Supreme Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ सीजेआई ने आंतरिक जांच (In-house Inquiry) शुरू की है। इस बात का खुलासा जस्टिस हृषिकेश रॉय ने बार एंड बेंच को दिए एक इंटरव्यू में किया है। जस्टिस हृषिकेश रॉय , जो 31 जनवरी को अपनी सेवानिवृत्ति तक सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा थे। जस्टिस राय ने कहा कि शेखर यादव कॉलेजियम द्वारा बुलाए जाने के बाद कॉलेजियम के जजों से निजी तौर पर माफी मांगने के लिए तैयार थे। कॉलेजियम ने इस पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा कि माफी सार्वजनिक होनी चाहिए।

इसके बाद जस्टिस शेखर ने भरोसा दिया कि वे सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगेंगे। लेकिन, बाद में उनका मन बदल गया और उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। जस्टिस रॉय ने बताया कि चूंकि माफी कभी नहीं मांगी गई, इसलिए सीजेआई ने आंतरिक जांच शुरू कर दी है।

जस्टिस रॉय ने बताया कि एक अन्य न्यायाधीश द्वारा कुछ बयान दिए जाने की एक और घटना हुई थी, लेकिन तब निश्चित रूप से माफ़ी मांगी गई थी। लेकिन इस मामले (न्यायमूर्ति यादव) में माफ़ी नहीं मांगी गई, हालांकि आश्वासन दिया गया था कि माफ़ी मांगी जाएगी। चूंकि ऐसा नहीं हुआ है, इसलिए सीजेआई ने आंतरिक जांच शुरू कर दी है। निजी तौर पर उन्होंने कहा कि वह हम सभी 5 (कॉलेजियम न्यायाधीशों) से माफ़ी मांगने के लिए तैयार हैं। वह उसी समय तैयार थे। लेकिन उन्हें बताया गया कि बंद कमरे में माफ़ी नहीं मांगी जा सकती, उन्हें सार्वजनिक मंच पर माफ़ी मांगनी होगी। जब वह चले गए, तो वह ऐसा करने के लिए सहमत हो गए, लेकिन अंततः ऐसा नहीं हुआ।

इन-हाउस प्रक्रिया के तहत सीजेआई को सबसे पहले संबंधित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित जज से रिपोर्ट मांगनी होती है। इसके आधार पर वह आरोपों की आगे की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित कर सकते हैं और समिति की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई कर सकते हैं। संसद द्वारा किए जाने वाले महाभियोग के अलावा यह किसी कार्यरत जज के विरुद्ध उपलब्ध एकमात्र निवारण तंत्र है।

बता दें, यादव ने 8 दिसंबर को हिंदू दक्षिणपंथी संगठन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण देकर विवाद खड़ा कर दिया था। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर अपने भाषण के दौरान न्यायमूर्ति यादव ने विवादास्पद टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत बहुसंख्यक आबादी की इच्छा के अनुसार काम करेगा। न्यायाधीश ने अपने भाषण के दौरान कई अन्य विवादास्पद टिप्पणियां कीं, जिनमें मुसलमानों के खिलाफ अपमानजनक शब्द “कठमुल्ला” का प्रयोग भी शामिल था।

इसके बाद कॉलेजियम ने जस्टिस यादव को तलब किया । बार एंड बेंच ने कहा कि उन्होंने जस्टिस यादव से संपर्क कर यह पुष्टि की कि क्या वह वाकई निजी तौर पर माफी मांगने को तैयार हैं। हालांकि, जज ने इस मुद्दे पर बात करने से इनकार कर दिया। जस्टिस यादव ने कहा कि मुझे जो कुछ भी कहना था, मैंने कॉलेजियम के समक्ष कह दिया है। मैं इस विषय पर मीडिया से बात नहीं कर सकता। मुझे नहीं पता कि आंतरिक जांच का क्या हुआ। समय आने पर मैं बोलूंगा।

बताया गया कि जस्टिस यादव ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा था कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं और उन्होंने कहा कि इससे न्यायिक आचरण के किसी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं हुआ है। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली ने पिछले वर्ष 17 दिसंबर को कॉलेजियम के साथ जस्टिस यादव की बैठक के बाद उनसे जवाब मांगा था।

वर्तमान न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियों के कारण मांग की जा रही है कि उन पर महाभियोग चलाया जाए तथा इस बीच उनसे न्यायिक कार्य वापस ले लिया जाए। न्यायिक जवाबदेही एवं सुधार अभियान (सीजेएआर) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के समक्ष औपचारिक शिकायत दर्ज कर न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ आंतरिक जांच की मांग की है।

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कपिल सिब्बल के नेतृत्व में सांसदों ने जस्टिस यादव के खिलाफ उनकी टिप्पणी को लेकर राज्यसभा महासचिव के समक्ष महाभियोग प्रस्ताव प्रस्तुत किया। 12 दिसंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने न्यायमूर्ति यादव के रोस्टर में एक बड़ा बदलाव किया था। 16 दिसंबर से वे केवल प्रथम अपीलों की सुनवाई करेंगे – जिला न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों से उत्पन्न मामले, और वह भी केवल 2010 तक दायर किए गए मामलों की।

इस महीने की शुरुआत में तेरह वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने मुख्य न्यायाधीश खन्ना को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि वे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ उनके भाषण के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दें। पत्र पर वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, एस्पी चिनॉय, नवरोज़ सीरवई, आनंद ग्रोवर, चंदर उदय सिंह, जयदीप गुप्ता, मोहन वी कटारकी, शोएब आलम, आर वैगई, मिहिर देसाई और जयंत भूषण ने हस्ताक्षर किए।

अपने साक्षात्कार में न्यायमूर्ति रॉय ने कहा कि वर्तमान कानून न्यायाधीशों के भटक जाने से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं तथा ऐसी स्थिति से निपटने के लिए महाभियोग एक “अप्रभावी” तरीका है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को कई सुरक्षा उपायों द्वारा संरक्षित किया जाता है, ताकि वे भय या पक्षपात से मुक्त होकर निर्णय दे सकें और यह एक बुनियादी बात है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायाधीश अपनी शपथ और संविधान के प्रति सच्चे रहें। अब कानून द्वारा वही सुरक्षा किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने में बाधा के रूप में काम करती है, जिसे गलत राह पर चलते हुए देखा जाता है। एकमात्र उपाय महाभियोग प्रक्रिया है, जिसे आप और मैं जानते हैं कि यह बहुत अप्रभावी है। दूसरी प्रक्रिया इन-हाउस जांच की है, जो यहां चल रही है। न्यायिक कार्य को छीन लेना एक और विकल्प है…वर्तमान कानून में इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए कोई प्रभावी उत्तर नहीं है।

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