पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर कोर कमांडर स्तर की वार्ता के बाद भारत और चीन- दोनों देशों ने तनाव कम करने के लिए बातचीत पर जोर दिया है। कहा जा रहा है कि तय मापदंडों के आधार पर बातचीत जारी रहेगी। लेकिन सीमा पर हाल के विवाद को रक्षा विशेषज्ञ और सेना के पूर्व कमांडर अतीत के मामलों से काफी अलग मान रहे हैं। इसमें पाकिस्तान को लेकर कूटनीतिक आयाम भी जुड़े हैं जो बेशक चीन से संबंधित हैं, लेकिन भारत के साथ संबंधों को भी प्रभावित कर रहे हैं। जाहिर है त्रिपक्षीय वार्ता की नीति भले ही जुबान पर है, वार्ता के कारक बहुध्रुवीय और बहुपक्षीय हैं।
आक्रामकता में बढ़ोतरी
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन हर साल घुसपैठ की कोशिश करता है। तीन हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर कहीं न कहीं हर साल घटनाएं होती रही हैं। इस दफा चीन की घुसपैठ एक साथ कई इलाकों में हुई है- पूर्वी लद्दाख के हॉट स्प्रिंग, सिक्किम, पैंगोंग त्सो और गलवान। उसकी बढ़ती आक्रमकता और पाकिस्तान के साथ पीओके में परियोजनाओं का जाल- दोनों कवायद एक साथ चल रही है। रक्षा विशेषज्ञ इसे गंभीर मान रहे हैं।
सवाल है कि चीनी चाहते क्या हैं, क्यों एक साथ इतने इलाकों में घुसपैठ हो रही है और क्यों उनकी आक्रमकता बढ़ रही है। भारत और चीन के सैनिक फिंगर एक से आठ के बीच जिन-जिन इलाकों में आगे बढ़कर गश्त लगा रहे हैं, उनको लेकर नए सिरे से विवाद उठा है। चीनी सैनिक फिंगर दो, चार और आठ में घुसे हैं और फिंगर आठ तक भारतीय सैनिकों को गश्त से रोक रहे हैं। कोर कमांडर स्तर की वार्ता में भारत ने इलाकों का ब्योरा रखा है, जिसपर चीनी पक्ष से अब तक कोई जवाब नहीं आया है।
पाकिस्तान का ताजा कारक
चीन ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में 1,124 मेगावॉट क्षमता वाले पनबिजली परियोजना पर सहमति दे दी है। यह बिजलीघर झेलम नदी के पास लगाया जाएगा। नए बिजलीघर पर चीन और पाकिस्तान के बीच सहमति ऐसे समय में बनी है, जब पूर्वी लद्दाख और सिक्किम में सीमा पर भारत और चीन की सेनाएं आमने सामने हैं।
पाकिस्तान के ऊर्जा मंत्री उमर अयूब ने इस योजना के बारे में कहा है कि कोहला हाइड्रो पावर प्लांट परियोजना पर चीनी कंपनी थ्री गोरजेज कॉरपोरेशन सहयोग कर रही है। यह ढाई अरब अमेरिकी डॉलर की बड़ी परियोजना है। चीन पहले ही अपनी वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बना रहा है, जो पीओके से गुजरता है और भारत इसका भी विरोध करता है।
इनके अलावा गिलगित- बाल्तिस्तान में पाकिस्तान ने चीन के साथ 442 अरब डॉलर की लागत से डायमर भाशा बांध बनाने का समझौता किया है। भारत ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर, लद्दाख समेत सभी इलाके भारत का हिस्सा रहे हैं और आगे भी रहेंगे। भारत की आपत्तियों पर कोई ध्यान दिए बिना चीन और पाकिस्तान इस पूरे इलाके में गलियारा परियोजना के तहत विकास परियोजनाओं का जाल फैलाते जा रहे हैं।
विवाद और समाधान की राह सीमा विवाद, जैसे- पैंगोंग त्सो मोरीरी झील का विवाद-2019, डोकलाम गतिरोध-2017, अरुणाचल प्रदेश में आसफिला क्षेत्र पर विवाद के अलावा परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत का प्रवेश, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता आदि पर चीन का प्रतिकूल रुख रहा है। बेल्ट एंड रोड पहल संबंधी विवाद, जैसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे विवाद के अलावा सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर चीन द्वारा पाकिस्तान का बचाव एवं समर्थन मुद्दा बनता रहा है।
चीन ने हिंद-प्रशांत महसागरीय क्षेत्र में भारत की भूमिका पर भी असंतोष जाहिर किया है। ऐसे में समाधान के कुछ सूत्र हैं, जिनको लेकर हाल की कोर कमांडर स्तर पर बैठक में भी चर्चा की गई। मसलन, दोनों देशों को नेताओं के रणनीतिक मार्गदर्शन का पालन करना चाहिए, मैत्रीपूर्ण सहयोग की सामान्य प्रवृत्ति को विकसित करने पर बल देना होगा, पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग की गति का विस्तार करना चाहिए, भारत व चीन को अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मामलों पर समन्वय को बढ़ाना चाहिए और दोनों देशों को आपसी मतभेदों का उचित प्रबंधन करना होगा।
राह के रोड़े
भारत तथा चीन के बीच द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक चिंताओं के विभिन्न विषयों पर विचारों के आदान-प्रदान के लिए लगभग 50 संवाद तंत्र हैं। इनके जरिए विभिन्न मुद्दों पर बात होती है। सीमाओं को परिभाषित करने के साथ ही उनका सीमांकन और परिसीमन किए जाने की जरूरत है ताकि आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के भय को दूर किया जा सके। बीते 10 साल के द्विपक्षीय व्यापार में चीन ने भारत के मुकाबले 750 बिलियन डॉलर की बढ़त बना ली है, जिसे कम करना जरूरी है।
व्यापार घाटे को कम करने में सेवा क्षेत्र एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है। भारत और चीन के बीच की समस्याओं को अल्पावधि में हल किया जाना कठिन है, लेकिन मौजूदा रणनीतिक अंतर को कम करने, मतभेदों को कम करने और यथास्थिति बनाए रखने जैसे उपायों से समय के साथ आपसी संबंधों को और बेहतर बनाया जा सकता है।
क्या कहते हैं जानकार
दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हुए, हमें चीन के साथ दबाव बनाते हुए वार्ता करनी होगी। हकीकत में एलएसी पर वार्ता तो 2002 से ही रुकी पड़ी है, जब चीन ने पश्चिमी सेक्टर में नक्शों के आदान-प्रदान को लेकर आपत्ति उठाई थी। हमें शुरुआत वहां से करनी होगी।
– लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) एसएल नरसिम्हन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य
पश्चिमी और पूर्वी सेक्टर में फर्क है। चीन ने अक्साई चिन में 38 हजार किमी जमीन दबा रखी है। उसका दावा है कि भारत ने अरुणाचल के तौर पर उसकी 90 हजार किमी जमीन दबा रखी है। चीन ने 1960 और 1980 में अदला-बदली का संकेत दिया था।
– अशोक कंठ, चीन में भारत के पूर्व राजदूत