उसी ने ही वीडियो के माध्यम से इस हादसे की जानकारी सबको भेजी और लोगों को आगाह किया। किस तरह से नंदा देवी चोटी से ग्लेशियर टूटा और उससे जो जलजला आया उसको सबसे पहले मनवर ने अपने मोबाइल के कैमरे में कैद किया और सोशल मीडिया पर भेज कर एक बड़े खतरे की जानकारी शासन-प्रशासन को दी।
तबाही के साक्षी बने रैणी गांव के रहने वाले मनवर सिंह ने बताया कि रविवार सात फरवरी की सुबह करीब 10 बजकर 39 मिनट पर जब वह अपने दफ्तर एक जरूरी बैठक में भाग लेने के लिए जा रहे थे, तभी उन्हें गांव के पास चोटी पर जमा ग्रामीणों की जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। तब मनवर के कदम ठिठक गए और वे कुछ दूरी पर रुक गए।
उन्होंने बताया कि पहले उनको यह अहसास हुआ कि कोई चट्टान खिसक गई है। जब मैं पहाड़ी पर गया तो देखा कि नंदा देवी चोटी पर्वतमाला से सफेद बर्फ मलबे और पानी की सुनामी आ रही है। मैंने शोर मचाया और पूरी घटना को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर लिया और उसे वायरल कर दिया। मनवर बताते हैं कि उन्होंने बर्फ मलबे और पानी के इस विनाशकारी सैलाब देख कर सबसे पहले चमोली जिले के जिला आपदा अधिकारी को फोन लगाया पर जब उनका फोन नहीं लगा तब मैंने स्थिति को भांपते हुए फेसबुक से पूरी दुनिया को जानकारी देने के लिए सीधे प्रसारित किया और लोगों को इस प्राकृतिक आपदा के बारे जानकारी दी।
मनवर बताते हैं कि जब वे रैणी गांव पहुंचे तो वहां भयावह दृश्य देख कर वे सिहर गए लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इस तबाही की तस्वीरें सोशल मीडिया पर भेजी ताकि प्रशासन तक जल्द से जल्द सूचना पहुंच सके। सैलाब इतना भयानक था कि ऋषिगंगा प्रोजेक्ट और नीति पुल पूरी तरह से ध्वस्त हो गए। मनवर को इस बात का गम है कि वे लोगों की जिंदगी बचाने में कामयाब नहीं हो पाए और प्राकृतिक आपदा ने सैकड़ों लोगों को चंद मिनटों में ही अपना शिकार बना लिया और मौत की नींद सुला दिया।
मनवर बताते हैं कि रविवार की सुबह पौने ग्यारह बजे के करीब यह हादसा हुआ और करीब तीन घंटे बाद दोपहर दो बजे के करीब चमोली जिला प्रशासन की टीम मौके पर पहुंची। चार घंटे बाद बचाव कार्य शुरू किए गए। इस हादसे में हुए घायलों का इलाज भारत तिब्बत सीमा पुलिस के जोशीमठ स्थित अस्पताल में चल रहा है। आंध्र प्रदेश के रहने वाले श्रीनिवास रेड्डी तपोवन क्षेत्र में पावर प्रोजेक्ट में काम करते हैं। उन्होंने बताया कि वे अपने साथी के साथ तपोवन बैराज सुरंग के भीतर काम कर रहे थे, तभी सुरंग के अंदर पानी आ घुसा।
देखते ही देखते सुरंग के अंदर दो मीटर की ऊंचाई तक मलबा और पानी घुस गया। किसी तरह से हम लोहे के तार को पकड़ मशीन के ऊपर चढ़ गए पानी का बहाव स्थिर होने पर हम धीरे-धीरे लोहे के सहारे 350 मीटर लंबी सुरंग से बाहर निकलने की कोशिश करते रहे। परंतु हमें कामयाबी नहीं मिली।
रेड्डी बताते हैं कि सुरंग में चारों ओर अंधेरा था। एक साथी के मोबाइल की रोशनी के सहारे हम सुरंग से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे। जैसे-तैसे हम सुरंग के मुहाने के करीब पहुंचे। जिसके बाद मोबाइल में नेटवर्क आने से हमने अपनी कंपनी के अधिकारियों से संपर्क साधा और उन्होंने भारत तिब्बत सीमा पुलिस के दफ्तर को इसकी जानकारी दी। वहां से बचाव टीमें पहुंची और हमें सुरक्षित बाहर निकाला गया। उन्होंने कहा कि आइटीबीपी के जवान देवदूत बनकर आए।