प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2016 को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर करीब 90 मिनट का भाषण दिया। लाल किले की प्राचीर से तीसरी बार बोलते हुए प्रधानमंत्री ने आतंकवाद पर कड़ाई से अपनी बात रखी। उन्होंने अपनी सरकार द्वारा पिछले दो साल में उठाए गए कदमों का ब्यौरा दिया और भविष्य की योजनाओं को रेखांकित किया। लेकिन अपने इस भाषण के लिए जो सुझाव मोदी ने मंगाए थे, उनमें से ज्यादातर को उन्होंने अनदेखा कर दिया। मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने भाषण के लिए आम जनता से सुझाव मांगे थे। हजारों सुझावों में से ज्यादातर धार्मिक हिंसा, जाति प्रथा, बेराेजगारी, सामाजिक समरसता से जुड़े हुए थे। धर्म के नाम पर बढ़ते तनाव, गौ-रक्षा के आलोक में दलितों और मुस्लिमों पर बढ़ते हमले और सामाजिक असंतुलन पर भी लोगों ने चिंता जताई थी। कुछ चाहते थे कि मोदी कश्मीर हिंसा पर फोकस करें, उनका कहना था कि मोदी को पाकिस्तान की स्पष्ट निंदा करनी चाहिए।
एक व्यक्ति ने प्रधानमंत्री को सुझाव दिया कि वह इस स्वतंत्रता दिवस पर कश्मीर में राष्ट्रध्वज फहराएं। वहीं दूसरे ने कहा कि देशभर की महिलाओं को रक्षा बंधन के मौके पर कश्मीर और माओवादी इलाकों में जाकर वहां के ‘भटके’ हुए लोगों को राखी बांधनी चाहिए। प्रधानमंत्री को मिले सुझावों में राजनेताओं के खिलाफ गुस्सा जाहिर तौर पर नजर आया। बहुत से लोगों ने मांग की राजनेताओं के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय की जाए। इसके अलावा ‘करोड़पति सांसदों’ से अपना वेतन और अन्य फायदे छोड़ने को भी कहा गया। एक सुझाव यह भी आया कि इंडिया का नाम बदलकर भारत कर दिया जाए, स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रगान की जगह वंदेमातरम गाया जाए और देश को आकार के हिसाब से विभिन्न टाइम जोनों में बांट दिया जाए।
प्रधानमंत्री को सुझाव तो बहुत मिले, मगर उन्होंने डेढ़ घंटे के भाषण में कितने सुझावों पर अमल किया। यह जानने के लिए हमने कुछ सुझावों की प्रधानमंत्री के भाषण से तुलना की। आप खुद देखिए कि जनता द्वार मिले सुझावों पर पीएम मोदी ने क्या कहा:
सुझाव: दलितों और मुस्लिमों पर बढ़ते हमलों पर रोशनी डालिए। और टैक्स के नाम पर मिडल क्लास पर बढ़ते बोझ पर भी कुछ चर्चा करें। हम जानना चाहते हैं कि टैक्स से जुटाया धन कहां खर्च हो रहा है।
प्रधानमंत्री ने करीब 90 मिनट के भाषण में दलितों और मुस्लिमों पर हो रहे हमलों पर चुप्पी साधे रखी। उन्होंने हिंसा पर चिंता तो जताई मगर यह साफ नहीं किया कि सरकार इस दिशा में क्या कर रही है।
सुझाव: धार्मिक कट्टरता जैसे मुद्दे हमारे विकास और प्रगति के रास्ते में आ रहे हैं। कुछ राजनेता और लोग देश को धर्म और जाति की सीमाओं में बांटने में लगे हुए हैं। उन्हें चेताया जाना चाहिए… कुछ हिंसक तत्वों जैसे गौ-रक्षकों को चेतावनी मिलनी ही चाहिए।
मोदी स्वतंत्रता दिवस से पहले ही कई मौकों पर गौ-रक्षकों के खिलाफ बोल चुके हैं। उन्होंने बाकायदा मंच से 70-80 फीसदी गौ-रक्षकों को फर्जी बताते हुए कहा था कि ऐसे लोग ‘धंधा’ चलाते हैं। लाल किले से भाषण में उन्होंने विशेष रूप से धार्मिक कट्टरता पर कुछ नहीं कहा।
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सुझाव: मिलावटी/संक्रमित खाद्य पदार्थों की गैरकानूनी बिक्री पर सख्ती से रोक लगाई जाए। दूध और बच्चों के भोजन से जुड़ी चीजों पर खास नजर रखी जानी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में खाद्य सुरक्षा को लेकर तो बात की, मगर मिलावट के मुद्दे पर कुछ नहीं कहा। उन्होंने अपने भाषण में फूड प्रोसेसिंग क्षेत्र में 100 फीसदी एफडीआई देने का जिक्र करते हुए कहा कि इससे किसानों के जीवन-स्तर में सुधार होगा।
सुझाव: LGBT कम्युनिटी के लिए समर्थन की घोषणा कीजिए। फिलहाल तीसरे लिंग के विकास के लिए कोई योजना नहीं है।
अपने पूरे भाषण में प्रधानमंत्री ने देश में LGBT के समर्थन पर कुछ नहीं कहा। उन्होंने इतना कहा कि ‘सामाजिक न्याय के अधिष्ठान पर ही सशक्त समाज का निर्माण होता है। इसलिए हमारा दायित्व है कि हम इस पर बल दें।’
सुझाव: खाने की बर्बादी रोकने के लिए कानून बनाइए। शादियों में काफी खाना बर्बाद होता है, दूसरी तरफ हमारे करोड़ों लोग भूखे सोते हैं। एक ऐसा कानून होना चाहिए जिसके तहत शादियों में लोग सिर्फ एक पकवान ही पराेस सकें।
प्रधानमंत्री ने इस सुझाव विशेष पर तो कुछ नहीं कहा, मगर उन्होंने खाद्य सुरक्षा के सरकार की प्राथमिकता में होने का इशारा जरूर किया। उन्होंने कहा, ”हमने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बनाई। हमने फसल के उत्पादन को संरक्षित करने के लिए नए भंडारण गृह खोले। फूड प्रोसेसिंग में 100 फीसदी एफडीआई दिया है, जिससे किसानों को फायदा होगा। मैं 2022 तक किसानों की आय को डबल करने का सपना देखता हूं।”
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सुझाव: भारत में बेहद कारगर जुगाड़ तकनीक की जगह बेहतर कारीगरी को बढ़ावा दिया जाए।
मोदी सरकार की स्किल इंडिया योजना इसी उद्देश्य के लिए बनाई गई थी। इसपर काम चल रहा है। अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा था, ”पहले एम्स में लोगों को महीनों इंतजार करना पड़ता था, हमने सब ऑनलाइन कर दिया। हम इसे देशव्यापी कल्चर के रूप में विकसित करना चाहते हैं। लेकिन इसका मूलमंत्र, शासन संवेदशनील होना चाहिए, शासन उत्तरदायी होना चाहिए।”

