लक्षद्वीप से राकांपा के सांसद रहे मोहम्मद फैजल का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। एक एडवोकेट ने याचिका दायर करके सवाल किया है कि जब उनकी सजा को किसी बड़ी कोर्ट ने रद्द नहीं किया तो वो फिर से कैसे लोकसभा में बैठने के लिए योग्य घोषित कर दिए गए। एडवोकेट ने Representation of People Act 1951 का हवाला देकर सवाल किया है कि लोकसभा स्पीकर कैसे उनकी सांसदी को बहाल कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में ये मामला लेकर लखनऊ के एडवोकेट अशोक पांडेय लेकर गए। उनका कहना है कि टॉप कोर्ट इस मामले में संजीदगी से विचार करे। अगर हाईकोर्ट उन्हें 307 के मामले से ही बरी कर देता तो बात और थी। लेकिन हाईकोर्ट ने केवल उनकी सजा पर ही रोक लगाई है। इसके आधार पर लोकसभा के स्पीकर कैसे फैजल की सांसदी को फिर से बहाल कर सकते हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से ये दरखास्त भी की है कि वो इस बात को भी देखे कि क्या अपीलेंट कोर्ट किसी मामले में सजा पर रोक लगा सकती है। और फिर उसके बाद कोई जनप्रतिनिधि फिर से बहाल हो सकता है।

हत्या के प्रयास के मामले में सेशन कोर्ट ने सुनाई थी दस साल की सजा

फैजल को हत्या के प्रयास के मामले में 10 साल की सजा कवारत्ती सेशन कोर्ट से सुनाई गई थी। सजा के बाद उन्हें 11 जनवरी को संसद से अयोग्य घोषित कर दिया गया था, क्योंकि अगर किसी सांसद या विधायक को दो या उससे ज्यादा की सजा होती है तो उसकी संसद या विधानसभा सदस्यता भी रद्द हो जाती है।

केरल हाईकोर्ट ने सजा पर लगा दी थी रोक

25 जनवरी को केरल हाईकोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगा दी थी। उसके बाद उन्होंने अपनी सांसदी को बहाल करने की अपील लोकसभा सचिवालय से की थी। अपील नहीं मानी गई तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहली ही स्पीकर ने बहाल कर दी थी सांसदी

सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए 29 मार्च की तारीख तय की थी। लेकिन सुनवाई से पहले ही लोकसभा स्पीकर ने उनकी सांसदी को फिर से बहाल कर दिया। उधर खास बात है कि केरल हाईकोर्ट के फैसले को लक्षद्वीप के प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। प्रशासन का कहना है कि इस फैसले को रिव्यू करने की जरूरत है।