पर्व-त्योहारों के पुनीत दिवस जब गुजरते हैं, तो देश का जन-जन अपनी सांस्कृतिक गरिमा के प्रति आह्लाादित हो जाता है। मगर आज की आधुनिकता में जहां भौतिकता का चंवर डुलाने में कोई पीछे नहीं, लगता है कि यह सब वितंडावाद है। असल जिंदगी तो यह है कि फर्जीवाड़े ने भौतिकता को नए पंख दे दिए हैं। अवैध कर्म की अंधी दौड़ में लगे लोग कुछ भी करने से पीछे नहीं हट रहे। देश के डिजिटल हो जाने और उसे सर्वश्रेष्ठ इंटरनेट शक्ति से लैस हो जाने की बातें कही जाती है। दूसरी ओर साइबर अपराध के नित्य-नए हथकंडे करोड़ों की ठगी का रेकार्ड बना रहे हैं। मासूम लोगों को साइबर ठग अपनी जाल में फंसा कर लाखों-करोड़ों रुपए लूट रहे हैं। यह सिलसिला इतना बढ़ गया कि देश के प्रधानमंत्री तक को इन साइबर ठगों से सावधान रहने के लिए कहना पड़ा।
अब माफिया गुटों ने प्रशासनिक अधिकारियों और प्रहरियों के साथ हाथ मिला लिए हैं और बेरोकटोक अपने खजाने भर रहे हैं। देश में एक ओर प्रगति और विकास दर बढ़ने की बातें होती हैं, दूसरी ओर असमानता बढ़ती जाती है। दस फीसद संपदा पर काबिज लोग 90 फीसद वंचितों पर राज करते हैं और देश में बढ़ती हुई असमानता को न्यायसंगत ठहराने की कोशिश इस तरह की जाती है कि दुनिया भर में असमान वितरण का व्यवहार है। हर देश में अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ रही है। इसीलिए अनुशासनहीनता से लेकर गैर-कानूनी कामों में वृद्धि हो रही है। कोई जिम्मेदारी नहीं लेता कि यह असमानता क्यों बढ़ी?
भ्रष्टाचार के खत्म करने का सरकार करती हैं दावा
सरकारें दावा करती हैं कि अवैध कारोबार और भ्रष्टाचार को शून्य स्तर पर भी सहन नहीं किया जाएगा और यही व्यवहार हमें नजर आता है। अभी कुछ नए आंकड़ों ने चौंकाया है कि यह एक राज्य की समस्या नहीं, पूरे देश में इस कुव्यवस्था और शोषण का जाल फैला है। इस जाल को तोड़ने की जरूरत है। प्रशासनिक अधिकारी ईमानदारी से छापेमारी करें तो स्थिति बदल सकती है। वहीं शोषित युवा पीढ़ी में नवजागरण लाकर ही इस कुव्यवस्था का उन्मूलन किया जा सकता है, लेकिन जब जागरण की जगह भीड़ तंत्र ‘शार्टकट संस्कृति’ के प्रति समर्पित नजर आए, तो रास्ता क्या हो, क्यों न इस पर चिंतन कर लिया जाए।
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पिछले दिनों देश में इस बात की बहुत चर्चा हुई थी कि हमने ‘एक देश एक कर’ की योजना यानी जीएसटी के संचालन में बहुत सफलता हासिल की है। इस क्षेत्र ने कर संग्रह के रेकार्ड तोड़ दिए हैं। एक लाख करोड़ रुपए की संग्रह सीमा जो पहले पांच वर्षों के लिए बांधी गई थी, हम उससे कहीं आगे निकल गए। आजकल पौने दो लाख करोड़ रुपए के आसपास कर संग्रह किया जा रहा है। लेकिन सच्चाई यह सामने आ रही है कि लोगों ने कर संग्रह करने वालों को चूना लगाने में भी कसर नहीं छोड़ी है। फर्जी कंपनियों का फर्जीवाड़ा शुरू हो गया। वस्तु एवं सेवा कर के तहत 18 हजार फर्जी कंपनियां पकड़ी गई हैं, जो 25 हजार करोड़ रुपए की कर चोरी कर चुकी हैं।
73 हजार कंपनियों की हुई पहचान
इस फर्जीवाड़े के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया गया है। 73 हजार कंपनियों की पहचान हुई है, जिनके बारे में संदेह है कि वे बिना किसी वास्तविक माल की बिक्री के केवल ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ का लाभ उठा रही हैं और खजाने को चूना लगा रही हैं। इनमें से 18 हजार कंपनियों का तो कोई अस्तित्व ही नहीं था। केवल नाम थे। इन्होंने 24,550 करोड़ रुपए की कर चोरी कर ली थी। बात यहीं खत्म नहीं होती। पंजाब से लेकर अगर देश के बहुत से राज्य आज अपने आप को पर्याप्त आर्थिक सामर्थ्य से वंचित पाते हैं, तो उसका बड़ा कारण यह है कि अवैध कारोबार करने वाले हर कानून को तोड़-मरोड़ कर अपने हक में ले आते हैं और देश का खजाना भरने की बजाय अपनी तिजोरी भरने के जुगाड़ में लग जाते हैं।
