अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में मतदाता सूची संशोधन का काम शुरू हो गया है और पश्चिम बंगाल के प्रवासी मजदूर समय पर गणना के लिए डॉक्यूमेंट्स जुटाने और घर वापस लौटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि, अब ऑनलाइन फॉर्म भरने का ऑप्शन मौजूद है, लेकिन कई लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि इसे कैसे भरें या फिर कहते हैं कि उन्हें अपने डॉक्यूमेंट्स दुरुस्त करने के लिए घर वापस जाना होगा।
बंगाल में इस महीने एसआईआर शुरू होने के बाद से ही जैरुल मंडल के दिमाग में बस एक ही बात घूम रही है। वह यह है कि समय पर घर पहुंचकर अपना नाम वोटर लिस्ट में दर्ज कराना। केरल के एर्नाकुलम जिले के अंगमाली में एक कंस्ट्रक्शन वर्कर जैरुल को परिवार से बैचेनी भरे फोन आ रहे हैं। वह यह पूछ रहे हैं कि वह कब लौटने की योजना बना रहे हैं। लेकिन मंडल के पास आने-जाने के पैसे नहीं हैं। उन्होंने कहा, “गणना फॉर्म पहले ही आ चुके हैं और हमें डर है कि अगर हम इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेंगे, तो हम वोटिंग से चूक जाएंगे।”
चुनाव आयोग ने की थी एसआईआर की घोषणा
चुनाव आयोग ने 27 अक्टूबर को पश्चिम बंगाल सहित 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर कराने की घोषणा की थी। आयोग ने कहा कि गणना प्रपत्र जमा करने की प्रक्रिया 4 नवंबर से 4 दिसंबर के बीच होगी। इसके बाद 9 दिसंबर को ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल पब्लिश किया जाएगा। इसके बाद दावे और आपत्तियां 8 जनवरी 2026 तक प्रस्तुत की जा सकेंगी और फाइनल वोटर लिस्ट 7 फरवरी को पब्लिश की जाएगी। पूरे देश में बंगाल के प्रवासियों में एक ही जैसा डर देखने को मिल रहा है।
इस भीड़ के बीच प्रवासी मजदूरों के लिए एक मुश्किल विकल्प है, या तो घर वापस लौटें और अपनी मजदूरी खोने का जोखिम उठाएं, या यहीं रहें और वोटर लिस्ट से बाहर होने का जोखिम उठाएं। केरल के कोच्चि में एक कंस्ट्रक्शन वर्कर हबीबुल्ला बिस्वास जानता है कि उसे यह चुनाव करना ही होगा। मुर्शिदाबाद के रहने वाले हबीबुल्ला दुर्गा पूजा समारोह के बाद केरल लौटा है, लेकिन अब उसे घर वापस जाने की तैयारी करनी है।
मेरे पास घर वापस जाने के लिए पैसे नहीं- बिस्वास
परेशान बिस्वास ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमें आवेदन जमा करने के लिए कम से कम छह महीने चाहिए। मेरे पास घर वापस जाने के लिए पैसे नहीं हैं। केरल में भारी बारिश के कारण निर्माण कार्य रुक गया था और अब जाकर काम नियमित रूप से शुरू हुआ है। मेरे माता-पिता ने बताया कि फॉर्म पहुंच गए हैं, लेकिन हम यूं ही घर वापस नहीं जा सकते।”
बेंगलुरु में बढ़ई शेख शहजादा अपनी बेटी के साथ कोलकाता जाने वाली ट्रेन का इंतजार करते हुए रेलवे स्टेशन पर खड़े हैं। SIR उनकी वापसी का एक बड़ा कारण है। उन्होंने कहा, “पार्टी के लोग हमें वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने में मदद करेंगे।” हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि वे किस पार्टी से हैं। वे आगे कहते हैं, “हम 80 साल से ज्यादा समय से कोलकाता में वोटर हैं, लेकिन इस बार लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर रखने के लिए शरारत की आशंका है।”
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मुंबई के मलाड में मसीबुर मलिक सोच रहे हैं कि क्या एसआईआर के लिए उनकी मौजूदगी जरूरी है। मूल रूप से पश्चिम बंगाल के उलुबेरिया जिले के रहने वाले कंस्ट्रक्शन वर्कर मलिक अपनी पत्नी मनुजा और तीन नाबालिग बेटियों के साथ मुंबई में रहते हैं और इतने कम समय में घर वापस जाना उनके लिए काफी महंगा होगा।
मैं अपने परिवार में अकेला कमाने वाला सदस्य- मसीबुर
मसीबुर ने कहा, “अगर मैं अभी जाता हूं, तो मेरे एंप्लोयर मेरी दिहाड़ी काट देंगे और मैं अपने परिवार में अकेला कमाने वाला सदस्य हूं। मेरी सबसे बड़ी बेटी दिव्यांग है और इतने कम समय में यात्रा करना मुश्किल होगा। हमने अपने दस्तावेजों की फोटो अपने रिश्तेदारों को भेज दी हैं और उनकी सलाह के आधार पर हम जाएंगे।”
हुगली वापस घर जाने की संभावना से मलाड के मालवणी में तारिफा के घर में भी दहशत फैल गई है। वह घबराते हुए कहती हैं, “अगर कोई समस्या हुई और हमें बुलाया गया, तो हमारे पास जाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। लेकिन हम कैसे जाएंगे? मेरे पति, जो मजदूर हैं, हमारे पांच लोगों के परिवार में अकेले कमाने वाले हैं। हमारे पास मुश्किल से गुजारा करने लायक पैसे हैं।”
एसआईआर के लिए मजदूरों को बंगाल वापस जाने की जरूरत नहीं- आलोकनाथ शॉ
गुजरात की ज्वैलरी यूनिट्स के वर्कर एसोसिएशन ने मजदूरों की मदद करने के तरीकों पर बैठकें की हैं। राजकोट बंगाल यंग स्टार ग्रुप के अध्यक्ष आलोकनाथ शॉ ने कहा, “हमने बीएलओ से इस प्रोसेस के बारे में बात की है। एसआईआर के लिए मजदूरों को पश्चिम बंगाल वापस जाने की जरूरत नहीं है। बीएलओ को केवल दस्तावेजों और तस्वीरों की जरूरत होती है, जो उनके रिश्तेदार उपलब्ध करा सकते हैं।”
अहमदाबाद के गोल्ड मार्कर में समस्त बंगाली समाज एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल रऊफ याकूब शेख ने भी ऐसी बैठकें की हैं। वे कहते हैं, “हमने तय किया कि जिन्हें जाकर वोटर आईडी बनवानी है, वे जाएं। लेकिन जो लोग गुजरात में बसना चाहते हैं, वे अपने पुराने वोटर आईडी जमा करके गुजरात में ही नए बनवा सकते हैं।”
इस अफरा-तफरी के बीच, एक भ्रम की स्थिति भी है। मुंबई के अंबुजवाड़ी में अमल बिस्वास इस बात से हैरान हैं कि उनकी पत्नी को इस काम के लिए वापस क्यों बुलाया गया है, जबकि उनका परिवार अब पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना के ठाकुरनगर में रजिस्टर्ड वोटर नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं 2002 से मुंबई में रह रहा हूं और मेरे सभी दस्तावेजों आधार और राशन कार्ड में मेरा मुंबई का पता है। हम यहां रजिस्टर्ड वोटर हैं। इसलिए, मैं उलझन में हूं कि मेरी पत्नी, जिनके दस्तावेजों में भी मुंबई का पता है, को दस्तावेज जमा करने के लिए क्यों कहा गया है।”
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