Result in Dera Sacha Sauda Influence Areas: विधानसभा चुनाव के मतदान से ठीक पहले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम की पैरोल पर रिहाई का कितना असर पड़ा यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है। राम रहीम को मतदान से ठीक चार दिन पहले 20 दिनों की पैरोल दी गई थी। उस समय सभी दलों ने इसके लिए बीजेपी सरकार पर जमकर हमला बोला था। विपक्ष ने बीजेपी पर तीखे हमले किए थे। कांग्रेस और अन्य दलों का आरोप था कि यह कदम डेरा समर्थकों से वोट पाने के लिए उठाया गया। हालांकि चुनावी नतीजे इसके ठीक उलटा साबित हुए। नतीजों में यह साफ दिखा कि राम रहीम की पैरोल का बीजेपी को उतना फायदा नहीं हुआ, जितनी उम्मीद की जा रही थी। डेरा समर्थकों के प्रभाव वाले 28 सीटों में से 15 पर कांग्रेस ने जीत हासिल की, जबकि बीजेपी ने 10 सीटें जीतीं। बाकी सीटों पर अन्य दलों ने कब्जा जमाया।

2014 में भी डेरा सच्चा सौदा ने बीजेपी का समर्थन किया था

डेरा सच्चा सौदा का राजनीतिक समर्थन पिछले चुनावों में हमेशा असरदार नहीं रहा है। 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में डेरा ने बीजेपी का समर्थन किया था, लेकिन सिरसा की 5 में से 4 सीटों पर इनेलो और एक पर अकाली दल ने जीत दर्ज की। 2009 में डबवाली सीट पर अजय चौटाला के खिलाफ डेरा ने प्रचार किया, फिर भी अजय चौटाला चुनाव जीत गए। 2005 में भी इनेलो के सीताराम के खिलाफ कांग्रेस के कर्मवीर सिहाग को समर्थन देने की डेरा की अपील बेअसर रही, और सीताराम ने भारी मतों से जीत दर्ज की।

डेरा सच्चा सौदा के 35 लाख से ज्यादा अनुयायी हरियाणा में फैले हुए हैं, लेकिन राजनीतिक समर्थन के बावजूद चुनावी नतीजे अनुकूल नहीं रहे। 2012 के पंजाब चुनाव में भी डेरा ने कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह का समर्थन किया था, पर कैप्टन चुनाव नहीं जीत पाए। हाल के चुनावों में डेरा ने बीजेपी के भव्य बिश्नोई को आदमपुर सीट पर समर्थन दिया, लेकिन वे भी कांग्रेस के चंद्र प्रकाश जांगा से हार गए। इससे यह साफ होता है कि डेरा का समर्थन चुनावी नतीजों पर निर्णायक प्रभाव नहीं डालता।

हरियाणा के कई इलाकों में डेरा सच्चा सौदा का अच्छा-खासा प्रभाव है

बीजेपी को उम्मीद थी कि राम रहीम की पैरोल से वह डेरा समर्थकों का समर्थन हासिल करेगी, जिससे चुनाव में फायदा होगा। हरियाणा के कई इलाकों में डेरा सच्चा सौदा का अच्छा-खासा प्रभाव है, खासकर सिरसा और फतेहाबाद जैसे जिलों में। डेरा के लाखों अनुयायियों को बीजेपी के पक्ष में मतदान करने के निर्देश दिए गए थे। सत्संग के दौरान भी समर्थकों को बूथ पर ज्यादा से ज्यादा वोटर लाने की अपील की गई थी। यह सब इस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा था। हालांकि, चुनावी नतीजे आने के बाद इस रणनीति की सफलता पर सवाल खड़े हो गए।

कांग्रेस को किन इलाकों में हुआ फायदा?

चुनावी नतीजों में साफ दिखा कि डेरा समर्थक इलाकों में कांग्रेस का प्रदर्शन बीजेपी के मुकाबले बेहतर रहा। कैथल, फतेहाबाद, सिरसा, और हिसार जैसे जिलों में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की। खासकर सिरसा और टोहाना में, जहां डेरा समर्थकों की बड़ी संख्या है, कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी चुनौती दी। इस बार कांग्रेस ने राम रहीम की पैरोल को ज्यादा उछालने से बचा, जिससे उनके पक्ष में डेरा समर्थक इलाकों में नाराजगी का असर कम दिखाई दिया।

हालांकि, बीजेपी ने भी कुछ महत्वपूर्ण सीटों पर जीत हासिल की। बरवाला, हांसी, हिसार और नीलोखेड़ी जैसी सीटों पर डेरा समर्थकों के समर्थन के बावजूद बीजेपी की सफलता सीमित रही। पार्टी को इन क्षेत्रों से बड़ी जीत की उम्मीद थी, लेकिन कांग्रेस की मजबूत स्थिति और स्थानीय मुद्दों ने बीजेपी की रणनीति को कमजोर कर दिया। खासकर उन इलाकों में, जहां बीजेपी का पहले से मजबूत आधार नहीं था, वहां डेरा समर्थकों के

यह पहली बार नहीं था जब राम रहीम और डेरा सच्चा सौदा ने किसी राजनीतिक दल को समर्थन दिया हो। 2014 के चुनावों में भी राम रहीम ने बीजेपी का समर्थन किया था, लेकिन तब भी डेरा समर्थक क्षेत्रों में बीजेपी को कोई खास फायदा नहीं हुआ था। 2007 के पंजाब विधानसभा चुनावों में जब डेरा ने कांग्रेस का समर्थन किया, तब भी नतीजे उम्मीद के अनुरूप नहीं आए थे। इससे यह सवाल उठता है कि क्या डेरा का राजनीतिक समर्थन सचमुच चुनावों में निर्णायक साबित हो पाता है?

डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की संख्या हरियाणा में लाखों में है, लेकिन चुनावी नतीजे बताते हैं कि उनके वोट को किसी एक दल के पक्ष में पूरी तरह मोड़ना आसान नहीं है। राम रहीम के पैरोल से बीजेपी को उम्मीद थी कि डेरा के अनुयायी पार्टी के पक्ष में भारी संख्या में मतदान करेंगे, लेकिन नतीजे इसके विपरीत रहे। कांग्रेस ने डेरा समर्थक इलाकों में बीजेपी से ज्यादा वोट बटोरे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पैरोल के बावजूद डेरा समर्थक इलाकों में भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा।

राम रहीम की पैरोल से बीजेपी को निश्चित रूप से कोई बड़ा फायदा नहीं हुआ, बल्कि इससे विपक्ष को बीजेपी पर हमला करने का एक मौका मिला। विपक्ष ने इसे चुनावी हथकंडा बताकर बीजेपी को घेरा, लेकिन इसके उलट कांग्रेस ने इस मुद्दे को ज्यादा तूल न देकर डेरा समर्थकों का समर्थन हासिल कर लिया। इससे यह साबित होता है कि केवल पैरोल के सहारे चुनावी गणित नहीं चल सकता, बल्कि राजनीतिक समर्थन के साथ-साथ अन्य मुद्दों और स्थानीय स्तर पर संगठन की मजबूती भी जरूरी होती है।

डेरा समर्थक इलाकों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहने से यह साफ होता है कि सिर्फ पैरोल या धार्मिक समूहों के समर्थन से चुनावी सफलता की गारंटी नहीं होती। बीजेपी को इस नतीजे से यह सीखने की जरूरत है कि धार्मिक या सामाजिक संगठनों से समर्थन के साथ-साथ जमीनी स्तर पर राजनीतिक मुद्दों और जनाधार पर भी ध्यान देना जरूरी है।