Delhi AQI: उत्तर भारत में वायु प्रदूषण की वजह से हवा खराब है। दिल्ली NCR में AQI तो बेहद गंभीर है। AQI को बेहतर बनाने के लिए GRAP- लेवल 4 नियम लागू किए गए हैं। इस वजह से कई प्रतिबंध भी लागू किए गए हैं, जिनमें निर्माण गतिविधियों में भी रोक शामिल है। दिल्ली एनसीआर में निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध की वजह से दिहाड़ी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है।

दिहाड़ी मजदूरों का कहना है कि प्रदूषण कंट्रोल उपाय लागू होने से उन्हें डर है कि उनके लिए अपने बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था करना मुश्किल हो जाएगा। दिहाड़ी मजदूर सुमन (45) कहती हैं, “अगर हम घर बैठ जाएंगे, तो हम खाएंगे क्या? हम अपने बच्चों को क्या खिलाएंगे?”

दो बच्चों की मां सुमन ने सरकारी मदद पाने की उम्मीद में हाल ही में अपने श्रमिक कार्ड का नवीनीकरण कराया था, लेकिन उनका कहना है कि इससे कोई फायदा नहीं मिला। सुमन ने कहा, “हमारे पास सरकारी नौकरी नहीं है कि वेतन मिलता रहेगा। हम दिहाड़ी पर निर्भर हैं, और काम के बिना हमारे पास कुछ भी नहीं है।”

‘कंस्ट्रक्शन पर बैन से टूटी मजदूरों की कमर’

दिल्ली में मंगलवार को धुंध की मोटी परत छाई रही और AQI 488 दर्ज किया गया। निर्माण श्रमिक बाबूराम (63) ने बताया कि वह पहले से ही आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं और कंस्ट्रक्शन गतिविधियों पर बैन ने उनकी माली हालत और खराब कर दी। बाबूराम पर अपनी पत्नी, बेटे व बहू के भरण-पोषण की जिम्मेदारी है। उनके सिर पर तीन लाख रुपये का कर्ज भी है।

बाबूराम ने कहा, “मेरे जैसे लोगों के लिए कोई पेंशन नहीं है। लाडली बहना जैसी योजनाएं भ्रष्टाचार से घिरी हुई हैं, बिचौलिए सब कुछ ले लेते हैं और हमें कुछ नहीं मिलता। अगर मैं काम नहीं करूंगा, तो मेरे परिवार के लिए रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा।”

‘सरकार समस्या का समाधान करने के बजाय गरीबों की मुश्किलें बढ़ा रही?’

निर्माण एवं विध्वंस गतिविधियों पर बैन से राजेश कुमार (42) की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। राजेश के मुताबिक, बिहार में उनका परिवार दो वक्त की रोटी के लिए उस पैसे पर निर्भर है, जो वह घर भेजते हैं।

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राजेश ने कहा, “मैंने अभी तक शादी नहीं की है, क्योंकि मुझ पर कई जिम्मेदारियां हैं। मेरी बहन की शादी के लिए मुझे कर्ज लेना पड़ा। मेरे सिर पर छह लाख रुपये का कर्ज है।” उन्होंने कहा, “यह हर साल होता है। प्रदूषण के कारण दिल्ली बुरी तरह से प्रभावित होती है। लेकिन सरकार समस्या का समाधान करने के बजाय हम जैसे लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ा देती है।” (इनपुट – भाषा)