Hijab ban case in supreme court: कर्नाटक में हिजाब बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। वहीं सुनवाई के दौरान जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि हिजाब की तुलना सिखिज्म से नहीं कर सकते, क्योंकि सिखिज्म दीर्घकाल से देश की संस्कृति में रचा बसा है।

वरिष्ठ अधिवक्ता निजाम पाशा द्वारा सुनवाई के दौरान सिखों की पगड़ी का उल्लेख करने पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा, “सिखों की पगड़ी के साथ हिजाब की तुलना उचित नहीं हो सकती है। सिखों के 5 केएस को अनिवार्य माना गया है। यह जजमेंट हैं। कृपाण को ले जाना संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसलिए प्रथाओं की तुलना न करें। पंजाब में एक मामला था। एसजीपीसी द्वारा संचालित एक कॉलेज था और प्रवेश की शर्त यह थी कि जो कोई भी सिख धर्म के सिद्धांतों का पालन नहीं करेगा वह नहीं आ सकता है। एक लड़की को प्रवेश से वंचित कर दिया गया था, उसने अपनी भौहें काट दी थीं और मामला यहां लंबित है।”

जस्टिस हेमंत गुप्ता ने आगे कहा, “पगड़ी पहनना सांस्कृतिक है। यह संरक्षित है। हिजाब पहनना भले ही सांस्कृतिक माना जाता है और संरक्षित है लेकिन यदि एक सिख को पगड़ी पहननी है और उसे स्कूल नहीं आने के लिए कहा जाता है और वह पगड़ी पहनता है तो यह उल्लंघन है। मैं सभी लड़कों के स्कूल में गया और मेरी कक्षा में कई सिख लड़के थे जिन्होंने एक ही रंग की पगड़ी पहनी थी। इससे यह पता चला कि इससे अनुशासन का उल्लंघन नहीं होगा।”

वहीं जब जस्टिस गुप्ता ने सिखों की पगड़ी को लेकर बात कही, उसके बाद अधिवक्ता निजाम पाशा ने कहा कि इस्लाम भी 1400 सालों से है और हिजाब भी है। दरअसल सुनवाई के दौरान निज़ाम पाशा ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के कुछ हिस्सों का उल्लेख किया था जिसमें कहा गया था कि हिजाब एक सांस्कृतिक प्रथा थी।उन्होंने कहा कि भले ही यह एक सांस्कृतिक प्रथा थी, लेकिन इसे उसी तरह संरक्षित किया गया जैसे सिखों के लिए पगड़ी पहनना सुरक्षित था। इसके बाद जस्टिस गुप्ता ने सिखों की पगड़ी पर टिप्पणी की।

इसके पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा था कि अगर संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत पोशाक के अधिकार को पूर्ण मौलिक अधिकार के रूप में दावा किया जाता है, तो कपड़े न पहनने का अधिकार भी होगा।