Hijab Row: हिजाब का मामला एक बार फिर से तूल पकड़ सकता है, क्योंकि केरल में मेडिकल की सात छात्राओं ने प्रिंसिपल को एक पत्र लिखा है। पत्र में छात्राओं ने पूछा कि हिजाब संबंधी नियमों का पालन करने और सर्जिकल ड्यूटी करने में संतुलन कैसे बनाया जा सकता है। छात्राओं ने लिखा कि उन्हें सर्जरी के दौरान हिजाब मानदंडों के पालन की अनुमति दी जाए। साथ ही हिजाब पहनने की छूट प्रदान की जाए।

तिरुवनंतपुरम के सरकारी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई कर रही छात्राओं ने कॉलेज अधिकारियों को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मुस्लिम महिलाओं के लिए सभी परिस्थितियों में हिजाब पहनना अनिवार्य है।’

पत्र में आगे लिखा है, ‘हिजाब पहनने वाले मुसलमानों को धार्मिक पोशाक पहनने और अस्पताल और ऑपरेशन कक्ष के नियमों का पालन करने के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई होती है।’ पत्र में कहा गया कि दुनिया के अन्य हिस्सों में स्वास्थ्य कर्मियों तथा सर्जिकल प्रक्रियाओं के लिए पोशाक निर्माता कंपनियों द्वारा पेश किए गए विकल्पों के आधार पर विकल्प सुझाए गए हैं।

पत्र में कहा गया है, ‘लंबी आस्तीन वाले स्क्रब जैकेट और सर्जिकल हुड उपलब्ध हैं, जिनसे सफाई सावधानियां बरतते हुए हिजाब को बनाए रखना मुमकिन हो जाता है।’ पत्र में प्रिंसिपल से उन्हें जल्द से जल्द इन्हें पहनने की अनुमति देने का अनुरोध किया गया है।

प्रिंसिपल ने गठित की कमेटी

प्रिंसिपल डॉ. लिनेट मॉरिस ने कहा है कि छात्राओं की मांग पर चर्चा के लिए कमेटी बनाई गई है। प्रिंसिपल ने मीडिया से कहा, ‘छात्राओं की मांग फिलहाल मानी नहीं जा सकती। ऑपरेशन थिएटरों में अंतरराष्ट्रीय मानकों को बनाए रखा जाता है, और मरीज की सुरक्षा सर्वोपरि होती है।’ उन्होंने कहा कि वो इस मामले में अकेले फैसला नहीं ले सकते। इसके लिए गठित कमेटी 10 दिनों के अंदर कोई रास्ता निकालेगी।

पिछले साल कर्नाटक में हिजाब को लेकर हुआ था बवाल

छात्राओं का यह अनुरोध पिछले साल कर्नाटक में हुए घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में आया है, जब तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने शैक्षणिक कैम्पसों में हिजाब पर पाबंदी लगा दी थी। इस मुद्दे पर जनता की राय भी अलग-अलग थी। एक वर्ग का तर्क था कि शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक परंपराओं का कोई स्थान नहीं है और दूसरा वर्ग हिजाब पर पाबंदी को अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर प्रहार के रूप में देख रहा था।

सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी चुनौती

इसके बाद यह मामला कर्नाटक हाई कोर्ट गया था। कोर्ट ने सरकार के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य प्रथा नहीं है। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। दो जजों की पीठ ने अलग-अलग फैसला सुनाया, जिसमें एक जज ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और दूसरे ने खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले की सुनवाई के लिए तीन जजों की बेंच बनाई जाएगी।