हर साल सुप्रीम कोर्ट में बड़ी संख्या में मामले दायर किए जाते हैं जबकि हज़ारों मामले पहले से ही पेंडिंग हैं। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में 82,000 से अधिक मामले लंबित हैं। ऐसे में पिछले महीने से सुप्रीम कोर्ट विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) को प्राथमिकता दे रहा है। ये ऐसे मामले हैं जिनमें अदालत ने पिछले कुछ सालों में पक्षों को नोटिस जारी किया होगा लेकिन अभी तक उन्हें स्वीकार नहीं किया है (अपील करने की अनुमति नहीं दी है)।

न्यायालय इन मामलों की सुनवाई वर्किंग वेक के तीन दिन कर रहा है और केवल सोमवार-शुक्रवार को नए मामलों के लिए रखा है। वास्तव में, सर्वोच्च न्यायालय उन मामलों की लिस्ट को सीमित कर रहा है जिनमें विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है। आइये जानते है सुप्रीम कोर्ट कैसे तय करता है कि किन मामलों को प्राथमिकता दी जाए?

जस्टिस खन्ना के 51वें CJI के रूप में पदभार ग्रहण करने के कुछ दिन बाद सर्वोच्च न्यायालय ने एक परिपत्र जारी किया जिसमें कहा गया था कि विविध मामलों की सूचना के बाद मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को सुनवाई की जाएगी। परिपत्र में कहा गया है कि बुधवार और गुरुवार को अगले आदेश तक कोई भी नियमित सुनवाई का मामला सूचीबद्ध नहीं किया जाएगा।

SC में ऐसे मामलों को प्राथमिकता दी जा रही है जिन्हें जल्दी स्वीकार किया जा सकता है

“नोटिस के बाद विविध मामले” ऐसे मामले हैं जिनमें न्यायालय दूसरे पक्ष को नए मामले में नोटिस जारी करता है। वहीं, स्वीकार किए जाने के बाद कोई मामला नियमित सुनवाई का मामला बन जाता है। अदालत में लगातार बढ़ते मामलों के बोझ को कम करने की कोशिश में ऐसे मामलों को प्राथमिकता दी जा रही है जिन्हें या तो जल्दी से स्वीकार किया जा सकता है या खारिज किया जा सकता है, उन मामलों की तुलना में जिनमें दोनों पक्षों की ओर से पूरी तरह से बहस की आवश्यकता होती है।

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सुप्रीम कोर्ट केवल 14% एसएलपी को ही स्वीकार करता

नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु की प्रोफेसर अपर्णा चंद्रा द्वारा सह-लिखित पुस्तक कोर्ट ऑन ट्रायल: ए डेटा-ड्रिवन अकाउंट ऑफ द सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट केवल 14% एसएलपी को ही स्वीकार करता है। एसएलपी अनिवार्य रूप से अपील (हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ) हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट को उनकी सुनवाई के लिए छुट्टी देनी होती है। इन मामलों को खारिज करने का मतलब है पेंडिंग मामलों में तुरंत कमी आना।

किताब के मुताबिक, अपील (जिनमें से अधिकांश एसएलपी हैं) अदालत के काम का लगभग 92.4% हिस्सा हैं। एसएलपी को स्वीकार किया जाए या नहीं, इस विषय पर आम सुनवाई औसतन केवल 1 मिनट और 33 सेकंड तक चलती है। जब कोई मामला अदालत द्वारा पूर्ण सुनवाई के लिए ले लिया जाता है तो फैसला आने में औसतन चार साल से अधिक का समय लगता है। वहीं,कई मामलों में दोगुना या उससे भी अधिक समय लग जाता है। दूसरी ओर, नियमित सुनवाई के मामले ज़्यादातर सालों से पेंडिंग रहते हैं जिससे लंबित मामलों की संख्या बढ़ती है।

