अजय श्रीवास्तव
चीन के साथ 1962 के युद्ध में भारत की हार हुई और सेना का मनोबल रसातल में पहुंच गया। हर तरफ निराशा थी, लोग चीन की दगाबाजी से खुद को ठगा महसूस कर रहे थे। भारतीय जनमानस में इसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई और तत्कालीन रक्षामंत्री मेनन को इस्तीफा देना पड़ा था। साम्यवादी विचारधारा के मेनन युद्ध शुरू होने के समय तक नेहरू को यह समझाते रहे कि चीन कभी भारत पर आक्रमण नहीं करेगा,वह केवल गीदड़ भभकी देता है। मगर युद्ध हुआ और भारत के सैनिकों बिना तैयारी के रण में उतरना पड़ा। सेना के पास युद्ध लड़ने के लिए हथियार और बर्फ पर चलने के लिए जूते नहीं थे। परिणाम वही हुआ जो होना था।
22 अक्तूबर 1962 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्र के नाम संदेश में भरे गले से छल की वह दास्तां सुनाई जिसे सुनकर देश स्तब्ध रह गया था। नेहरू ने रूंधे गले से कहा भारत ने तब चीन का साथ दिया जब वह विश्व बिरादरी में अलग-थलग था।
1962 की करारी शिकस्त से सबक लेते हुए नेहरू ने सेना का आधुनिकीकरण शुरू किया। रक्षा बजट में भारी वृद्धि की गई और सैनिकों के लिए आधुनिक हथियार खरीदे गए। बताते हैं कि 1962 से 1967 के बीच सीमा पर कई बार तनातनी हुई मगर भारतीय फौज को पीछे हटना पड़ा था,क्योंकि देश का राजनीतिक नेतृत्व एक और युद्ध नहीं चाहता था।
दोनों देशों की सेना के बीच एक महत्त्वपूर्ण एवं निर्णायक तकरार सितंबर 1967 में नाथू ला पोस्ट पर हुई जिसने यह मिथक तोड़ दिया था कि भारतीय सेना कभी चीन से युद्ध में जीत नहीं सकती। उन दिनों चीनी सैनिक बेवजह भारतीय क्षेत्र में घुस आते थे और उन्हें भगाने के लिए भारतीय सैनिकों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी। दोनों देश के सैनिकों में अक्सर धक्का-मुक्की आम बात थी, जिसे रोकने के लिए नाथू ला और सेबु ला के बीच कंटीले तार बिछाने का फैसला लिया गया। चीन ने भारत को सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि वे तुरंत नाथू ला और सेबु ला चौकी खाली कर दें नहीं तो गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।
कोर मुख्यालय के प्रमुख जनरल बेवूर ने जनरल सगत सिंह को आदेश दिया कि वे नाथू ला चौकी खाली कर दें। यही आदेश सेबु ला पोस्ट के प्रभारी को भी दिया गया। सेबु ला चौकी तो तुरंत खाली हो गई मगर जनरल सगत सिंह ने चौकी खाली करने से इंकार कर दिया और उन्होंने यह दलील दी कि इसे खाली करना आत्मघाती कदम होगा। नाथू ला ऊंचाई पर है और यहां से चीनी सेना की हर गतिविधि पर नजर रखी जाती है। अगर इस चौकी को खाली किया गया तो चीनी आगे आएंगे और वहां से सिक्किम में हो रही हर गतिविधि को वह देख सकेंगे।
जनरल सगत सिंह ने कहा मैं आपके आदेश को मानने से इनकार करता हूं। सेबु ला चौकी के खाली होते ही चीनी सैनिकों ने उस पर कब्जा कर लिया जो आज भी बरकरार है। इसी बीच सीमा पर बाड़ लगाने का काम शुरू हुआ और ऊपर से यह आदेश था कि किसी भी हाल में बाड़ लगाई जाए। अभी तार बिछाने का काम शुरू हीं हुआ था कि चीनी सैनिकों ने आकर उसे रोक दिया।
दोनों देशों के सैनिकों के बीच धक्का-मुक्की शुरू हो गई। चीन के राजनीतिक कमीसार ने अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में कहा कि बाड़ लगाने का काम तुरंत रोको, नहीं तो परिणाम गंभीर होंगे। भारतीय सेना उसकी बात को अनसुना कर बाड़ लगाने का काम जारी रखा। वे तब लौट गए मगर कुछ घंटों में वे फिर आए और स्वचालित हथियारों से फायरिंग शुरू कर दी। अचानक हुए इस हमले में भारतीय सेना के 70 जवान शहीद हो गए और कई बहुत बुरी तरह घायल थे। चीनी सेना कत्लेआम कर अपने बैरक में लौट गई।
सगत सिंह ने यह तय कर लिया कि अब लड़ाई आरपार वाली और निर्णायक होगी। दिन ढलने के साथ ही जनरल सगत सिंह के आदेश पर गुपचुप तरीके से भारतीय टैंकों को चीनी सैनिकों के बैरक के रेंज में लाया गया। जब सारी तैयारियां मुक्कमल हो गईं तो सगत सिंह के आदेश पर तोपों का मुंह खोल दिया गया।
रात में हुए इस हमले से चीनी सैनिकों को भागने का भी मौका नहीं मिला और उसके 400 सैनिक मारे गए। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि उन दिनों सेना को तोप से गोलाबारी करने का हुक्म प्रधानमंत्री देते थे। सगत सिंह ने किसी से आदेश नहीं लिया और लगातार तीन दिन तक फायरिंग करते रहे। यह लड़ाई तब रुकी जब चीन ने भारत को हवाई हमले की धमकी दी, तब दोनों देशों के सैन्य अधिकारी युद्धविराम पर सहमत हुए। सगत सिंह ने वह कर दिया था जिसकी कल्पना भी नामुमकिन थी।
उसने उस सोच को पूरी तरह बदल दिया कि भारतीय फौज कभी चीन से मुकाबला नहीं कर सकती। कुछ हीं दिनों में जनरल सगत सिंह का तबादला कर दिया गया। उन पर यह आरोप था कि उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों की बात नहीं मानी मगर जनरल सगत सिंह को यह संतोष था कि उनकी अनुशासनहीनता की वजह से हीं नाथू ला पोस्ट बच गई।