महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस अपने उस कदम को गलत नहीं मानते, जिसके तहत उन्होंने पहले अजित पवार के साथ सरकार बनाने की शपथ ली थी। बात नहीं बन पाई तो फिर उन्होंने शिवसेना में सेंध लगाकर उद्धव की सरकार गिरा दी। उनका कहना है कि राजनीति में सिद्धांत अपनी जगह पर ठीक होते हैं। लेकिन कोई अगर आपको लात मार दे तो फिर क्या करेंगे। कुछ तो करना ही पड़ेगा।

देवेंद्र फडणवीस का कहना था कि उद्धव ठाकरे का बर्ताव गलत न होता तो शिवसेना से हमारा गठबंधन कभी भी नहीं टूटता। लोगों ने बीजेपी- शिवसेना गठबंधन को चुना था। लेकिन फिर उद्धव ठाकरे ने दंभ वाली राजनीति दिखाई। फडणवीस का कहना था कि वो कोई संत थोड़े ही हैं, जो सामने वाले के हमले पर चुप रह जाएगा। वो एक राजनीतिज्ञ हैं। इसी वजह से वो पहले अजित पवार के साथ गए।

अजित ने शपथ लेने के बाद कदम पीछे खींचे तो वो फिर एकनाथ शिंदे के पास चले गए। उनका कहना था कि इसमें किसी को अचरज नहीं होना चाहिए। वो कांग्रेस कांग्रेस, AIMIM और मुस्लिम लीग के साथ तो बिलकुल भी नहीं जा सकते, क्योंकि उनकी विचारधारा के साथ खड़े होना भी उनके लिए मुश्किल है।

बिलकिस के दोषियों के स्वागत को बताया था गलत

इंडियन एक्सप्रेस से साक्षात्कार में फडणवीस ने अपने उस कदम को भी सही माना जिसमें उन्होंने बिलकिस बानो के दोषियों के जेल से बाहर आने पर किए गए स्वागत की आलोचना की थी। एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि उन्होंने वही सब कुछ कहा था जो उन्हें ठीक लगता है। इसके लिए बीजेपी के किसी भी स्तर से उनसे सवाल जवाब नहीं किए गए।

अलसुबह ले डाली थी अजित पवार के साथ सरकार बनाने की शपथ

महाराष्ट्र के असेंबली इलेक्शन के बाद जब सरकार नहीं बन पा रही थी तो पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने राकांपा नेता अजित पवार को साथ लेकर सरकार बनाने की कोशिश की। अलसुबह वो खुद सीएम और अजित पवार डिप्टी सीएम की शपथ लेते दिखे। हालांकि दोस्ती ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी और शरद पवार के सीन में आते ही अजित ने फडणवीस से किनारा कर लिया।

देवेंद्र फडणवीस के हाथ में सीएम की कुर्सी आते आते रह गई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और फिर शिवसेना में बगावत कराकर उद्धव ठाकरे की सरकार को ही पलट दिया। हालांकि सीएम बनने का उनका मंसूबा पूरा नहीं हो सका। आलाकमान के दखल के बाद शिंदे सीएम बन गए और देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम के पद से ही संतोष करना पड़ा।