सुप्रीम कोर्ट में कैसे होती है मामलों की सुनवाई

सर्वोच्च न्यायालय के सार्वजनिक कार्यों के पीछे जिसमें सुनवाई करना, निर्णय लिखना (और सुनाना) और सार्वजनिक रूप से उपस्थित होना शामिल है, न्यायालय की प्रशासनिक मशीन, “रजिस्ट्री” है।

सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के दो विंग हैं – प्रशासन और न्यायिक। इनमें से प्रत्येक विंग को विभिन्न डिवीजनों में विभाजित किया गया है, जिनकी अपनी प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ हैं जैसे केस लिस्टिंग, तकनीक, कोर्ट और इमारतों से जुड़े मुद्दे, मानव संसाधन। प्रत्येक प्रभाग का नेतृत्व एक रजिस्ट्रार करता है और सम्पूर्ण रजिस्ट्री का नेतृत्व महासचिव करता है जो सर्वोच्च न्यायालय में सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी होता है और मुख्य न्यायाधीश को रिपोर्ट करता है।

आमतौर पर, एक एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (एओआर), एक वकील जो प्रमाणन परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिकृत होता है, आवश्यक सहायक दस्तावेजों के साथ या तो फाइलिंग काउंटर पर या अदालत के ई-फाइलिंग पोर्टल के माध्यम से मामला दर्ज करता है।

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ऐसे होती है कोर्ट में दस्तावेजों की जांच

मामला न्यायालय के उस हिस्से में एक ‘डीलिंग असिस्टेंट’ के पास जाता है जिसे अधिवक्ता धारा 1B के नाम से जानते हैं। सहायक एओआर की पहचान सत्यापित करता है और हस्ताक्षरित वकालतनामा के माध्यम से यह पता लगाता है कि उन्हें मुवक्किल द्वारा पावर ऑफ अटॉर्नी दी गई है या नहीं, और मामले के लिए एक स्थायी डायरी नंबर तैयार करता है।

याचिका और सहायक दस्तावेजों की जांच किसी भी दोष के लिए की जाती है जैसे कि गलत पार्टी जानकारी, हस्ताक्षरों की अनुपस्थिति या गलत प्रारूप। रजिस्ट्री द्वारा जारी 2018 के परिपत्र के अनुसार, दोषों को 90 दिनों के भीतर ठीक किया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में, रजिस्ट्री का सहायक और एक वरिष्ठ अधिकारी दोनों ही दोषों को ठीक करने के लिए पुनः दायर मामले की जांच करते हैं।

वेरिफिकेशन के बाद मामला रजिस्टर कर लिया जाता है और लिस्टिंग डिपार्टमेन्ट को भेज दिया जाता है, जो इसे सुनवाई के लिए उस तारीख पर लिस्टेड कर देता है जो सामान्य परिस्थितियों में खुद ही आवंटित हो जाती है।

सुप्रीम कोर्ट की अंतिम सुनवाई के बाद आता है फैसला

एक बार जब कोई मामला लिस्टेड हो जाता है, तो यह एक ताजा मामले के रूप में बेंच के सामने आता है। सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार, इन मामलों की सुनवाई दशकों से सोमवार और शुक्रवार को होती रही है, जिन्हें विविध दिन के रूप में जाना जाता है। अगर अदालत मामले को तुरंत खारिज नहीं करती है तो वह दूसरे पक्ष को एक नोटिस भेजकर उनके खिलाफ मामले पर जवाब मांगती है। तब मामले को नोटिस के बाद का विविध मामला कहा जाता है। मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को गैर-विविध दिन या एनएमडी भी कहा जाता है।

इन दिनों में, अदालत ऐसे मामलों को लिस्टेड करती है जिनमें दोनों पक्षों की बात सुनना आवश्यक होता है और लिखित प्रस्तुतियों पर विचार करने के बाद ही यह निर्णय लिया जाता है कि मामले को स्वीकार किया जाए या नहीं। जिसके बाद अंतिम सुनवाई होती है जिसके बाद फैसला सुनाया जाता है। देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लिए पढ़ें जनसत्ता.कॉम का LIVE ब्लॉग