उत्तर प्रदेश में बीते एक साल से लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर करीब पॉलिटकल ड्रामा चल रहा है। यूपी सरकार पर विपक्ष आरोप लगा रहा है तो सत्ता पक्ष विरोधियों को निशाने पर ले रहा है। राज्यपाल राम नाईक से भी इस मामले पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तकरार चल रही है। आखिर इस मामले का सच क्या है? क्या अखिलेश यादव ने सभी प्रक्रियाओं का सही से पालन किया? तो इसका जवाब है नहीं, बल्कि अखिलेश यादव और विपक्ष के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य जिन नामों पर विचार कर रहे थे, उनमें 30 नाम ऐसे जजों के थे, जो अब दुनिया में ही नहीं हैं। इतना ही नहीं, अखिलेश यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट चीफ जस्टिस की राय को भी नजरअंदाज कर दिया। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के पास ऐसे दस्तावेज हैं, जो बतातें हैं कि अखिलेश यादव लोकायुक्त चयन में किस प्रकार से लापरवाही बरती।
लोकायुक्त विवाद से जुड़े अहम तथ्य
सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस (रिटायर्ड) विरेंद्र सिंह का चयन किया। सुप्रीम कोर्ट ने विरेंद्र सिंह का चयन उन्हीं नामों में से किया था, जो यूपी सरकार की ओर से उसे भेजे गए थे। लेकिन बाद यहीं खत्म नहीं हुई। विरेंद्र सिंह के चयन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूढ़ ने तुरंत आपत्ति जता दी।
डीवाई चंद्रचूढ़ ने उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर बताया कि यूपी सरकार ने उनके विरोध के बावजूद विरेंद्र सिंह का नाम लिस्ट में डाला। चीफ जस्टिस ने यहां तक दावा किया कि अखिलेश यादव ने उन्हें भरोसा दिया था कि विरेंद्र सिंह का नाम पैनल में नहीं होगा।
आपको बता दें कि लोकायुक्त का चयन राज्य का मुख्यमंत्री, विपक्ष का नेता और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को मिलकर करना होता है।
चीफ जस्टिस चंद्रचूढ़ का लेटर और एक याचिका अब सुप्रीम कोर्ट में है। जिसकी सुनवाई 19 जनवरी को होनी है। इसी कारणवश यूपी सरकार ने विरेंद्र सिंह के शपथ ग्रहण को टाल दिया है।
28 जनवरी 2015 को विपक्ष के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ अखिलेश यादव की जब मुलाकात हुई, तब उनके सामने जो लिस्ट थी, उसमें 30 ऐसे जजों के नाम थे, जो अब इस दुनिया में ही नहीं हैं। सूची में एक नाम ऐसे जज का था, जो 1951 में ही रिटायर हो गए थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूढ़ ने अखिलेश यादव को छह लेटर लिखे और मिलने का समय मांगा, ताकि वह सीएम की पसंद के व्यक्ति के खिलाफ अपनी बात रख सकें।
यूपी के गवर्नर राम नाईक ने तीन बार पत्र लिखकर अखिलेश यादव को कहा कि उन्हें विपक्ष के नेता और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की राय जरूर लेनी चाहिए।