मानव संसाधन विकास (HRD) मंत्रालय ने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (JNU) प्रशासन को सलाह दी है कि वो मौजूदा गतिरोध को खत्म करने के लिए छात्रों के खिलाफ पुलिस शिकायत वापस लेने के सिलसिले में एक अधिसूचना जारी करे। सरकार ने सप्ताह के आखिर में समझौते का ये फॉर्मूला विश्वविद्यालय के समक्ष पेश किया था। मंत्रालय को अब जेएनयू प्रशासन के जवाब का इंतजार है। बताया जाता है कि छात्रों के खिलाफ दर्ज पुलिस शिकायतें वापस लेना समझौते का हिस्सा है। ऐसे में अगर विश्वविद्यालय प्रशासन इसके लिए सहमत होता है तो सरकार को उम्मीद है कि छात्र आंदोलन नहीं करेंगे और ना ही यूनिवर्सिटी अधिकारियों का घेराव करेंगे।
सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक छात्र संगठन को अधिसूचना से कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही जेएनयूएसयू की चुनाव समिति को यूनियन चुनाव के परिणाम घोषित करने की अनुमति दे दी है। इसका मतलब है कि कोर्ट को लिंदोह समिति की शिफारिशों का कोई उल्लंघन नहीं मिला था।
बता दें कि पिछले महीने दिल्ली पुलिस ने छात्रों द्वारा विश्वविद्यालय प्रशासन ब्लॉक में “बर्बरता” के संबंध में एक एफआईआर दर्ज की थी वहीं उच्चस्तरीय समिति (एचपीसी) द्वारा 26 नवंबर को अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद मामले में सरकार का यह पहला हस्तक्षेप है। हॉस्टल फीस में बढ़ोतरी पर गतिरोध को समाप्त करने के उपाय सुझाने के लिए गठित की गई समिति ने सुझाव दिया था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को जेएनयू को अपनी नकदी की कमी के लिए अतिरिक्त धनराशि जारी करनी चाहिए। इसके अलावा यूनिवर्सिटी को हितधारकों से बातचीत के बाद ही फीस बढ़ानी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि छात्रों के विरोध प्रदर्शन की मुख्य वजह सर्विस चार्ज (रखरखाव, मेस वर्कर, खाना और स्वच्छता) और यूटिलिटी चार्ज (बिजली और पानी की खबत) है, जो अब तक छात्रावास शुल्क में शामिल नहीं थे।
शुल्क के नए बदलाव में सिंगल कमरे का किराया बीस रुपए प्रति माह से बढ़ाकर 600 रुपए प्रति माह कर दिया गया है। इसी तरह डलब शेयरिंग रूम का किराया 10 रुपए प्रतिमाह से बढ़ाकर 300 रुपए प्रतिमाह कर दिया गया। चूंकि फीस वृद्धि को आधिकारिक तौर पर पारित कर दिया गया था। इस पर छात्र विरोध में भड़क गए थे। इसपर जेएनयू प्रशासन ने कुछ मामले में बढ़े किराए पर आंशिक रोलबैक की घोषणा की थी।