दिल्ली सरकार बनाम उप राज्यपाल मामले की सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक मजेदार वाकया पेश आया। संवैधानिक बेंच ने मामले की सुनवाई के लिए तारीख तय करने की बात की तो अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल का कहना था कि वो 30 सितंबर तक ही अपने पद पर हैं। इसके बाद वो सेवानिवृत हो जाएंगे। तब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने उनसे आर्टिकल 142 का जिक्र किया। जस्टिस चंद्रचूड़ का कहना था कि मई में आपने आर्टिकल 142 की ताकत को देखा था।
ध्यान रहे कि संविधान का आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को एक ऐसी ताकत देता है जिसमें वो मनमुताबिक कोई भी फैसला कर सकता है। इसका सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में तब इस्तेमाल किया था जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में दोषी एजी पेरारिवलन को रिहा करने का फैसला नहीं हो पा रहा था। राजीव की हत्याकांड में शामिल पेरारिवलन को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी और वो 30 साल से अधिक समय से जेल में बंद था।
जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत प्राप्त विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया। हालांकि उसे रिहा करने की अपील सरकार और राज्यपाल से होकर राष्ट्रपति के पास लंबित थी। केंद्र का कहना था कि इस मामले में राष्ट्रपति को ही फैसला लेने की पॉवर है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दिखा दिया कि आर्टिकल 142 की क्या ताकत है।
केके वेणुगोपाल को 2017 में भारत का अटार्नी जनरल नियुक्त किया गया था। उनका कार्यकाल 3 साल के लिए था। उसके बाद उन्हें दो बार एक्सटेंशन दिया जा चुका है। आखिरी बार उन्हें तीन माह का सेवा विस्तार दिया गया था। ये 30 सितंबर को खत्म हो रहा है। वेणुगोपाल की बात से लगा कि इसके बाद उन्हें एक्सटेंशन नहीं मिलने जा रहा।
लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ की बात से लगता है कि अगर केंद्र ने वेणुगोपाल को एक्सटेंशन नहीं दिया तो सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 का इस्तेमाल कर उन्हें पद पर बनाए रख सकता है। ध्यान रहे कि वेणुगोपाल पिछले छह दशकों से वकालत कर रहे हैं। मैसूर हाईकोर्ट से उन्होंने अपना करियर शुरू किया और फिर 1972 में वो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। उन्हें संवैधानिक मामलों का एक्सपर्ट माना जाता है। मोरारजी देसाई सरकार में वो देश के एएसजी थे।