नवनीत शर्मा

इस चराचर जगत में अगर कुछ सर्वाधिक चलायमान है, तो वह है बुद्धि। दर्शन और विचारों की ऐतिहासिक शृंखला ने बुद्धि को मानवीय और ईश्वरीय बुद्धि में विभाजित किया है। मानवीय बुद्धि संसार को समझने का प्रयास करती और ईश्वरीय बुद्धि संसार को निर्मित करती है। मानवीय बुद्धि सहज ही परिवर्तनशील है, ईश्वरीय बुद्धि को चिरस्थायी माना गया है। माना जाता है कि मानवीय बुद्धि ईश्वर को बूझने का प्रयास करती है।

ईश्वरीय बुद्धि से कोई मनुष्य अबूझ नहीं होता। ईश्वरीय बुद्धि का रचनात्मक पहलू ब्रह्मांड के जटिल स्वरूप में स्पष्ट है, जो एक ऐसी बुद्धिमत्ता को दर्शाता है, जो मनुष्य की समझ से परे है। हालांकि कई धार्मिक पंथ मानते हैं कि मनुष्य परमात्मा का अंग है, जो आध्यात्मिक आयामों के माध्यम से ईश्वर से जटिल रूप से जुड़े हुए हैं। यह संबंध विभिन्न धार्मिक प्रथाओं और अनुष्ठानों का आधार बनता है।

ईश्वरीय बुद्धि को अक्सर परम नैतिक दिशासूचक माना जाता है, जो कि नैतिक व्यवहार और सामाजिक सद्भाव का मार्गदर्शन करता है। ईश्वरीय बुद्धि की प्रेरणा से निकलने वाली नैतिक शिक्षाएं, एक प्रकाशस्तंभ के रूप में काम करती हैं, जो कि व्यक्तियों को कुछ सिद्धांतों के अनुरूप विकल्प चुनने में मार्गदर्शन करती हैं। जैसे न्याय, करुणा और प्रेम की अवधारणाएं मानवीय नैतिकता को आकार देने वाली ईश्वरीय बुद्धि में अपनी जड़ें पाती हैं।

इक्कीसवीं सदी के आरंभ में कृत्रिम बुद्धि का आविर्भाव होता है। यह एक अलग प्रश्न है कि कृत्रिम बुद्धि का श्रेय किसे दिया जाए, मानवीय बुद्धि को या ईश्वरीय बुद्धि को, जिसने मानवीय बुद्धि को प्रेरित किया कि कृत्रिम बुद्धि को रचा जाए। कृत्रिम बुद्धि के बनते ही यह सवाल बदल गया और पूछा जाने लगा कि क्या मानवीय बुद्धि, कृत्रिम बुद्धि की भांति ही काम करती है और क्या ईश्वरीय बुद्धि, कृत्रिम बुद्धि की भांति ही सुनियोजित है।

एकाएक कृत्रिम बुद्धि हमारे रोजमर्रा के जीवन में हस्तक्षेप ही नहीं, वर्चस्व स्थापित करने लगी। आज आप एक किस्म का गीत या संगीत सुनें, कृत्रिम बुद्धि उसी जैसे गानों की कतार पेश कर देगी या आप कोई स्थान जानकारी के लिए ‘सर्च’ कर लें, अगले दिन से कृत्रिम बुद्धि आपको वहां पहुंचने के रास्ते और रहने के होटल आदि बताने लगेगी। इन सबसे विकट अब तो कृत्रिम बुद्धि के अनुरूप आप किसी की आवाज में सारे स्वर-व्यंजन अगर रिकार्ड कर दें, तो वह उस आवाज में कोई भी गायकी प्रस्तुत कर सकती है। तो, अब किसी गायक की आवाज को ईश्वरीय वरदान कहने में भी संकोच है।

शिक्षा और शोध के क्षेत्र में ऐसे कतिपय साफ्टवेयर आ गए हैं, जो शिक्षक और शोधकर्ता दोनों को विस्थापित करने का दावा करते हैं। ऐसे साफ्टवेयर के बरक्स मौलिकता और नवीनता जैसे विचारों का क्या होगा? क्या नवाचार नए साफ्टवेयर के आविष्कार तक सीमित होकर रह जाएगा या नया साफ्टवेयर बनाने की जिम्मेदारी भी कृत्रिम बुद्धि के हवाले कर दी जाएगी।

व्यक्ति की उत्सुकता और उत्कंठा के उत्तर की तलाश का समय जैसे विलुप्त हो गया है। आप क्या जानें, कैसे जानें और कितना जानें, कृत्रिम बुद्धि उसे सुनिश्चित करने लगी है। आप फोन के परदे पर अंगुली फेरते हुए किस तरह के वीडियो या विचार को अधिक समय देते हैं, कृत्रिम बुद्धि उसी अनुरूप आपको सामग्री उपलब्ध कराना आरंभ कर देती है। ‘अन्य’ से परिचित होने की तमाम संभावनाएं खत्म कर देती है।

हमें विद्वान होने का मतिभ्रम देती है। कृत्रिम बुद्धि मनुष्य की सोचने की क्षमता को सीमित कर दे रही है, जिससे मनुष्य की सोचने-समझने की क्षमता तेजी से कम हो सकती है। मानवीय बुद्धि की क्षमता न के बराबर रह जाएगी। मनुष्य आलसी होता जाएगा और यह मानव जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।

