जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत लोगों को हिरासत में रखने के लिए 5 अगस्त से लेकर अभी 230 आदेश जारी किए हैं। इनमें से सिर्फ तीन को ही पीएसए अडवाइजरी बोर्ड ने खारिज किया है। इस बोर्ड का काम छह हफ्ते के अंदर इन आदेशों को रिव्यू करना और इसके बाद इजाजत देना या इसे खारिज करना होता है।

रविवार देर रात, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूख अब्दुल्ला पर पीएसए लगाकर उन्हें घर में हिरासत में रखा गया था। उनके घर को ही जेल घोषित कर दिया गया था। इस आदेश के क्रियान्वयन की इजाजत पीएसए बोर्ड ने दी थी। बता दें कि इसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अब्दुल्ला से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की थी।

बता दें कि पीएसए जैसे सख्त कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना ट्रायल या आरोपित किए अधिकतम दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। पीएसए बोर्ड से अपेक्षा की जाती है कि यह सरकार द्वारा इस कानून के इस्तेमाल के मामले में निष्पक्षता और संतुलन बनाए रखे। शायद तभी इसकी नियुक्ति के लिए जुडिशरी को भी इसका हिस्साा बनाया गया था। इस बोर्ड के चेयरपर्सन की नियुक्ति सिर्फ जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से सलाह के बाद ही की जा सकती थी।

हालांकि, महबूबा मुफ्ती की अगुआई वाली पीडीपी और बीजेपी की गठबंधन सरकार के आखिरी दिनों में एक बड़ा फैसला लिया गया। सरकार गिरने से ऐन पहले मई 2018 में एक ऑर्डिनेंस लाकर जुडिशरी को इस प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया और नौकरशाहों की एक कमेटी को समुचित अधिकार दे दिए गए। ऑर्डिनेंस को गवर्नर एनएन वोहरा ने 22 मई 2018 को मंजूरी दे दी।

वर्तमान में इस तीन सदस्यीय अडवाइजरी बोर्ड की अगुआई जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के पूर्व जज जनक राज कोटवाल कर रहे हैं। कोटवाल की इस पद पर नियुक्ति 30 जनवरी को हुई थी। स्टेट एडमिनिस्ट्रेटिव काउंसिल को उनकी नियुक्ति के लिए गवर्नर सत्यपाल मलिक की ओर से इजाजत मिली थी। इससे पहले, यह पद मार्च 2018 से खाली था।