पूर्व विदेश मंत्री और दिग्गज बीजेपी नेता सुषमा स्वराज बुधवार (सात अगस्त, 2019) को पंचतत्व में विलीन हो गईं। राजधानी नई दिल्ली में लोधी रोड स्थित शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार हुआ, जबकि इससे पहले दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर बने भाजपा मुख्यालय पर अंतिम दर्शन के लिए उनका पार्थिव शरीर रखा गया था। वहां तब न सिर्फ बीजेपी नेता उन्हें अंतिम विदाई पहुंचे, बल्कि उस दौरान सुषमा के पति स्वराज कौशल और बेटी बांसुरी कौशल भी मौजूद थे।

दोनों ही बेहद भावुक नजर आए और अंतिम दर्शन के दौरान उनकी आंखें नम रहीं। विदाई दिए जाने के दौरान जब गृह मंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा, पार्टी नेता स्मृति ईरानी समेत भगवा पार्टी के नेता उनके अंतिम दर्शन करते हुए तिरंगे में लिपटे सुषमा स्वराज के पार्थिव शरीर को देख रहे थे, तभी स्वराज कौशल व बांसुरी सुषमा को आखिरी सलामी देने लगे।

पूर्व विदेश मंत्री के पार्थिव शरीर को आखिरी सलाम देते हुए बेटी बांसुरी और पति स्वराज कौशल।

2016 में उनका किडनी ट्रांसप्लांट का आपरेशन हुआ था। यही वजह रही कि स्वास्थ्य के मद्देनजर उन्होंने 2019 का आम चुनाव नहीं लड़ा। मोदी 2.0 में उनकी जगह एस.जयशंकर विदेश मंत्री बनाए गए। बता दें कि 67 वर्षीय सुषमा की कानून और संसदीय मामलों पर गहरी पकड़ थी। मात्र 25 साल की उम्र में वह हरियाणा में विधायक बनीं। बाद में वह सूबे की शिक्षा मंत्री भी रहीं।

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विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने सोशल मीडिया का बेहद क्रांतिकारी तरीके से इस्तेमाल किया और दुनिया के आतंकवाद प्रभावित देशों में फंसे सैंकड़ों भारतीयों की न केवल मदद की बल्कि उन्हें भारत वापस लाने के लिए दिन-रात एक किए। दुखियारों की अपील पर वह फौरी कार्रवाई करती थीं और यही वजह है कि लोगों के लिए वह एक मंत्री से मसीहा तक बनीं।

सुषमा के पार्थिव शरीर को सिर झुकाकर नमन करते हुए पीएम मोदी। (फोटोः पीटीआई)

सुषमा, हरियाणा सरकार में सबसे छोटी उम्र की मंत्री, दिल्ली की पहली मुख्यमंत्री और देश में किसी राजनीतिक पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता थीं। उन्होंने एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) से राजनीतिक करियर का आगाज किया, जबकि बाद में बीजेपी से जुड़ीं। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बनीं और वाजपेयी सरकार के 1998 में सत्ता में आने पर उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया। 1999 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ बेल्लारी से चुनाव लड़ा। हालांकि, वह चुनाव हार गईं, पर उनका कद बहुत बढ़ गया।

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लंबे समय तक उन्हें वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की अगुवाई में काम करने का मौका मिला। वह 2009 से 14 के बीच लोकसभा में विपक्ष की नेता के रूप में भी प्रभावी असर छोड़ने में सफल रहीं। आडवाणी ने उन्हें याद करते हुए कहा, ‘‘अपने गर्मजोशीपूर्ण व्यवहार और ममतामयी स्वभाव से वह हर किसी के दिल को छू लेती थीं। एक भी साल ऐसा नहीं गुजरा, जब वह मेरे जन्मदिन पर मेरा पसंदीदा चॉकलेट केक लानी भूली हों।’’