नए संसद भवन के उद्घाटन के साथ मोदी सरकार के नौ साल पूरे हुए पिछले महीने के आखिरी सप्ताह में। उद्घाटन समारोह इतना शानदार, इतना नाटकीय था कि कई राजनीतिक पंडित इस ही चर्चा में उलझे रहे कि वास्तव में सोने का सेंगोल देश के पहले प्रधानमंत्री को दिया था ब्रिटिश साम्राज्य के अंतिम वायसराय ने या नहीं। चर्चा सेंगोल और नए संसद भवन की इतनी ज्यादा हुई कि इनके साये में छिप से गए वे लेख जो लिखे गए थे नरेंद्र मोदी के नौ साल लंबे शासनकाल के हिसाब लगाने पर। मैंने जब इन लेखों को पढ़ा ध्यान से पिछले सप्ताह, तो पाया कि कसीदे ज्यादा थे और आलोचना न के बराबर।
ऐसा नहीं है कि मोदी राज की शान में कसीदे लिखने की कोई वजह नहीं है। बहुत काम हुआ है पिछले नौ सालों में, जिसका लाभ हुआ है गरीब से गरीब देशवासी से लेकर मध्यम वर्ग और देश के सबसे धनवान लोगों को। जहां जन धन योजना ने गरीबों को देश की अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाया है और उन तक समाज कल्याण योजनाओं का लाभ पहुंचाया, वहीं सड़कों, विमान स्थलों और बंदरगाहों के निर्माण में तेजी लाने से देश के सबसे अमीर नागरिकों को लाभ पहुंचा है। रही बात महिलाओं की तो उन तक गैस के सिलेंडर पहुंचा कर और शौचालयों को बना कर इतना फायदा मिला है कि दूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी कि महिलाएं पहले से बेहतर जीवन जी रही हैं। कहने का मतलब ये है मेरा कि कसीदे मोदी की शान में जरूर लिखे जाने चाहिए।
ऐसा कहने के बाद लेकिन ये भी कहना जरूरी है कि देश के मुसलमानों के खिलाफ इतनी नफरत फैलने दी गई है कि एक अशांति महसूस होती है देश के वर्तमान माहौल में। इतना बिगड़ गया है माहौल कि पिछले सप्ताह महाराष्ट्र में दंगे हुए इस बात को लेकर कि कुछ बदमाश युवकों ने सोशल मीडिया पर औरंगजेब की तारीफें कीं। नतीजा ये कि इससे विरोध रखने वाले संगठन सड़कों पर उतर आए और इनका साथ दिया महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री ने यह कहके कि ‘औरंगजेब की औलादें पैदा हो गई हैं’ महाराष्ट्र में। मोदी राज से पहले ऐसी बातें ऊंचे पदों पर बैठे राजनेता नहीं किया करते थे। जानते थे कि इस तरह की भड़काऊ बातें नफरत की आग को तेज करने का काम करती हैं।
आज हाल यह है कि प्रसिद्ध टीवी एंकर भी इस तरह की बातें अपने कार्यक्रम में बोलने की इजाजत देते हैं। सो जब देवेंद्र फड़नवीस ने इतना गैरजिम्मेदार बयान दिया तो उनके समर्थन में निकल आए भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता ये कहने कि औरंगजेब के समर्थकों के लिए भारत में कोई जगह नहीं है।
इशारा यही था कि मुसलमानों की देशभक्ति पर हमेशा शक करना चाहिए। माहौल इतना बिगड़ गया है कि बालासोर के दर्दनाक रेल हादसे के बाद भाजपा की ट्रोल सेना लग गई इस झूठ को सच साबित करने में कि दुर्घटनास्थल के पास में एक मस्जिद मौजूद है। इशारा वही कि मुसलमानों का हाथ दिखता है इस दुर्घटना को अंजाम देने में। बाद में मालूम हुआ कि जिसको मस्जिद कह रहे थे, वह वास्तव में मंदिर है।
उस ‘पुराने’ भारत में ऐसी बातें नहीं हुआ करती थीं। मोदी के ‘न्यू इंडिया’ में हो रही हैं। प्रधानमंत्री होने के नाते अगर उन्होंने ऊंची आवाज में कभी कहा होता कि उनको धर्म-मजहब के नाम पर हिंसा पसंद नहीं है तो गोरक्षकों के हाथों न मुसलमान मारे जाते गोहत्या के बहाने और न ही इतनी नफरत फैली होती देश में कि ईद की खरीदारी करने गए नौजवान को ट्रेन के डिब्बे में सिर्फ इसलिए मारा गया कि उसके कपड़ों से वह मुसलमान दिखता था। इस तरह की कायर हत्याएं हुई हैं सिर्फ इसलिए कि हत्यारे जानते हैं कि इस ‘न्यू इंडिया’ में उनकी शर्मनाक कायरता को बहादुरी माना जाता है।
पीएम की छवि सांप्रदायिक नेता की बन गई है
जब मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री ऐसे भड़काऊ भाषण देते हैं जो देवेंद्र फड़नवीस ने दिया था पिछले सप्ताह तो दंगाइयों के हौसले बुलंद होते हैं। जब दंगा-फसाद होने के बाद सिर्फ मुसलिम दंगाइयों के मकान तोड़ने भेजे जाते हैं बुलडोजर तो प्रधानमंत्री की तरफ से निंदा का एक शब्द सुनने को नहीं मिलता है। दुनिया की नजरों में बदनाम हुए हैं मोदी इसलिए कि उनकी छवि एक सांप्रदायिक नेता की बन गई है। जब वे कुछ दिनों बाद अमेरिका जाएंगे तो तय है कि उनके विरोध में प्रदर्शन करेंगे प्रवासी भारतीयों के वे गुट जो मानव अधिकार संस्थाओं से वास्ता रखते हैं।
मोदी को इन बातों की चिंता इसलिए होनी चाहिए कि उनकी बदनामी से होती है देश की भी बदनामी। राहुल गांधी ने अपने विदेशी दौरों पर कई बार कहा है कि नफरत फैली है भारत में सिर्फ इसलिए कि एक विचारधारा की लड़ाई चल रही है कांग्रेस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच। सवाल ये है कि संघ के आला अधिकारियों को क्यों नहीं दिखता है कि नफरत जब फैलती है देश के अंदर इतनी कि हिंसा भी अपने साथ लाती है तो नुकसान उस भारत का ही होता है, जिसके वे अपने आपको सबसे बड़े देशभक्त मानते हैं।
रही बात मोदी के नौ सालों की तो उनको कसीदों के साथ आलोचना भी सुनने की आदत डालनी चाहिए। इसमें देश का भला है और भला उनका भी होगा अगले आम चुनावों में, क्योंकि अगर मुसलमान रणनीति बनाते हैं कि वे किसी भी हाल में मोदी को हराने का प्रयास करेंगे उन सीटों पर जहां उनका असर है तो मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने से रोक भी सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी की नजरों में मोदी को 2024 में कोई हराने वाला नहीं दिखता है। इतना घमंड अक्सर नुकसान करता है।