संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार की जरूरत बताते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि यह बात समझ से परे है कि भारत और अफ्रीका महाद्वीप को इस प्रतिष्ठित परिषद में स्थाई सदस्यता नहीं मिली हुई है और दोनों को यह विसंगति समाप्त करने की दिशा में काम करने की जरूरत है।

सुषमा ने खेद जताते हुए कहा कि देशों की संख्या के नाते सबसे बड़ा महाद्वीप होने के बावजूद अफ्रीका और दुनिया की आबादी के छठे हिस्से वाले भारत को अब तक यूएनएससी में स्थाई सदस्यता प्राप्त नहीं हुई है।

सुषमा ने तीसरे भारत-अफ्रीका संपादक फोरम के उद्घाटन भाषण में कहा, ‘‘इस संदर्भ में बड़ा मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधारों का है। सुरक्षा परिषद 1945 की वैश्विक व्यवस्था का प्रतिनिधि बना हुआ है। यह बात समझ से परे है कि सुरक्षा परिषद में आज अफ्रीका से कोई स्थाई प्रतिनिधित्व नहीं है, जो देशों की संख्या के मामले में सबसे बड़ा महाद्वीप है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह बात भी समझ से बाहर की है कि दुनिया की आबादी की छठे हिस्से वाले भारत में सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य बनने की सभी पात्रताएं हैं, फिर भी वह इससे बाहर है। हमें इस विसंगति को समाप्त करने के लिए मिलकर काम करना होगा और मीडिया की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है।’’

सुषमा ने कहा कि भारत, अफ्रीका और अन्य विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन तथा वैश्विक व्यापार के दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हाथ मिलाकर काम करना होगा। उन्होंने इसके लिए इस साल दिसंबर में पेरिस में आयोजित होने वाले जलवायु परिवर्तन पर सीओपी-21 सम्मेलन और केन्या में 10वें विश्व व्यापार संगठन के मंत्री स्तर के सम्मेलन का हवाला दिया।

सुषमा ने कहा, ‘‘इन दोनों सम्मेलनों में भी भारत, अफ्रीका और अन्य विकासशील देशों को मिलकर काम करना होगा ताकि हमारा विकास का एजेंडा प्रभावित नहीं हो।’’उन्होंने कहा कि दक्षिण-दक्षिण सहयोग को आगे बढ़ाने के लिहाज से 2015 एक ऐतिहासिक वर्ष रहा है।

इससे पहले उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी के डिप्लोमेटिक एन्क्लेव में भारत-अफ्रीका मैत्री के प्रति समर्पित एक रोज गार्डन के उद्घाटन समारोह में अफ्रीका को नये अवसरों का क्षेत्र बताया और कहा कि भारत इस महाद्वीप के आर्थिक विकास के प्रति ओर वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसके एकीकरण के लिए प्रतिबद्ध हैं।

उन्होंने कहा कि पिछले 15 साल में दोनों के बीच सहयोग ऐसे स्तर पर पहुंच गया है जहां अफ्रीका के साथ भारत का व्यापार 20 गुना बढ़ गया है और आज यह 70 अरब डॉलर से अधिक के स्तर पर है। भारत ने अफ्रीका में 30 से 35 अरब डॉलर का कुल निवेश किया है।

विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘भारत अफ्रीका को अपने विस्तारित पड़ोस के रूप में देखता है। अफ्रीका के साथ हमारी साझेदारी अद्वितीय है और प्राचीन समु्रदी यात्रियों, व्यापारियों, विद्वानों तथा भिक्षुओं के माध्यम से बने हमारे सभ्यतागत संपर्कों के समय की है।’’

उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी के कूटनीतिक क्षेत्र में भारत-अफ्रीका मैत्री के प्रति समर्पित एक रोज गार्डन का उद्घाटन करते हुए कहा, ‘‘आज एशिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होने के नाते भारत अफ्रीकी देशों के साथ अपनी आर्थिक साझेदारी को अत्यंत महत्व दे रहा है।’’

महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘अफ्रीकी महाद्वीप और भारत विविध सोच के साथ आपस में जुड़े रहे हैं। इनमें से एक दर्शन गांधी और मंडेला का है। दोनों ने अपने-अपने राष्ट्रों को अपने मानवतावादी सिद्धांतों और दर्शन के माध्यम से आजादी दिलाई।’’