थे, जिनमें एलएसी पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच आत्मविश्वास बढ़ाने की बात की गई थी। यह समझौते चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन की भारत यात्रा पर प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा से मुलाकात के दौरान हुए थे।

इसके बाद 2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के चीन दौरे पर सीमा से जुड़े किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव स्तर की मैकेनिज्म खड़ी करने पर बात हुई थी। इसके बाद पीएम मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में दोनों देशों की सेनाओं के बीच एक बार फिर एलएसी पर आत्मविश्वास बढ़ाने और 2013 में बॉर्डर की सुरक्षा में सहयोग करने पर समझौता हुआ था। इनमें से दो समझौते तब हुए थे, जब मौजूदा विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन में भारत के राजदूत थे।