हरियाणा विधनासभा चुनाव को लेकर सामने आए सभी एग्जिट पोल कांग्रेस की सरकार बनाते हुए दिख रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से चूक जाएगी। C वोटर एग्जिट पोल्स में कांग्रेस को 90 विधानसभा सीटों में से 50-58 सीटें जीतने का अनुमान है, जबकि भाजपा को केवल 20-28 सीटें मिलने की उम्मीद है। अब सवाल है कि अगर यह अनुमान सही साबित होते हैं, तो बीजेपी के इस तरह पिछड़ने के कारण क्या हो सकते हैं?
हरियाणा में बीजेपी को नुकसान का अनुमान क्यों?
1. सत्ता विरोधी भावना (ANTI-INCUMBENCY SENTIMENT)
हरियाणा में भाजपा सरकार को कई अनसुलझे मुद्दों के कारण गंभीर सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा है। बढ़ते असंतोष को कम करने के प्रयास में पार्टी ने मार्च 2024 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को हटा दिया था हालांकि यह कदम पार्टी के लिए उल्टा साबित हुआ क्योंकि इससे संगठन पर ज़्यादा प्रभाव नई पड़ा और कई मुद्दों को सुलझाया नहीं जा सका।
2. बेरोजगारी
बेरोजगारी एक ऐसा मुद्दा रहा जिसे विपक्ष ने बीजेपी की सरकार के दौरान सबसे उठाया। हरियाणा की बेरोजगारी दर 2021-22 में 9% थी, जो राष्ट्रीय औसत 4.1% से दोगुनी से भी अधिक है। अपने घोषणापत्र में 2 लाख नौकरियों का वादा करने के बावजूद, भाजपा सरकार लगभग 1.84 लाख खाली सीटों को भरने में विफल रही।
जबकि भाजपा ने दावा किया कि भर्ती पारदर्शी और योग्यता आधारित थी लेकिन 47 प्रतियोगी परीक्षाएं रद्द कर दी गईं, जिससे बीजेपी को काफी नुकसान हुआ।
3. शहरी वोटर की नाराजगी
भाजपा परंपरागत रूप से शहरी केंद्रित पार्टी रही है लेकिन शहरी वोटर्स में बीजेपी को लेकर इस बार नाराजगी के संकेत थे। शहरी वोटर कभी पार्टी की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। लेकिन इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। शहरी क्षेत्रों में वोटिंग प्रतिशत भी काफी कम रहा है।
4. सरकारी सुविधाओं से वंचित लोग?
हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री रहते हुए भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और सेवाओं को सुव्यवस्थित करने के उद्देश्य से ई-गवर्नेंस सुधारों पर जोर देने से आबादी का एक बड़ा हिस्सा अलग-थलग पड़ गया। परिवार पहचान पत्र (पीपीपी) और मेरी फसल मेरा ब्यौरा सहित कई ऑनलाइन पोर्टल शुरू किए गए, लेकिन खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी से के रहते यह सब आम लोगों तक गांवों में नहीं पहुंच सका। इससे लोगों में निराशा बढ़ती गई क्योंकि वे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाए।
अधूरे वादे
भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई कई पहल केवल कागज़ों तक ही सीमित रह गईं। उदाहरण के लिए अगस्त 2024 में सरकार ने 24 फसलों पर एमएसपी देने की योजना की घोषणा की, साथ ही अग्निवीरों से जुड़े भी कुछ वादे थे, हालाँकि, ये वादे चुनावों से ठीक पहले किए गए थे और कभी पूरी तरह से पूरे नहीं हुए, जिससे जनता का भरोसा और कम हुआ।
इसके अलावा, 2020 में अनिवार्य परिवार पहचान पत्र की शुरुआत से और भी असंतोष पैदा हुआ। पंजीकृत 72 लाख परिवारों में से केवल 68 लाख का ही सत्यापन किया गया। वृद्धावस्था पेंशन में खराब कनेक्टिविटी के कारण पीपीपी केंद्रों पर लंबी कतारों जैसे मुद्दों ने समस्या को और बढ़ा दिया।