पहला आम चुनाव भारत के लिए कई मायनो में अहम था। अंग्रेजों से आजादी हासिल करने के बाद भारतीय शासकों के लिए ये परीक्षा की एक घड़ी जैसा था तो जनता का विश्वास हासिल करने की भी जंग था। जब यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में महिलाओं को पहले-पहल इस अधिकार से वंचित रखा गया था, वहीं इसके उलट नए-नए आजाद हुए हिंदुस्तान ने देश के सभी वयस्क लोगों को मताधिकार सौंप दिया था। जिस देश को आजाद हुए बमुश्किल पांच साल हुए थे। जहां महज 20 फीसदी साक्षर आबादी थी, ऐसे देश को अपना शासन चुनने का अधिकार मिलना पूरे विश्व के लिए तब सबसे बड़ी घटना थी।

भारत के गणतंत्र बनने के एक दिन पहले चुनाव आयोग का गठन किया गया था। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सुकुमार सेन को पहला मुख्य चुनाव आयुक्त किया था। पहला चुनाव 25, अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 के बीच हुआ। सबसे पहला वोट हिमाचल प्रदेश की छिनी तहसील में डाला गया। पहले चुनाव में 14 राष्ट्रीय दलों के साथ 53 क्षेत्रीय दलों ने अपने हाथ आजमाए थे।

हालांकि, चुनावों से पहले ही नेहरू का रास्ता पूरी तरह से उनके मुफीद हो चुका था। कहते हैं कि कांग्रेस में रसूख वाले ज़्यादातर राजनेताओं को गांधी द्वारा नेहरू को अपनी राजनैतिक विरासत सौंपे जाने से कुछ हद तक बैचनी थी। आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल और नेहरू के बीच तनातनी तो जग जाहिर ही थी। उनके देहांत से नेहरू सबसे बड़ी चुनौती समाप्त हो गई।

1950 में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के चुनाव में नेहरू समर्थित भगवान दास कृपलानी पार्टी के हिंदूवादी धड़े द्वारा समर्थित नेता पुरुषोत्तम दास टंडन से हार गए थे। आचार्य कृपलानी ने कांग्रेस छोड़कर किसान मज़दूर प्रजा पार्टी बना ली थी। नेहरू से विरोध और पार्टी के भीतर बढ़ते मतभेदों के चलते बाद में टंडन ने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। नेहरू और मजबूत हो गए।

हालांकि नेहरू के सामने चुनौतियां और भी पैदा हो रही थीं। सोशलिस्ट पार्टी के जयप्रकाश नारायण उभार पर थे तो कांग्रेस छोड़कर श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की और पहले आम चुनाव में अपनी दावेदारी ठोक दी। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के श्रीपाद अमृत डांगे भी अपना जोर दिखा रहे थे। उधर, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी नेहरू से आहत होकर कांग्रेस छोड़कर रिपब्लिकन पार्टी का गठन कर डाला।

अलबत्ता तमाम विरोधों को दरकिनार कर कांग्रेस संसद की 489 में से 324 सीटें जीतने में कामयाब रही और इसका सबसे बड़ा कारण थे जवाहरलाल नेहरू। उधर राज्यों की विधानसभाओं में भी उसका प्रदर्शन शानदार रहा। कुल 3280 सीटों में से कांग्रेस ने 2247 पर जीत हासिल की। नेहरू की लोकप्रियता ने कांग्रेस को बहुमत से जीत दिलाई। उन्होंने उत्तर प्रदेश की फूलपुर सीट भारी मतों से जीती। लेकिन उनसे भी ज्यादा मतों से जीतने वाले उम्मीदवार थे सीपीआई के रवि नारायण रेड्डी। लेकिन जो दिग्गज चुनाव हारे उन्हें देखकर हैरत हुई। आचार्य कृपलानी फैजाबाद से हारे। अंबेडकर बांबे की रिजर्व सीट से एक छोटे से कांग्रेस के उमीदवार से हार गए।