कृत्रिम बुद्धि हमेशा गणितीय रूपरेखा में सोचेगी और कथ्य या महाकथ्य निर्मित नहीं करेगी। कृत्रिम बुद्धि की प्रणाली मनुष्य द्वारा विकसित और प्रशिक्षित की जाती है। जिस तरह का प्रारंभिक डेटा इसमें डाला जाता है, इसकी रूपरेखा उसी के अनुरूप कार्य करती है। कृत्रिम बुद्धि के निर्णय और कार्यकलाप पक्षपाती या त्रुटिपूर्ण भी तभी हो सकते हैं, अगर उनके मानव प्रशिक्षकों द्वारा प्रदान किया गया डेटा पक्षपाती या त्रुटिपूर्ण हो।

मानव और मानवीय जीवन का सौंदर्यशास्त्र कृत्रिम बुद्धि निरूपित तो कर सकती है, नया नहीं रच सकती। उसमें भावनात्मक बुद्धिमत्ता का अभाव है, क्योंकि कृत्रिम बुद्धि अपने निर्णय लेने में मानवीय भावनाओं को शामिल नहीं कर सकती। कृत्रिम बुद्धि एक ही तरह के ज्ञान, विचार और दर्शन का वर्चस्व स्थापित करेगी। ल्योतार की यह भविष्यवाणी कि जो ज्ञान कंप्यूटर की भाषा में अनूदित नहीं हो पाएगा, वह ज्ञान होने का दर्जा और वैधता दोनों को खो देगा, कृत्रिम बुद्धि के युग में सत्य होता प्रतीत हो रहा है।

यह सच है कि कृत्रिम बुद्धि के कई फायदे हैं, जाहिर है कि कृत्रिम बुद्धि कई काम इंसानों से बेहतर कर सकती है। फिर भी, कृत्रिम बुद्धि के गंभीर नकारात्मक परिणाम हैं। धीरे-धीरे कृत्रिम बुद्धि द्वारा मानव की विश्लेषणात्मक, आलोचनात्मक सोच और रचनात्मक समस्या-समाधान जैसी मानसिक क्रियाओं से बाहर किया जा रहा है। क्योंकि जैसे ही हम कृत्रिम बुद्धि से प्रश्न पूछते हैं, वैसे ही वह उसका उत्तर दे देती है।

हम तैयार उत्तरों के लिए कृत्रिम बुद्धि पर निर्भर रहने के आदी हो जाएंगे। इससे हम अपने संज्ञानात्मक कार्य खो देते हैं, क्योंकि जब हम शोध और समस्या-समाधान करते हैं, तो हमारे संज्ञानात्मक कार्य संलग्न होते हैं, जिसमें हम सोच और तर्क का उपयोग करते हैं ताकि अर्थ को समझा जा सके। साथ ही, सूचना पुनर्प्राप्ति के लिए कृत्रिम बुद्धि की सुविधा मानव स्मृति के लिए चुनौतियां खड़ी करती है। चूंकि व्यक्ति बड़ी मात्रा में जानकारी संग्रहीत करने और पुनर्प्राप्त करने के लिए कृत्रिम बुद्धि पर भरोसा करते हैं, इसलिए याद रखने और संज्ञानात्मक अवधारणा की आवश्यकता कम हो सकती है। यह बदलाव संज्ञानात्मक क्षमताओं पर संभावित प्रभाव के बारे में चिंता पैदा करता है।

कृत्रिम बुद्धि के उपयोग से मानवीय सहानुभूति, संचार और सामाजिक कौशल पर प्रभाव पड़ेगा। जैसे-जैसे ‘वायस असिस्टेंट’ और ‘चैटबाक्स’ आम होते जा रहे हैं, वैसे ही व्यक्ति तेजी से इनके साथ संवाद में संलग्न होते जा रहे हैं। यह बदलाव पारंपरिक संचार गतिशीलता को चुनौती देता और सार्थक पारस्परिक मानवीय संबंधों की प्रकृति के बारे में भी सवाल उठाता है।

संचार के लिए कृत्रिम बुद्धि पर निर्भरता से कुछ सामाजिक कौशल में गिरावट आ सकती है। कृत्रिम बुद्धि के संचालन से संप्रेषण प्रचलन में सामाजिक अलगाव पैदा कर सकता है, क्योंकि रूबरू की बातचीत कम हो जाती है। यह मानवीय संबंधों की गहराई और भावनात्मक बारीकियों को प्रभावित कर सकती है। इससे संभावित रूप से उन जटिल सामाजिक स्थितियों में मार्गनिर्देशन करने की उनकी क्षमता कम हो सकती है, जब सहानुभूति, अंतर्ज्ञान और भावनात्मक बुद्धिमत्ता की वास्तव में दिनचर्या में आवश्यकता होती है।

उत्तर-आधुनिकता के इस युग में जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता का विकास हो रहा है, मानव सहानुभूति, संचार, सामाजिक कौशल और स्मृति पर इसका प्रभाव तेजी से स्पष्ट होता जा रहा है। मानव अनुभव के इन मूलभूत पहलुओं के संभावित परिणामों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। कृत्रिम बुद्धि के समक्ष मानवीय बुद्धि खतरे में और ईश्वरीय बुद्धि शीत निद्रा में है। इन तीनों में अंतर बनाए रखना जरूरी है। कृत्रिम बुद्धि के लिए नियमन आवश्यक है और रचे भी जा रहे हैं, पर यह उस शंका को ही गहरा करते हैं, जिसमें मानवीय बुद्धि खुद से विरचित कृत्रिम बुद्धि के भस्मासुर से भयक्रांत है।