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पंजाब में अवैध शराब से लेकर अवैध खनन के फर्जीवाड़े की चर्चा बार-बार होती है। नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए अवैध हथियारों की आमद को प्रतिबंधित करने और बंदूक संस्कृति पर आघात करने के लिए पंजाब पुलिस ने भरसक प्रयास किए हैं। करोड़ों रुपए के नशीले पदार्थ और हथियार बरामद किए हैं, चालान हुए हैं। मगर इसका ब्योरा कभी नहीं दिया जाता। केवल बताया जाता है कि छापेमारी सफल रही, अभियुक्त गिरफ्तार हुए और सामान बरामद हो गया। इसका कारण वे ही जानते होंगे। यह भी डर रहता है कि जनता सवाल न उठा दे कि इतनी छापामारी के बाद भी ऐसे अवैध कारोबार नियंत्रण में क्यों नहीं आते? यह फर्जीवाड़ा हिमाचल के बद्दी इलाके से जब दवाओं का निर्यात विदेशों में होने लगा, तो सामने आ गया। कई दवाओं को नकली करार देकर दूसरे देशों ने वापस भेज दिया। इससे साख का ही हनन हुआ। मगर गुणवत्ता जांचने वाले और प्रमाणपत्र देने वाले अधिकारियों से क्यों नहीं पूछा गया कि भारत की साख गिराने की ऐसी हिम्मत कैसे हुई?
समाज के ठेकेदार घर रहे भर अपर
फर्जीवाड़ा और अवैध व्यापार की दुनिया केवल पंजाब, हरियाणा और हिमाचल आदि में नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी फैलती दिखाई दे रही है। पिछले दिनों झारखंड और उसके साथ पश्चिम बंगाल और बिहार में भी पुलिस ने अवैध कारोबार करने वालों के ठिकानों पर छापेमारी की। इस तरह पंजाब ही अवैध खनन का रोगी नहीं है। यहां तो झारखंड भी नजर आया और समाज के ठेकेदार ऐसा काम करते हुए अपना घर भर रहे हैं तथा जनता की जेब काट रहे हैं। झारखंड में सोलह स्थानों पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आदेश पर छापेमारी की गई। सीबीआइ ने पश्चिम बंगाल और बिहार में आरोपियों के ठिकानों पर छापेमारी की। झारखंड के साहिबगंज स्थित 11 ठिकानों, रांची के तीन स्थानों, पटना और कोलकाता में एक-एक ठिकाने पर छापेमारी की। सीबीआइ ने पचास लाख नकद, एक किलो सोना, एक किलो चांदी और करोड़ों की संपत्ति के दस्तावेज जब्त किए।
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अब छापेमारी में अवैध ठिकानों से इतना धन बरामद हो रहा है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि फर्जीवाड़े की इस दुनिया में अपराधियों और कानून तोड़ने वालों पर कितना धन बरसता है। देश में समावेशी विकास करना है और गरीबों को नई दुनिया का मार्ग दिखाना है, तो अनैतिकता के प्रति इस समर्पण को बदलना होगा। कानून के प्रहरियों को राष्ट्र प्रहरी बनना पड़ेगा और देश में इन सब अवैध कारोबारों को शून्य स्तर पर सहन करने की बात केवल एक सरकारी दावा न रहे, यह एक ऐसा संकल्प बने, जो सरकार से लेकर जन-जन की शिराओं और धमनियों में नया रक्त बन कर प्रवाहित हो। गलत कामों से भौतिक स्वामित्व हथियाने का यह माहौल बदलेगा, इसे मन से गलत मान कर सही करने का प्रयास किया जाएगा, तभी यह स्थिति बदलेगी, नहीं तो इन अवैध कारनामों के आंकड़े चौंकाते रहेंगे।