स्रात्तकोतर (एमए) की महज दो साल अवधि वाली डिग्री देने में उसने सोलह साल लगा दिए। छात्रा को डिग्री तब मिली जब छात्रा को जिम्मेदार ठहराने वाले विवि का आरोप झूठा साबित हुआ। डिग्री लेकर छात्रा अपने जीवन में जो हासिल करना चाहती थी विवि की लापरवाही के कारण उसे वह नहीं मिला।

आखिर अदालत के हस्तक्षेप के बाद उसके संघर्ष की जीत हुई। 16 साल बाद विवि को उसे डिग्री देने पर मजबूर होना पड़ा। यह अलग बात है कि 21 साल की उम्र में एमए में दाखिल हुई ईशा शर्मा (अब ईशा गौर) को डिग्री उनके 38वें साल में मिली। जीत से ज्यादा उसके जज्बे की सराहना हुई। शायद इसी से प्रेरित होकर वो एक बार फिर अदालत की चौखट पर खड़ी है व इस बार उसकी लड़ाई मुआवजे की है।

डिग्री की वजह से कई नौकरियों में आवेदन से वंचित रह चुकी ईशा अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश चंद्रजीत सिंह की अदालत में जीवन के महत्वपूर्ण 16 साल खोने का हिसाब मांगने के लिए खड़ी है। 2005 में छात्रा ने लोक प्रशासन से एमए करने के लिए दाखिला लिया था। प्रथम व द्वितीय वर्ष के उसने सारे पेपर उर्त्तीण किए, पर प्रथम वर्ष के असाइनमेंट के एक पेपर का नंबर उसके रेकार्ड में नहीं चढ़ा।

लिहाजा उसकी डिग्री रुक गई व वह एमए पास नहीं कर पाई। छात्रा ने विवि से संपर्क साधा व बताया कि उसने असाइनमेंट जमा कराए थे, पर उसकी एक दलील नहीं सुनी गई। आरटीआइ लगी। उसमें भी विवि ने यही बताया कि ‘आपके असाइनमेंट में शून्य अंक हैं’। वो कभी इग्नू के क्षेत्रिय केंद्र (मैदान गढ़ी) दौड़ती तो कभी उसके शैक्षणिक केंद्र (देशबंधु कालेज) जाती। साल दर साल बीतता गया।

यहां तक कि इंग्नू के मैदान गढ़ी स्थित मुख्य प्रशासनिक केंद्र और रजिस्ट्रार ने भी हाथ खड़े कर दिए। मुख्यालय के एक अधिकारी की सलाह पर 2019 में एक दिन ईशा देशबंधु कालेज स्थित रेकार्ड कक्ष पहुंची वहां मौजूद छोटे कर्मचारी को बात बताई, कागजात दिखाए। ईसा ने जनसत्ता से कहा कि यह इत्तेफाक था या फिर ईश्वर का न्याय, उस लड़के ने सौकड़ों रजिस्टर वाले गोदाम से जो रजिस्टर निकाला वह ‘उसी के सत्र’ के रिकार्ड वाला रजिस्टर था।

पन्ना पलटा तो उसमें उसके उसी असाइनमेंट में 60 नंबर दर्ज थे, जिसमें शून्य बताकर विवि ने पल्ला झाड़ लिया था। ईशा ने इसका मोबाइल से फोटो ले लिया। बकौल ईशा – यह फोटो उसके लिए संजीवनी साबित हुई। वह दिल्ली हाई कोर्ट पहुंच गई। मामला जस्टिस संजीव नरूला की बेंच में लगा। कुछ ही सुनवाई में दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो गया।

ईग्नू को मुंह की खानी पड़ी। उसने अदालत के समक्ष ईशा को उर्त्तीण घोषित कर दस्तावेज सौंपे और वायदा किया कि विवि के दीक्षांत समारोह में वह ईशा को डिग्री से नवाजेगा। इसके तहत सौलह साल विलंब के बाद एमए का जो सर्टिफिकेट इग्नू को देना पड़ा उस पर ‘उर्त्तीण वर्ष’ 2007 ही दर्ज है।ईशा की वकील अंकिता तिवारी ने कहा-यह उनके करियर का अनूठा मामला है। विश्वविद्यालय के अलावा सूचना आयोग व शिक्षा मंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक को एक करना आम बात नहीं। आम तौर पर लोग थक हार कर बैठ जाते हैं। एक अदद डिग्री के लिए एक युवती का संघर्ष अपवाद है।