संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना विश्व इतिहास का एक नया मोड़ था। इसकी शुरुआत 24 अक्तूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र अधिकार-पत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर होने के साथ हुई थी। द्वितीय विश्व युद्ध को समाप्त कर शांति स्थापना के लिए इसका निर्माण मानवता के इतिहास में एक अभूतपूर्व प्रयास था। यह प्रथम संस्था थी, जिससे अंतरराष्ट्रीय जगत में विधि के शासन की स्थापना करने की आशा की जाती थी।

यह कहा गया था कि इसका उद्देश्य युद्ध से आने वाली पीढ़ियों की रक्षा करना है, संसार को प्रजातंत्र के लिए सुरक्षित स्थान बनाना है और एक ऐसी शांति की स्थापना करना है जो न्याय पर आश्रित हो। किंतु यह मानवता का दुर्भाग्य था कि राष्ट्र संघ अपने महान आदर्शों, महत्त्वाकांक्षी सपनों और उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल नहीं हो सका। इसका ताजा उदाहरण गाजा और यूक्रेन जंग में दिखा।

दुनिया भर में जंग को लेकर संयुक्त राष्ट्र की आलोचना हो रही है। गाजा संघर्ष की शुरुआत से ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो गुतारेस मानवीय आधार पर संघर्ष विराम का लगातार आह्वान कर रहे हैं। पिछले सप्ताह उन्होंने फिर से चेतावनी दी कि युद्ध में लगे सभी पक्ष अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं। हालांकि,अभी तक इजराइल ने संघर्ष विराम को खारिज ही किया है।

लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स एंड पालिटिकल साइंस में प्रोफसर फवाज गेर्जेस का कहना है कि दो साल पहले रूस का यूक्रेन पर हमला और अभी गाजा युद्ध ने दिखाया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ‘पंगु और निष्क्रिय’ है और संयुक्त राष्ट्र आम सभा कार्यकारी एजंसी की बजाय प्रतीकात्मक संस्था अधिक है।

ह्यूमन राइट्स वाच के लुईस शैरबोन्यू का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र में दोहरे मापदंड सबसे बड़ी समस्या है। उनके मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति प्रतिबद्ध होने का अमेरिका दावा आम तौर पर तब पूरी तरह खोखला होता है जब वो रूस के लिए लागू किए जाने की बात करते हैं लेकिन इजराइल पर इसे लागू नहीं करते। यह सिर्फ अमेरिका के साथ नहीं है। रूस जब यूक्रेन में अत्याचार करता है और गाजा में नागरिकों को बचाने की बात करता है तो उसे सुनना मुश्किल हो जाता है।

यूरोप थिंक टैंक में सीनियर फेलो सिनान उल्गेन का कहना है कि ऐसा लगता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद गुजरे जमाने का ढांचा है। वे कहते हैं कि 80 साल पहले द्वितीय विश्व युद्ध के समय ये पांचों देश विजेता थे और उनके पास वीटो का अधिकार है, जबकि किसी अन्य देश के पास ये अधिकार नहीं है। उदाहरण के लिए अफ्रीका इन पी5 में नहीं है। दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत नहीं है। लातिन अमेरिका का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। इसी तरह मुसलिम आबादी वाला कोई देश पी5 में नहीं है। यह मौजूदा वैश्विक व्यवस्था की जरूरत का जवाब नहीं देता है।

उठते सवाल

गजा संघर्ष की शुरुआत से ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंतोनियो गुतारेस मानवीय आधार पर संघर्ष विराम का लगातार आह्वान कर रहे हैं। लेकिन अभी तक इजराइल ने संघर्ष विराम को खारिज ही किया है। लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स एंड पालिटिकल साइंस में प्रोफसर फवाज गेर्जेस का कहना है कि दो साल पहले रूस का यूक्रेन पर हमला और अभी गाजा युद्ध ने दिखाया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पंगु और निष्क्रिय है।