International Monetary Fund (IMF) चीफ इकोनॉमिस्ट गीता गोपीनाथ ने कहा है कि भारत को आर्थिक सुस्ती से जल्द राहत मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। गीता गोपीनाथ ने देश में भूमि सुधार और श्रम कानूनों पर बातचीत करते हुए कहा कि भारत में भूमि सुधार और श्रम कानूनों में सुधार की जरुरत है।

गीता गोपीनाथ इस हफ्ते भारत आ रही हैं. उन्होंने कहा कि इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव की स्थिति और संरचनात्मक चुनौतियों को देखते हुए घरेलू मांग में नरमी से निपटने वाली नीतियों पर अमल करने की जरूरत है. इसके साथ ही उत्पादकता बढ़ाने और मध्यम अवधि में रोजगार सृजन में सहायक नीतियों की भी जरूरत है.

कोलकाता में जन्मीं 48 साल की अर्थशास्त्री ने बीते शुक्रवार को FICCI की वार्षिक बैठक में कहा कि सरकार की प्राथमिकताओं में भरोसेमंद राजकोषीय मजबूती भी शामिल किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसके लिए कर्ज घटाने और सरकारी व्यय एवं घाटे के वित्त पोषण में कमी लाने की जरूरत है. इससे निजी निवेश के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध हो सकेगा. यह सब्सिडी खर्च को युक्तिसंगत बनाने और कर आधार बढ़ाने के उपायों के जरिये होना चाहिए.

गीता गोपीनाथ ने कहा कि देश में निवेश में कमी आई है। माइक्रो इकॉनॉमिक स्थिरता के लिए गीता गोपीनाथ ने बैंकिंग क्षेत्र में सुधार की जरुरत पर बल दिया है। नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों की चिंताओं पर जोर देते हुए गीता गोपीनाथ ने कहा कि निवेश्कों को लेकर सकारात्मक नीति बनाना बेहद जरुरी है।

गीता गोपीनाथ ने कहा कि ‘सबसे पहले तो ये कि राजकोषीय घाटे को लेकर जब हम बात करते हैं तो हमें इसे मध्यावधि लक्ष्य के रूप में ही देखना चाहिए…कुछ ऐसा, जिसे एक अवधि में पूरा किया जा सके। न कि इसे रातों-रात पूरा कर लिया जाएगा…दूसरी बात ये है कि जब हम बात करते हैं कि हमें खर्च बढ़ाना है तो जरूरी नहीं कि ये हमारे लिए परेशानी ही होगी। सवाल ये है कि क्या इसे रेवेन्यू के हिसाब तय किया जा रहा है या नहीं?’