Manmohan Singh Passes Away: पूर्व मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्हें आज ही एम्स में भर्ती करवाया गया था। मनमोहन सिंह को 1991 में भारत की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए जाना जाता है। मनमोहन सिंह का नाम शीर्ष अर्थशास्त्रियों की फेहरिस्त में सम्मान से लिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर वह नहीं तो 1991-92 में भारत आर्थिक रूप से अपंग हो गया होता। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव मिलकर भारत की आर्थिक दिशा ही बदल दी।
1991 का साल भारत के आर्थिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस साल तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने ऐसी नीतियां पेश कीं, जो न केवल उस समय के आर्थिक संकट से उबरने में मददगार रहीं, बल्कि भारत को उच्च विकास पथ पर भी ले गईं। 1991 में भारत गहरे आर्थिक संकट में था। खाड़ी युद्ध के कारण तेल की कीमतें आसमान छू गई थीं और विदेशों में काम कर रहे भारतीयों की ओर से आने वाली धनराशि में कमी आई थी। भारत के पास छह अरब डॉलर का फॉरेक्स रिजर्व बचा था। यह केवल दो हफ्तों के आयात के लिए पर्याप्त था। इसके अलावा, राजकोषीय घाटा 8% और चालू खाता घाटा 2.5% था।
डिफॉल्ट की स्थिति से बचाने के लिए उठाए गए कदम
रुपये का डीवैल्यूएशन: जुलाई 1991 में रुपये का दो चरणों में कुल 20% अवमूल्यन किया गया। इसका उद्देश्य भारतीय निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाना था।
सोना गिरवी रखना: विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंक ऑफ इंग्लैंड और अन्य संस्थानों के पास भारत का सोना गिरवी रखा. इस कदम से लगभग 60 करोड़ डॉलर जुटाए गए।
व्यापक आर्थिक सुधार
व्यापार नीति में बदलाव: निर्यात को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए लाइसेंस प्रक्रिया को सरल बनाया गया। निजी कंपनियों को आयात की स्वतंत्रता दी गई।
औद्योगिक नीति का उदारीकरण: लाइसेंस राज को खत्म किया गया और सार्वजनिक क्षेत्र की एकाधिकार नीति में बदलाव किया गया। विदेशी निवेश की सीमा 40% से बढ़ाकर 51% कर दी गई।
राजकोषीय सुधार: सब्सिडी में कटौती और टैक्स सुधारों के जरिए राजकोषीय घाटा कम करने की कोशिश की गई. पेट्रोल, रसोई गैस और चीनी पर सब्सिडी हटाई गई।
1991-92 का बजट और नई दिशा
24 जुलाई 1991 को पेश किए गए बजट में आर्थिक सुधारों को गति दी गई। बजट में कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाया गया और टैक्स डिडक्शन एट सोर्स (TDS) की शुरुआत की गई। इसके अलावा, म्यूचुअल फंड में निजी क्षेत्र की भागीदारी को अनुमति दी गई। इन सुधारों ने भारत में विदेशी निवेश के दरवाजे खोले। सार्वजनिक क्षेत्र के कई उद्योग निजी क्षेत्र के लिए खोले गए और भारत को वैश्विक व्यापार में अपनी जगह बनाने का अवसर मिला। 1991 के ये सुधार न केवल आर्थिक संकट से उबरने का एक सफल प्रयास थे, बल्कि उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी। ये नीतियां आज भी भारत की आर्थिक प्रगति की नींव मानी जाती हैं।
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