अदालत ने कहा कि ईएमआई भुगतान के आधार पर पति संयुक्त संपत्ति पर एकमात्र स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पति-पत्नी के नाम पर संयुक्त रूप से अर्जित और पंजीकृत संपत्ति पर पति केवल इस आधार पर एकमात्र स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता कि उसने बैंक के ईएमआई का भुगतान किया है।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने 22 सितंबर को यह टिप्पणी की। अदालत ने कहा, ‘‘जब संपत्ति पति-पत्नी के संयुक्त नाम पर हो जाती है तो पति को केवल इस आधार पर एकमात्र स्वामित्व का दावा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि उसने अकेले ही संपत्ति की खरीद मूल्य का भुगतान किया है।’’

जब संपत्ति पति-पत्नी के संयुक्त नाम पर हो जाती है तो पति एकमात्र स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता

अदालत ने कहा कि पति का दावा बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम की धारा चार का उल्लंघन होगा जो संपत्ति का वास्तविक मालिक होने का दावा करने वाले व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति, जिसके नाम पर संपत्ति है के विरुद्ध अधिकारों को लागू करने के लिए कोई मुकदमा, दावा या कार्रवाई करने से रोकता है। उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में पत्नी ने यह भी दावा किया था कि अतिरिक्त राशि का 50 प्रतिशत उसका है और यह उसके स्त्रीधन (हिंदू कानून के अनुसार एक महिला की पूर्ण और अनन्य संपत्ति) का हिस्सा है इसलिए इस संपत्ति पर उस का अधिकार है। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि कानूनी रूप से पंजीकृत संयुक्त स्वामित्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, भले ही एक पक्ष ने पूरी राशि का भुगतान किया हो।

पढ़ें- न्यायपालिका के खिलाफ भ्रष्टाचार के बेबुनियाद दावे

याचिका के अनुसार, दोनों की शादी 1999 में हुई थी और उन्होंने 2005 में मुंबई में एक संयुक्त घर खरीदा था। हालांकि, वे 2006 में अलग रहने लगे और पति ने उसी साल तलाक के लिए अर्जी दी जो वर्तमान में लंबित है।