अधिकतम रफ्तार 2,223 किलोमीटर प्रति घंटे की, लेकिन 8,140 किलोमीटर की दूरी तय करने में 10 घंटे से ज्यादा का वक्त लग गया। भारत के नवीनतम लड़ाकू विमान रफाल को सोमवार को फ्रांस से रवाना किया गया। बुधवार को भारत तक उड़ाकर लाने में कुल 10 घंटे का समय लगा।

असैन्य मुहिम के तहत इन विमानों को लाने में कई अंतरराष्ट्रीय मानकों एवं नियमों (प्रोटोकॉल) का पालन किया गया। इसके तहत अधिकतम रफ्तार 840 किलोमीटर प्रति घंटे की रखी गई। साथ ही, यह ध्यान रखा गया कि पाकिस्तान की वायुसीमा का इस्तेमाल न करना पड़े। ऐसे में इसे गुजरात के जामनगर की ओर से भारतीय वायुसीमा में दाखिल कराया गया। जामनगर तट की ओर से भारतीय वायुसीमा में विमानों के प्रवेश करते ही वहां तैनात नौसेना के युद्धपोत आइएनएस कोलकाता ने स्वागत का संदेश भेजा, ‘हैप्पी लैंडिंग, हैप्पी हंटिंग।’

वायुसेना के अंबाला हवाई अड्डे पर उतरने के पहले इस विमान ने दो महाद्वीपों को लांघा। ये विमान फ्रांस के मैरीनेक हवाई अड्डे से उड़ो और बीच रास्ते में अबु धाबी के अल दोफ्रा सैन्य अड्डे पर एक दिन के लिए रुके। उसके बाद उत्तर की ओर भारत के लिए रवाना हुए। जो विमान भारत लाए गए हैं, उनकी अधिकतम रफ्तार क्षमता सर्वोच्च ऊंचाई पर 2,223 किलोमीटर प्रति घंटे की है। जबकि, न्यूनतम ऊंचाई पर यह 1390 किलोमीटर प्रति घंटे की है। वायुसेना के एक विंग कमांडर के मुताबिक, ‘विमान कितने बजे कहां से उड़े और कहां उतरे- इसकी जानकारी गोपनीय रखी जाती है। इस कारण फ्रांस से उड़ने या अबू धाबी पहुंचने के समय का खुलासा नहीं किया गया।’

फ्रांस के मैरीनैक से अल द्रोफ्रा के बीच की दूरी है 5,430 किलोमीटर। इस विमान को पाकिस्तान के ऊपर से उड़ाकर नहीं लाना था, इसलिए अल दोफ्रा से उड़ने के बाद रफाल ने गुजरात की तटीय वायुसीमा से भारत में प्रवेश किया। अल दोफ्रा से जामनगर की दूरी 1,610 किलोमीटर है और जामनगर से अंबाला की दूरी है 1,100 किलोमीटर। कुल 8,140 किलोमीटर की दूरी इस विमान ने फ्रांस से भारत आने के रास्ते में तय की।

अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक, असैन्य मुहिम में दो देशों के बीच (रफाल के मामले में फ्रांस और भारत) लड़ाकू विमानों को सीधे उड़ाकर नहीं ले जाया जा सकता। रास्ते में कम से कम एक ठहराव और आठ घंटे का अंतराल होना चाहिए। विभिन्न देशों की वायुसीमा के नियम, एअरस्पेस की उपलब्धता, देशों के निषिद्ध वायुक्षेत्र, अंतरराष्ट्रीय संधियों का पालन करना होता है। रफाल विमानों को लाए जाने में इन बिंदुओं के मुताबिक रास्ते में पड़ने वाले विभिन्न देशों को कूटनीतिक माध्यमों के जरिए पहले से जानकारी दी गई। ऐसे में सीधे आने में जो दूरी बनती, उससे कुछ ज्यादा दूरी रफाल विमान को तय करनी पड़ी।

अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल के मुताबिक, या तो लड़ाकू विमानों के पुर्जे मालवाही विमानों से भेजे जाते हैं और उपयोक्ता देश में ले जाकर इन्हें जोड़ा जाता है। रूस से मिग या सुखोई विमान इसी तरह खरीदे गए थे। अगर पूरी तरह से तैयार विमान (ऑपरेशनल कंडीशन में) खरीददार देश ले जाया जाता है तो उसमें स्टॉपओवर जैसे कई अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करना होता है। फ्रांस से मिराज विमानों की खेप बीच में कई जगह रुकते हुए (स्टॉपओवर) लाई गई थी।

रफाल के जिन 10 विमानों को ऑपरेशनल कंडीशन में भारत लाया जाना है, उनमें से पांच विमान बुधवार को लाए गए। हाल के दिनों में भारतीय वायुसेना के सुखोई-30 और जगुआर विमानों को यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों में संयुक्त अभ्यास के लिए भेजा गया। इस दौरान वायुसेना का इल्युशिन-78 तेल टैंकर विमान उनके साथ भेजा गया था। इन अभियानों में भी अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन किया गया।
वायुसेना की पश्चिमी कमान के पूर्व प्रमुख, एअर मार्शल रघुनाथ नांबियार के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय मानकों के तहत असैन्य मिशन पर उड़ाए जाने वाले लड़ाकू विमानों की रफ्तार 14 किलोमीटर प्रति मिनट से ज्यादा नहीं रखी जा सकती। इस हिसाब से 840 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार रखनी पड़ती है। रफाल विमानों ने कुल 8,140 किलोमीटर की दूरी तक की।

भारतीय वायुसेना के एक मौजूदा विंग कमांडर के मुताबिक, भारत लाए इन विमानों के उड़ाकों को कॉकपिट में 10 घंटे से ज्यादा समय गुजारना पड़ा। वायुसेना के एक आला अधिकारी के मुताबिक, विमानों का इंजन चालू करने, रनवे पर दौड़, ओवरहेड सर्किलिंग और उड़ान की अन्य प्रक्रियाओं को जोड़ ले तो चालकों का कॉकपिट समय इससे ज्यादा रहा। उन्होंने बताया, ‘लड़ाकू विमानों में लंबी दूरी की यात्रा का उड़ाकों पर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक असर पड़ता है। वायुसेना के परिवहन विमानों से अलग लड़ाकू विमानों में शरीर को हिलाने-डुलाने लायक जगह नहीं होता। रफाल ला रहे लड़ाकों के मामले में इन बातों का ध्यान रखा गया।’

जो विमान फ्रांस से लाए गए, उनमें अतिरिक्त ईंधन के लिए तीन ड्रॉप टैंक लगाए गए थे। दोनों विंग (पंखों) पर एक-एक और तीसरा बेली सेंटरलाइन (पेट के नीचे) पर। इन ड्रॉप टैंक से विमान की ईंधन क्षमता 3700 किलोमीटर तक के उड़ान की रही। उसके बाद फ्रांस से अबू धाबी के हवाई अड्डे के रास्ते में हवा में तेल भरना पड़ा। इसके लिए फ्रांसीसी वायुसेना के एक तेल टैंकर विमान इन विमानों के साथ चला। मिस्त्र-इजराइल के आसपास भूमध्य सागर के ऊपर रफाल विमानों में हवा में ही ईंधन भरा गया। इसके बाद गुजरात के ऊपर अबू धाबी से अंबाला तक हवा के मध्य में तेल भरने की जरूरत नहीं रही।