यमुना नदी पर बने हथिनीकुंड बैराज के निचले प्रवाह क्षेत्र में लगातार बढ़ते कटाव के कारण जल प्रबंधन और बाढ़ सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। तटबंधों को तगड़ा नुकसान पहुंचा है और तटवर्ती रिहाइशी इलाकों में बाढ़ के साथ ही भू-धंसान का खतरा बढ़ गया है। इसका खुलासा ऊपरी यमुना नदी बोर्ड (यूवाईआरबी) की ताजा वार्षिक रपट से हुआ है। दूसरी ओर, उत्तर भारत में हो रही मूसलधार बारिश से बैराज पर दबाव बढ़ गया है। हालांकि सुरक्षा को देखते हुए बैराज के सभी गेट खोल दिए गए हैं।
रपट के अनुसार, हथिनीकुंड बैराज के नीचे की ओर के हिस्से में नदी तट पर गंभीर तट कटाव हो रहा है। यह कटाव न सिर्फ तटबंधों को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि भविष्य में बैराज की संरचना व नदी तटीय गांवों के लिए भी खतरा बन जाएगा। रपट के मुताबिक, यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हथिनीकुंड का कटाव भविष्य में बड़ी जल संकट और आपदा का कारण बन सकता है।
इसी बैराज से दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को पानी की आपूर्ति होती है। लगतार बढ़ता कटाव इन राज्यों में जल आपूर्ति को बाधित कर सकता है। साथ ही, बाढ़ और भू-धंसान का खतरा भी बढ़ेगा। ऊपरी यमुना नदी बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक, इस समस्या की रोकथाम के लिए बोर्ड के सदस्य सचिव की अध्यक्षता में एक संयुक्त टीम गठित की गई है। यह टीम बांध संरक्षण (एलपी), बांध के पास कटाव और हथिनीकुंड बैराज के नीचे की ओर तल कटाव की समस्या का अध्ययन करेगी।
अध्ययन के बाद समस्या के स्थायी निदान के लिए सिफारिश करेगी। ऊपरी यमुना नदी बोर्ड की 61वीं बैठक में इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा हुई। बैठक के बाद गठित हुई समिति में विभिन्न राज्यों और केंद्रीय एजंसियों के विशेषज्ञों को शामिल किया गया। यह समिति तटबंधों को मजबूत करने, कटाव-रोधी संरचनाएं बनाने, नदी प्रवाह का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन करने सहित अन्य दिशा में काम करेगी।
यमुना बोर्ड सचिवालय में 88 फीसद पद रिक्त
उत्तर भारत के छह राज्यों में यमुना नदी के जल बंटवारे व निगरानी का जिम्मा संभाल रहे यूवाईआरबी खुद गंभीर प्रशासनिक संकट से जूझ रहा है। रपट के मुताबिक, बोर्ड के सचिवालय में 58 पद स्वीकृत हैं। मौजूदा समय केवल सात कर्मचारी ही यहां सेवाएं दे रहे हैं। स्टाफ की भारी कमी के कारण जल वितरण की निगरानी, राज्यों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण, जल गुणवत्ता की निगरानी और तकनीकी गतिविधियों का कार्य प्रभावित हो रहा है।
रपट में इसपर चिंता जाहिर की गई है। अधिकारियों के मुताबिक, सचिवालय की मजबूती के बिना न तो नदी जल समझौते के प्रावधानों को सही ढंग से लागू किया जा सकता है और न ही जल विवादों का त्वरित समाधान संभव है। नियमानुसार सचिवालय का नेतृत्व सदस्य सचिव (मुख्य अभियंता के पद का) करते हैं। इन्हें विभागाध्यक्ष की शक्तियां सौंपी गई हैं।
प्रतिनियुक्ति के आधार पर सभी पद भरे जाने थे। सचिवालय के लिए समूह ए, बी और सी की 21 श्रेणियों में कुल 58 कर्मचारियों के पद स्वीकृत हुए। लेकिन आवेदकों से प्राप्त कम प्रतिक्रियाओं के कारण लंबे समय तक ये पद रिक्त रहे। बाद में मंत्रालय ने पांच वर्षों से अधिक समय से रिक्त पड़े 51 पदों को समाप्त कर दिया। मौजूदा समय में केवल सात सक्रिय पद हैं। कर्मचारियों की इस संख्या को नाकाफी बताया जा रहा है।