Goa Night Club Fire News: गोवा के अरपोरा नाइट कल्ब में आग लगने से 25 लोगों की मौत हो गई थी। मरने वाले लोगों में असम के तीन युवक भी थे। इनमें एक राहुल तांती भी था। एक महीने पहले ही राहुल तांती के यहां एक बच्चे का जन्म हुआ था, जिसके कारण उन्हें असम के कछार जिले में मौजूद अपने परिवार को छोड़कर उनके लिए कमाने के लिए गोवा जाने के लिए प्रेरित होना पड़ा।

रंगिरखारी गांव के रहने वाले तांती चाय बागान में काम करने वाले एक परिवार से थे और सात भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उन्होंने चौथी क्लास की पढ़ाई पूरी करने के बाद कम उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था ताकि अपने पिता का सहारा बन सकें। उनके भाई देवा ने बताया कि अपने तीसरे बच्चे के जन्म के तुरंत बाद, 24 नवंबर को वह गोवा के लिए रवाना हो गए थे। उनकी दो बेटियां भी हैं जिनकी उम्र नौ और छह साल है।

अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहता था- देवा

उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “चाय बागान में काम करने की मजदूरी मात्र 200 रुपये प्रतिदिन है, जो मेरे भाई के परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है। वह अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना चाहता था ताकि वे अच्छी पढ़ाई कर सकें और हमारे जैसे परिवारों की तुलना में बेहतर जीवन जी सकें। वह पहले 2021 में असम से बाहर काम करने गया और फिर अपनी कमाई लेकर लौटा और घर बनाया, परिवार के साथ रहा और बागानों में काम किया। लेकिन बेटे के जन्म के बाद, उसने फैसला किया कि उसे उनके लिए और ज्यादा कमाना होगा।”

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जिस रात आग लगी, वह नाइट क्लब में तांती की पहली नाइट शिफ्ट थी, यह नौकरी उसने माली के रूप में अपनी दिन की नौकरी के अलावा की थी। देवा ने बताया, “उसने कहा था कि वह रात में भी नौकरी करना चाहता है ताकि ज्यादा कमा सके और अपने बच्चों के पास जल्दी वापस आ सके। लेकिन यह सब वहां पहली ही रात में हुआ।”

असम छोड़कर बाहर गए थे मनोजीत

इसी जिले में आग लगने से पीड़ित एक और व्यक्ति मनोजीत मल सिल्कूरी ग्रांट गांव के एक चाय बागान जनजाति परिवार से हैं। उनके पड़ोसी प्रदीप मल ने बताया कि चार भाई-बहनों में सबसे बड़े होने के नाते, वह डेढ़ साल पहले बेहतर वेतन की तलाश में असम छोड़कर चले गए थे।

उसने बताया, “परिवार बेहद गरीब है और चाय के अलावा कोई ऐसा उद्योग नहीं है जहां इस इलाके के नौजवान काम कर सकें। यहां तक कि चाय के बागान भी सालों से ठीक से नहीं चल रहे हैं। वेतन बहुत कम और अनियमित है। उसके माता-पिता भी चाय के बागान में काम करते थे, लेकिन चूंकि अब वे बूढ़े हो गए हैं और वह सबसे बड़ा भाई था, इसलिए वह बाहर काम करने चला गया।”

असम का तीसरा पीड़ित दिगंत पातिर पूर्वी असम के धेमाजी जिले के मिसिंग आदिवासी परिवार से था। यह बाकी अन्य दो से काफी दूर था। उनके चाचा बिस्वा पटीर के अनुसार, दिगंत ने लगभग एक दशक पहले अपने पिता को खो दिया था और वह 18 साल की उम्र से असम के बाहर काम कर रहे थे। वह इस साल की शुरुआत में काम करने के लिए गोवा गए थे।

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मां और भाई का सहारा बनने के लिए दिगंत पातिर ने असम छोड़ा

उन्होंने कहा, “उसने दसवीं क्लास तक पढ़ाई की और फिर अपनी मां और छोटे भाई का सहारा बनने के लिए असम छोड़ दिया। उसने तमिलनाडु के ढाबों में रसोइया का काम किया और फिर अप्रैल में गोवा चला गया, जहां उसे बेहतर कमाई की उम्मीद थी। उसका छोटा भाई भी बाहर काम करता है। यहां नौजवानों के लिए अच्छी कमाई के अवसर मिलना मुश्किल है। यहां नाममात्र की कंपनियां या उद्योग हैं और हमें हर साल भयंकर बाढ़ का सामना करना पड़ता है।”

दिगंत अगले महीने अपने गांव लौटने की प्लानिंग कर रहा था। बिस्वा ने कहा, “दोनों भाइयों ने मिलकर घर बनाने लायक कमाई कर ली थी और वह वापस आकर अपना कुछ शुरू करने और अपनी मां के साथ रहने की योजना बना रहा था, जो अकेली थीं। लेकिन अब, वह पहले से कहीं ज्यादा अकेली हैं।”