कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में वैज्ञानिकों ने अपने अथक प्रयासों से दुनिया को महमारी से निजात दिलाने के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराई है। पीफिजर और मॉडर्ना वैक्सीन वैज्ञानिकों की इन्हीं कोशिशों से हासिल हो सकी हैं। अच्छी बात है कि वैक्सीन हासिल करने की दिशा में सारे क्लीनिकल ट्रायल को पूरा किया गया है। अभी तक औसतन एक वैक्सीन को लोगों के बीच उपलब्ध कराने में 15 साल तक का समय लग जाता था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एक सुरक्षित और असरदार वैक्सीन को बनाने में कठिन मेहनत लगती है।

अच्छी बात ये है कि वैक्सीन 2021 के मध्य तक सबको मिल सकेगी ऐसा कर दिखाना अपने आप में एक बड़ी कामयाबी है। आमतौर पर कुछ वैक्सीन को जरूरी अनुमति और लाइसेंस पाने में ही चार साल का समय लग जाता है। हालांकि अब तक स्मॉलपॉक्स ही एक ऐसी बीमारी है जिसे वैक्सीनेशन के जरिए खत्म किया जा सका है।

‘वैक्सीन राष्ट्रवाद ‘और COVAX का गठन

बता दें कि कोरोना के खिलाफ वैक्सीन बनाने के लिए दुनिया भर से वित्तीय सहायता मिली। दुनिया भर से करोड़ों रुपयों की राशि वैक्सीन के ट्रायल पर खर्च की गई। जानकार तो इसे वैक्सीन राष्ट्रवाद का नाम भी दे रहे हैं। कई देशों ने वैक्सीन के लिए प्रीऑर्डर भी दे दिए।

ज्यादातर विकासशील देश COVAX पर निर्भर कर रहे हैं। जिसका काम जरूरतमंद देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराना है। अभी 190 से ज्यादा देश COVAX के सदस्य हैं। सदस्य देशों की 20 फीसदी आबादी को वैक्सीन देने का काम ये संस्था करेगी।

मॉडर्ना, पीफिजर, ऑक्सफोर्ड ने किए वैक्सीन के ट्रायल

कोविड का जैनिटक मालूम चलने के कुछ ही समय में मॉडर्ना ने सबसे पहले इंसानों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू किया था। इसके बाद Oxford-AstraZeneca और बाद में Pfizer-BioNTech ने भी ट्रायल किए।

कुछ महीनों में ट्रायल इस तरह किए गए पूरे

आमतौर पर कोई भी वैक्सीन लोगों को दिए जाने से पहले कई चरणों से होकर गुजरती है। शुरुआत में इसका जानवरों पर ट्रायल किया जाता है बाद में इंसानों पर ट्रायल की शुरुआत की जाती है। हर चरण अपने आप में काफी समय लेता है। हालांकि कोविड वैक्सीन के मामले में कई चरणों को एक साथ ही पूरा किया गया।

पहले चरण में तीन महीनों में इंसानों पर वैक्सीन का ट्रायल किया गया और देखा गया ये सुरक्षित है कि नहीं। फिर इसके बाद बड़ी संख्या में कई समूहों में कोरोना की वैक्सीन का ट्रायल किया गया। कोरोना वैक्सीन बनाने के तीसरे चरण में हजारों लोगों को वैक्सीन देकर ट्रायल किया गया।

इसके बाद कंपनियों ने संबंधित देश में लाइसेंस हासिल किया। कई देशों ने वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की पहले ही इजाजत दे दी थी।